देहरादून, 13 अक्टूबर 2018 : उत्तराखंड आंदोलन के जनगीत। वे गीत, जो सड़कों पर गूंजे-सभाओं में गाए गए। जो लोक जागरण का सशक्त माध्यम बने। वे गीत, जिन्होंने आवाम की आवाज को धार दी। उनकी पीड़ा को-गुस्से को अभिव्यक्ति दी। शनिवार को राजधानी में एक बार फिर गूंजे वे जनगीत। तकरीबन 18 साल बाद उत्तराखंड आंदोलन का वह ऊर्जावान पक्ष जब सामने आया, तो काफी कुछ बदल चुका था।
उस वक्त इन जनगीतों के साथ हवा में लहराने वाली नौजवान मुट्ठियां अब अधेड़ हो चुकीं। उन गीतों को गाने वाले प्रौढ़ संस्कृतिकर्मी अब वृद्धावस्था में प्रवेश कर चुके हैं। बावजूद इसके, गीत वही-अधिकांश गाने वाले कंठ वही और इस सबसे बढ़कर जोश और जुनून वही था, जो 18 साल पहले सड़कों पर होता था। बस, फर्क इतना और कि इस बार सड़क नहीं-सभागार में ये जनगीत गूंजे।
जन संवाद ने किया जनगीतकारों का सम्मान, गूंजे आंदोलन के गीत
मौका था, जनगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का। आयोजन किया जन संवाद समिति ने। प्रभात-फेरियों, मशाल जुलूसों, धरना-प्रदर्शनों, बंद-चक्का जाम में असंख्य बार जिन गीतों को गाया गया, उनके सृजनकर्ताओं को समारोह में सम्मानित किया गया। फिर उन्हीं की अगुवाई में समिति के सांस्कृतिक जत्थे और उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े रहे तमाम लोगों ने इन गीतों को गाते हुए उस संघर्षशील दौर को याद किया।
इन गीतों में कहीं, पहाड़ की उपेक्षा और विकास की झूठी कहानियों को लेकर दिल्ली और लखनऊ की तब की सत्ताओं से सवाल थे, तो कहीं रामपुर तिराहा-मसूरी-खटीमा जैसे कांडों के बाद आक्रोश से उपजी चुनौती। कहीं, मैदानों से लेकर सुदूर पहाड़ की पगडंडियों तक जन-विस्फोट की तस्वीर उभरती थी, तो कहीं सन्नाटे को तोड़ कर लंबी लड़ाई के लिए जुटे रहने का आह्वान। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक ने बतौर मुख्य अतिथि जनगीतकारों को सम्मानित किया।
समिति के अध्यक्ष बच्चीराम कौंसवाल ने समारोह की अध्यक्षता और सुनील कैंथोला ने संचालन किया। जनगीतकारों की अगुवाई में संस्कृतिकर्मी और आंदोलनकारी जयदीप सकलानी व सतीश धौलाखंडी, समेत जन संवाद के सांस्कृतिक जत्थे ने जनगीत गाकर माहौल में जोश भरा। इस दौरान गैरसैंण राजधानी की गूंज भी लगातार हुई।
आंदोलन के इन जनगीतकारों को किया गया सम्मानित
नरेंद्र सिंह नेगी, डॉ. अतुल शर्मा, बल्ली सिंह चीमा, जहूर आलम, गिरीश तिवारी गिर्दा (मरणोपरांत), अवधेश कुमार (मरणोपरांत), निरंजन सुयाल, चंदन सिंह नेगी, सुरेंद्र भंडारी आदि।
कुछ गीत, सुनाई दी जिनकी गूंज
-उठा जागा हे उत्तराखंडियों-सौं उठाणो बगत ऐगे, उत्तराखंड को मान-सम्मान बचाणो बगत ऐगे…। (नरेंद्र सिंह नेगी)
– ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के…। (बल्ली सिंह चीमा)
– अब तो सड़कों पर आओ ओ शब्दों के सौदागर, अब तो होश में आ जाओ शब्दों के बाजीगर…। (डॉ. अतुल शर्मा)
– ये सन्नाटा तोड़ के आ, सारे बंधन छोड़ के आ, तेरी है ये सारी दुनिया तेरी है, तू तेरा-मेरा छोड़ के आ…। (जहूर आलम)
आंदोलन के फोटोग्राफ्स की प्रदर्शनी भी लगाई:
इस दौरान राज्य आंदोलन के दौरान खींचे गए छायाकार अजय गुलाटी के चित्रों की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। मशाल जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। प्रदीप कुकरेती, रामलाल खंडूरी, योगेश भट्ट, सुदेश सिंह, मोहन रावत, सुरेश नेगी समेत काफी आंदोलनकारी इस दौरान मौजूद रहे