देवभूमि उत्तराखंड को सैनिकों का प्रदेश भी कहा जाता है। माना जाता है कि राज्य के हर घर से औसतन एक आदमी सेना में होता है। मगर प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए एक वीर की शहादत के 104 वर्ष बीत जाने के बाद भी उसके परिजनों को गुमनामी की जिंदगी जीनी पढ़ रही है।

थराली विकासखंड के अंतर्गत सोल पट्टी के गूमण गांव में जन्मे शीशराम पुत्र विश्वरूप देव 1914 से 19 तक जारी प्रथम विश्व युद्ध में भारत की ओर से विदेशी सरजमीं पर युद्ध लड़ने वाले 11 लाख भारतीय सैनिकों में शामिल थे। जिन्होंने ब्रिटिश सेना के साथ मिलकर देश को आजाद कराने के आश्वासन पर विश्व युद्ध में भाग लिया था। किंतु जब युद्ध समाप्त हुए तो करीब 74 हजार भारतीय सैनिक लापता थे। जिनमें शीशराम भी शामिल थे।

युद्ध समाप्ति के बाद अन्य सैनिकों की तरह ही शीशराम को भी शहीद माना गया और ब्रिटिश सरकार ने शहीद को फ्रीडम आफ होनर्स का खिताब देते हुए शीशराम के परिजनों को बकायदा एक मैडल भी भेजा था। जो कि आज भी शहीद के परिजनों के घर के अंदर स्थित पूजा घर में सुरक्षित है। आजादी के 75 वर्षों के बाद भी शहीदों शीशराम के परिजनों को जो सम्मान मिलना चाहिए था, हमारी सरकार उसे आज तक भी नही दे पाई है।

शहादत के 104 वर्षों के बाद अब शीशराम के प्रपौत्रों भगवती प्रसाद चंदोला एवं भानु चंदोला को अपने दादा की शहादत का पता चला तो उन्होंने शहीद की स्मृति की चिरस्थाई रखने के लिए प्रधानमंत्री केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री प्रदेश के सैनिक कल्याण मंत्री आदि को पत्र भेजे हैं। शहीद के शहादत का प्रचार-प्रसार करने एवं परिजनों अन्य शहीदों की तरह ही अनुमन्य सरकार सहायता एवं सहयोग दिए जाने की मांग की हैं। शहीद के प्रपौत्रों के पत्र पर मंत्री ने सचिव सैनिक कल्याण एवं मंत्री के द्वारा केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री को शहीद परिजनों को अन्य शहीदों के परिजनों की भांति सम्मान व सहयोग राशि देने हेतु अपनी सिफारिशें तो कर दीं हैं।

क्या सरकार दिला पायेगी सम्मान ?

आज जबकि देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ का अमृत महोत्सव के जश्नान में सराबोर है। ऐसे में अब देखना है कि क्या भारत सरकार प्रथम विश्व युद्ध के इस गुमनाम नायक को सम्मान दें पाती हैं या नही। आजादी के इस सिपाही को क्या उसकी पहचान मिल पायेगी ? वैसे जानकारों का कहना है कि जैसा प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण है उससे तो लगता है कि इन गुमनाम नायक का बलिदान भी लोगों के सामने जल्द आ सकता है।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

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