देहरादून, उत्तराखण्ड नवनिर्माण सेना ने कहा कि किसी भी प्रदेश के शक्तिकरण एवं प्रदेश में जनहित से जुड़े विकास कार्यो के निर्वाह के लिए आर्थिक संसाधनों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। किन्तु उत्तराखंड में आर्थिक संसाधनों को जुटानों में प्रदेश निर्माण के बाद से अब तक प्रदेश सरकारें विफल रही हैं। जिसके दुष्परिणाम प्रदेश पर बढ़ते कर्ज के भार तथा आमजन से जुड़े विकास कार्यों में बाधा के रूप में सभी के सामने हैं।
सशक्त आर्थिक तथा औद्योगिक नीति के अभाव में आज प्रदेश में ओद्योगिक विकास में दर में निरंतर गिरावट आ रही है। सरकार के पास आंकड़ों की कमी के चलते ये चिन्हित करना मुश्किल कार्य की किस क्षेत्र में मंदी तथा किस क्षेत्र का रोजगार कितने रोजगार को सृजन हो रहा है सशक्त औद्योगिक नीति ना होने के चलते आज 2005 से अब तक कई औद्योगिक इकाइयां उत्तराखंड से पलायन कर गई। ये सिलसिला हाल में भी जारी है। पंतनगर स्थित टाटा फैक्ट्री जैसी कंपनियों के कम इकाई निर्माण का प्रभाव ,इन बड़े उद्योगों पर निर्भर छोटी इकाईओं पर भी पड़ता दिख रहा है। आज सिडकुल में पैकेजिंग जैसे कार्यों से जुडी कई छोटी इकाइयों पर ताले लग रहे हैं। किन्तु सबसे दुर्भग्यपूर्ण पहलु इस समस्त घटना क्रम में सरकार का संवादहीन रवैया है सरकार ना ही कारण तलाश रही है और ना समाधान पर मंथन करती दिख रही है। आज लघु व्यापारियों द्वारा लगातार उत्पीड़न को लेकर शिकायतें की जा रही हैं। किसी भी भी राज्य में रोजगार के लिए अधिकतर निर्भरता प्राइवेट सेक्टर पर रहती है। किन्तु प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों की दर चरम पर है। शिक्षित युवा आज भटकाव के चलते फर्जी कॉल सेंटर, साइबर क्राइम ,जालसाजी जैसे अन्य अपराधों की राह पर बढ़ रहा है। प्रदेश में इन्वेस्टर सम्मिट में 1.25 लाख करोड़ के डव्ल के दावे हों या फिर टिहरी झील में मरीना या फिर सी प्लेन की बातें , कहीं भी जमीन पर रोजगार सृजन करे नहीं दिख रहे। प्रश्न केवल यही की केवल कोरे कागजों पर चलते विकास से प्रदेश में रोजगार का सृजन कैसे संभव ? जो लाखों नौजवान आज प्रदेश में बेरोजगार है उसके लिए पांच से आठ वर्षों के बाद सृजित रोजगार का क्या महत्त्व तथा लाभ प्रदेश में युवा हो या फिर किसान अवसाद तथा कुंठा के चलते आत्महत्या जैसे दुर्भग्यपूर्ण कदम उठा रहा है।