देहरादून, 25 दिसम्बर : चुनावी दौर में उत्तराखंड के नेताओं पर मौकापरस्ती का भूत सवार है। कोई इस्तीफे की धमकी देकर अपनी अहमियत का एहसास कराना चाहता है तो कोई सन्यास की चेतावनी देकर पार्टी को अपनी बात मनवाने पर मजबूर करता दिख रहा है। मौकापरस्ती का आलम यह है कि अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सूबे के बड़े नेता स्वयं को पार्टी से बड़ा सिद्ध करने पर आमादा दिखाई दे रहे हैं।जन-समस्याओं को लेकर किसकी क्या नीति है इस पर चर्चा करना बेकार है ।
बीते कल कैबिनेट की बैठक में इस्तीफे की धमकी देकर काबीना मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने दून से दिल्ली तक भाजपा को हिला कर रख दिया। रात भर चले हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद सुबह खबर आई की… मान गए डॉ हरक सिंह। पार्टी नेताओं ने कहा कि पार्टी में सब कुछ ऑल वेल है, सब चकाचक है। परिवार का मामला था कोई विवाद नहीं है। इससे ठीक एक दिन पूर्व कांग्रेस नेता हरीश रावत ने अपने एक ट्यूट से कांग्रेस को झकझोरने का काम किया गया था। जिसके बाद प्रदेश कांग्रेस के सभी नेताओं को दिल्ली तलब किया गया और शाम को खबर आई कि कदम -कदम बढ़ाए जा कांग्रेस के गीत गाए जा,यह जिंदगी है कांग्रेस की कांग्रेस पर लुटाए जा। मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने की जिद पर अड़े हरीश रावत के कान में ऐसा क्या कुछ हाईकमान ने कह दिया कि वह संन्यास लेते – लेते फिर कांग्रेस के गीत गाते हुए दिल्ली से दून आ गए।
यहां पर यह उल्लेखनीय है कि लंबे समय से सूबे की राजनीति में उठापटक का दौर चल रहा है। कई कांग्रेस के नेता भाजपा के पाले में जा चुके हैं और कई भाजपा के नेता पाला बदलकर कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं। राजनीतिक गलियारों में अभी इस बात की चर्चा आम है कि भाजपा व कांग्रेस के बीच चलने वाली यह उठापटक जारी रहेगी। भाजपा के शीर्ष नेता भले ही अभी डॉ हरक सिंह को मनाने में सफल हो गए हो लेकिन डॉ हरक सिंह जो अभी भी मीडिया के सामने नहीं आए हैं उनके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है कि वह कब क्या करेंगे? और न कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के बारे में कुछ कहना संभव है। वर्तमान में जो हो रहा है वह तो ट्रेलर है पिक्चर तो अभी बाकी है।
वर्तमान हालत को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि अभी सूबे की राजनीति में बड़ी उठापटक बाकी है। जिसकी पटकथा लंबे समय से लिखी जा रही है।