आज हिमालय तुमन कै धतोंछो,
जागो हो जागो , मेरा लाल

उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा इस गीत की पंक्तियों के साथ प्रस्तुत है ये रिपोर्ट

उत्तराखंड : देश में हर राज्य के विधायक की सैलरी अलग-अलग होती है। सबसे अधिक सैलरी तेलंगाना के विधायकों की है। वहीं त्रिपुरा के विधायकों की सैलरी देश में सबसे कम है। बात करें उत्तर प्रदेश की, तो यहां के विधायक को 1,87,000 रुपये प्रति महीने मिलते हैं। वहीं पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के विधायक को 1,60,000 रुपये प्रति महीने मिलते हैं। इसके अलावा उन्हें भत्ते भी दिए जाते हैं। यूपी में एक विधायक को काम कराने के लिए उनके कार्यकाल के दौरान विधायक निधि से 7.5 करोड़ रुपये मिलते हैं। वहीं, कार्यकाल खत्म होने के बाद विधायकों को पेंशन भी मिलती है। पेंशन के तौर पर 30 हजार रुपये और 8 हजार रुपये फ्यूल खर्च मिलता है। जबकि लाइफ टाइम मुफ्त रेलवे पास और मेडिकल सुविधाएं भी दी जाती हैं। उत्तराखंड में एक दिन के लिए भी विधायक बनने पर चालीस हजार रुपये की पेंशन पक्की हो जाती है। जबकि नई पेंशन स्कीम के तहत बीस साल की सेवा पर भी कर्मचारी को महज तीन हजार रुपये पेंशन मिल रही है। पेंशन को लेकर जनप्रतिनिधियों व कर्मचारियों के बीच भेदभाव पर सवाल उठ रहे हैं।

गरीब उत्तराखंड की विधानसभा का सूरते-हाल

70 में से 58 विधायक करोड़पति (निर्वाचन आयोग)
राज्य पर कुल कर्ज – 85,486 करोड़
प्रति व्यक्ति पर औसत कर्ज – 73 हजार
प्रति व्यक्ति औसत आय – 2.90 लाख (वार्षिक) – बजट अभिभाषण मार्च 2021
विधायकों की औसत आय – 7.56 करोड़ (वार्षिक) – एडीआर रिपोर्ट
पूर्व विधायकों की पेंशन खर्च – 6 करोड़ 86 लाख 800 (वार्षिक) – उपसचिव (लेखा)

दरअसल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कुछ दिन पहले, पूर्व विधायकों की पेंशन के फार्मूले में बदलाव कर सिर्फ एक कार्यकाल के लिए पेंशन देने का ऐलान किया है। ऐसे में उत्तराखंड में पूर्व विधायकों को मिल रही पेंशन को लेकर भी बहस शुरू हो गई है। उत्तराखंड में एक दिन के लिए भी विधायक बनने पर चालीस हजार रुपये की पेंशन का प्रावधान है ।जबकि उसके बाद पेंशन में प्रति वर्ष दो हजार रुपये का इजाफा होता है। इसके अलावा विधायकों को पेट्रोल-डीजल के लिए 22 हजार रुपये के करीब का भुगतान प्रतिमाह होता है। नियमों के तहत कोई भी जनप्रतिनिध यदि एक दिन से लेकर एक साल तक विधायक रहता है तो पूर्व विधायक होने पर उसे चालीस हजार रुपये की पेंशन दी जाती है। अगले चार सालों के लिए पूर्व विधायक को आठ हजार रुपये अतिरिक्त पेंशन दी जाती है। यानी पांच साल के एक टर्म में विधायक रहने वाले जनप्रतिनिधि को पूर्व विधायक होने पर कुल 48 हजार रुपये पेंशन मिलती है। उत्तराखंड में 95 पूर्व विधायकों की पेंशन पर हर माह 52 लाख 73 हजार 900 रुपये खर्च हो रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी के जवाब में विस के लोक सूचना अधिकारी, उपसचिव (लेखा) ने ये जानकारी उपलब्ध कराई गई है।

राज्य में सबसे अधिक 91 हजार रुपये पेंशन पूर्व विधायक राम सिंह सैनी ले रहे हैं। राज्य में मौजूदा विधायकों को वेतन व सभी प्रकार के भत्ते मिलाकर प्रतिमाह करीब ढाई लाख रुपये मिलते हैं। इसमें 30 हजार रुपये वेतन, डेढ़ लाख रुपये निर्वाचन भत्ता, ड्राइवर के लिए 12 हजार रुपये, सचिवीय भत्ता 12 हजार, मकान किराए के रूप में 300 रुपये, जनसेवा भत्ता प्रतिदिन दो हजार रुपये।

गरीब उत्तराखंड की विधानसभा में मालदार जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस बार सदन में 70 में से 58 विधायक करोड़पति हैं, पिछली बार यह संख्या 51 ही थी। उत्तराखंड के जनप्रतिनिधियों की औसत सम्पत्ति पांच साल में 4.11 करोड़ से बढ़कर 7.17 करोड़ हो गई है। एडीआर रिपोर्ट के अनुसार नए सदन में करोड़पति विधायकों की संख्या 73 फीसदी से बढ़कर 83 फीसदी हो गई है। भाजपा के 40, कांग्रेस के 15 के साथ ही बसपा के दोनों और एक निर्दलीय विधायक भी करोड़पति क्लब में शामिल है।

एडीआर समन्व्यक के मुताबिक भाजपा विधायकों की औसत आय 6.52 करोड़ है, कांग्रेस विधायकों की औसत आय 35 करोड़ और बसपा विधायकों औसत आय 9.65 करोड़ रुपए है। इस बार विधायकों की औसत आय 2017 में 4.96 करोड़ से बढ़कर 7.56 करोड़ हो गई है। इस तरह पांच साल में विधायकों की औसत आय करीब 2.60 करोड़ बढ़ गई है। 23 विधायकों की कुल सम्म्पत्ति पांच करोड़ से अधिक है। जबकि दो करोड़ से पांच करोड़ के बीच आय वर्ग में 21 विधायक आ रहे हैं। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय इस वित्तीय वर्ष में 2,02,895 रुपए है। राज्य के प्रति व्यक्ति पर औसत 73 हजार का कर्ज है। राज्य पर इस साल तक कुल कर्ज बढ़कर 73,478 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।

पुरोला से निर्वाचित होकर पहली बार सदन में पहुंचे सबसे युवा विधायक सबसे गरीब विधायकों में शामिल है। उनके पास महज 6.5 लाख रुपए की चल सम्पत्ति है। दूसरे स्थान पर गंगोत्री से भाजपा विधायक है, उनके पास भी महज 11.5 लाख की चल सम्पत्ति है। इन दोनों के पास कोई अचल सम्पत्ति नहीं है। राज्य सरकार हर साल कर्ज का ब्याज चुकाने पर ही करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। ऐसे में राज्य विधानसभा में मालदार जनप्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या देख कर गिर्दा का जनगीत ….. सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समंदर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो।
बरबस याद आ जाता है

ये लेखक के निजी विचार हैं।

डॉ० हरीश चन्द् अन्डोला (वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।)

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