वरिष्ठ राज्यन्दोलनकारी व “1994” में देहरादून डीएवी महाविद्यालय के तत्कालीन अध्यक्ष वीरेंद्र पोखरियाल ने आज प्रदेश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि हमारे साथ बने झारखंड राज्य के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने जहां बड़ा फैसला लेते हुए झारखंड आंदोलन में शहीद हुए आंदोलनकारियों को राज्य गठन के 20 साल बाद सम्मान देते हुए उनके आश्रितों एवं आंदोलन में विकलांग हुए लोगों को सरकारी नौकरी में सीधी भर्ती देने का एलान किया है। वहीं दूसरी तरह उत्तराखंड के मुखिया ने  हमारे पुराने घावों को कुरेदने का कार्य किया है । बताते चलें कि उत्तराखंड और झारखण्ड राज्य का निर्माण एक ही साथ किया गया था मगर वहाँ के आंदोलनकारियों के लिए सरकार ने सरकारी नौकरियों में सीधी भर्ती देने का फैसला मंत्रिपरिषद की बैठक में पास कर रिटायर्ड भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक अधिकारी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन करने भी ऐलान किया गया है । दूसरी तरफ़ उत्तराखंड की सरकार ने आज तक पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी के द्वारा दिये गए 10% आरक्षण को हाई कोर्ट में बचाव करवाने में भी विफल ही साबित हुई।

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने निर्णय लिया है कि इसके लिए एक सदस्यीय आयोग बनेगा। छह माह से अधिक जेल में रहने वालों को मासिक 7000 पेंशन मिलेगा। आंदोलनकारियों की मृत्यु होने के बाद उनके आश्रितों को लाभ गृह विभाग ने संकल्प जारी किया।

रांची, अलग झारखंड राज्य की लड़ाई में सक्रिय रहे आंदोलनकारियों को हेमंत सरकार सरकारी नौकरी और सम्मान पेंशन देगी। आंदोलनकारियों को चिन्हित करने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। राज्य सरकार ने निर्णय किया है कि आयोग से वनांचल शब्द हटा दिया जाएगा। इसे आंदोलनकारियों को चिन्हित कर सम्मान व सुविधा-लाभ प्रदान किए जाने के निमित्त बनाया गया आयोग के नाम से जाना जाएगा।
राज्य सरकार ने निर्णय किया है कि आंदोलन के क्रम में जेल जाने वाले को सम्मान पेंशन के तौर पर आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। आंदोलन के क्रम में छह माह से अधिक जेल में गुजारने वालों को 7000 रुपये मासिक पेंशन देने की योजना है। जबकि तीन माह से कम समय जेल में गुजारने वाले आंदोलनकारियों को 3500 हजार और तीन से छह तक जेल में रहने वालों को 5000 रुपये पेंशन मिलेगा।आंदोलनकारी की मृत्यु की स्थिति में उनके आश्रितों को यह लाभ मिलेगा। पुनर्गठित आयोग का कार्यकाल एक वर्ष का होगा। चिन्हितिकरण आयोग को मिले आवेदन के आधार पर दस्तावेजों की जांच की जाएगी, जो आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों को चिन्हित करेगा। इस बाबत अंतिम निर्णय गृह विभाग का होगा। चिन्हित आंदोलनकारियों को प्रतीक चिन्ह एवं प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा। गृह विभाग ने इस वर्ष 25 फरवरी को लिए गए कैबिनेट के निर्णय के आलोक में इससे संबंधित संकल्प प्रकाशित किया है।

 मुज्जफरनगर कांड के दोषियों को सजा दिलवाने का संकल्प लेने वालों ने जब उसी कांड के दोषी रहे अनंत कुमार व बुवा सिंह के वकील को ही जब उत्तराखंड का महधिवक्ता बना दिया हो तो राज्य के शहिदों /आंदोलनकारियों के सम्मान की उम्मीद करना बेमानी है । वर्तमान मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी जो स्वयम भी आंदोलनकारी रह चुके हैं और प्रथम गोली कांड की गवाह रही खटीमा की भूमि से आते हैं वह उत्तराखंड के राज्य के उन आन्दोलनकारीयों को जिन्होंने इस प्रदेश के सुनहरे कल की आस में अपने आज को हमेशा-हमेशा के लिए कुर्बान कर दिया को क्या दे पाएंगे, देखना अभी बाक़ी है। 

 6 माह बाद इस राज्य की पटकथा फिर लिखी जानी है अब ये फैसला इस प्रदेश की आंदोलनकारी शक्तियों को करना है कि वह इस मुद्दे पर किस के साथ खड़ा होता है “