यार भैजी! मैं आपको 1993 से देख रहा हूँ आप हमारी गली के नुक्कड़ पर कभी मीटिंग करते थे तो कभी ढपली बजा कर गीत गाते थे पहले आप गाते थे बल  ….
लड़ के लेंगे -भिड़ के लेंगे उत्तराखण्ड ।
अब जब उत्तराखंड मिल गया तो आपने गाना शुरू कर दिया ….
आज प्रजा की आँख तनी है …..
बल क्यों तानी है अब तो आपका उत्तराखण्ड है ?
और आज कल ….
लड़ना है… लंबी लड़ाई है ….  चल रहा है।
हमें ये सब देखते देखते 25 साल हो गए मगर ये कैसी लड़ाई है कि ख़तम ही नहीं हो रही है।
पहले लोग आप को क्रांतिकारी समझते थे मगर अब उन्हीं  लोगों ने मदारी समझना शुरू कर दिया।
पहले खांग्रेस की सरकार आइ तो उसे गलत कहा ,
फिर हमने खाजपा की सरकार बना दी तो उसे भी बेकार कह दिया, फिर खांग्रेस फिर खाजपा …
अब आप ही बताओ कि हम लोग क्या करें ?
   1993 में आप लोगों के साथ जो भीड़ होती थी आज उसी भीड़ के कुछ साथी खाजपा में तो कुछ खांग्रेस के उड़नखटोलों में उड़ते दिखते हैं क्या वो गलत हैं ?
आखिर आप चाहते क्या हो ?
उसके इतने सारे सवालों को भाई ने ध्यान से सुना फिर एक सवाल पूछा -भुला तेरी उमर कितनी है ?
-भैजी 35 का हो गया हूँ ! उसने कहा।
तू 35 साल का हो गया और हमें 40 साल का अनुभव हो गया है इन गीतों को गाने का ! हम लोग अपने गीतों के माध्यम से सरकार को ख़बरदार और जनता को होशियार करने का काम करते हैं, आया समझ में ।
    …पर भैजी मुझे तो नहीं लगता कि आपके गीतों से किसी सरकार या जनता में कोई चेतना आयी हो !
कह तू ठीक रहा है मगर हम, इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते ।
… भैजी 40 साल में से 20 साल कुछ अपने ही गाने बना कर गा लेते  या अपने लोगों को इकठ्ठा करके रखते तो आज भी एक ताकत बने रहते ।
देख भुला ! तू गलत समझ रहा है…ये जो गीत हैं ना,  इन्हें गाना हमारा शौक हैं मगर चुनाव लड़ना लोगों को इकठ्टा करना हमारा काम नहीं है वो दूसरे लोग हैं।
  पर भैजी बिना  “आग” के स्वाहा-स्वाहा कहने से और  लकड़ी करने से हवन भी तो संभव नहीं है ।
देख भुला अब तू जो भी समझ , मगर अपने पास इन सब बातों के लिए टाइम नहीं है …हम यो बस अपनी धुन में गीत गाते हैं और मस्त रहते है ।
हमारे पास और भी काम है इसलिये तू टेंशन मत लिया कर और ये कह कर भैजी वहां से निकल गए ….
भुला वहीँ खड़ा सोच रहा था कि आखिर इन गीतों को गाने का औचित्य ही क्या है जब इस का प्रभाव सही दिशा में ही, ना जा रहा हो , क्या हमारी नियति खांग्रेस को कोसते हुए खाजपा के पाले में , तो कभी खाजपा को गलियाते हुऐ खांग्रेस की गोदी में बैठने की रह गई ….. 
बेरोजगारी ,पलायन, जल जंगल,ज़मीन के गीत गाने वाले सारे लोग भी क्या शौक या टाइम पास के लिए ही यह सब करते होंगे ये सोचते हुए वो आगे बढ़ गया …. 
तभी पीछे अचानक कहीं दूर से आवाज आने लगी…
…..हम मेहनतकश जब इस दुनिया से अपना हिस्सा मांगेंगे ….