क्या आपको पता है, आज 50 वर्ष तक की अवस्था आते आते शरीर में अनगिनत रोगों का वास क्यों हो जाता है ? कैंसर, चर्म रोग , अंग प्रत्यंग में कुछ न कुछ बीमारियों का अधिपत्य ! ऐसा क्या है कि पहले लोगों को इतना स्वादिष्ट व्यंजन, फाइव स्टार होटलों का खाना, तरह तरह के पकवान नहीं भी मिलते थे पर वो 80 वर्ष तक की अवस्था में तंदरुस्त दीखते थे ? चलिए अब आते हैं विषय पर ! रात में बाहर निकलिए और आसमान में देखिये, आप मात्र बमुश्किल से बीस तीस तारे गिन पायेंगे और वह भी जो सबसे चमकीला होगा जानते हैं क्यों ? प्रकाश प्रदुषण के कारण , कृत्रिम रौशनी के कारण ! वैसे भी हमने वातावरण को धूएँ इत्यादि से प्रदूषित कर रखा है और बची खुची कसर हम लोग प्रकाश प्रदुषण फैला कर कर देते हैं
शायद बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि इससे हमें कितनी हानि होती है ?
चलिए इस पर भी कुछ प्रकाश डालते हैं ! ग्रह, नक्षत्रों , तारों , चन्द्रमा से आने वाले प्रकाश की किरणें पृथ्वी के जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक तत्व हैं ! ये प्रकाश पेड़ पौधे , वनस्पतियों में औषधीय गुणों का विकास करते हैं ! इनके प्रकाश से औषधियाँ पुष्ट होती हैं ! अन्न में जो प्रदीप्त और बलवर्धक शक्तियां होती है , वह इसी रात में होने वाले चन्द्र, नक्षत्रों के प्रकाश में बलिष्ट होती हैं ! कोई भी पौधा है उसके औषधीय गुण इस बात पर निर्भर करता है कि वह पौधा कहाँ पाया जा रहा है ! आपने देखा होगा , पहाड़ों पर , हिमालय की श्रृंखलाओं पर , या मनुष्यों की गतिविधियों से दूर स्थानों पर की औषधियाँ बहुत ही पुष्टकारक मानी जाती हैं और उनका मूल्य भी अधिक होता है !
ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि ऐसी जगहों पर चंद्रमा , नक्षत्रों , तारों से आने वाले प्रकाश पर कोई व्यवधान नहीं पड़ता और सीधे सीधे वह पौधों पर पड़कर उनमें उनके गुणों का विकास करती हैं
कई तारों, नक्षत्रों के प्रकाश को आने में पृथ्वी पर कई वर्ष , महीने लग जाते हैं जिसे अपने ज्योतिष विज्ञान में अमृत कारक योग , या सर्वार्थ सिद्धि योग इत्यादि के नाम से जाना जाता है ! जैसे आपने सुना होगा नवरात्रि ( शारदीय / वासंतिक ) इन दोनों नौ दिनों के समय में पृथ्वी पर ऐसे नक्षत्रों के प्रकाश पहुँचते हैं जिनको आने में काफी समय लग जाता है ! इसीलिए इन नौ दिनों में जागरण का महत्व है , ताकि जागृत अवस्था में मनुष्य इन प्रकाश का लाभ लेकर बल शक्ति इत्यादि से पुष्ट हो सके !हमारे ऋषि मुनियों ( Scientists) ने इतना तार्किक विधान बनाया है कि आप इनसे अध्यात्मिक लाभ के साथ साथ स्वास्थ्य लाभ भी ले सकें !बहुत सारे व्रत, उपवास इत्यादि में रात्रि जागरण का विधान होता है ताकि चन्द्रमा की, तारों की , नक्षत्रों की रोशनी लेकर हम अपने आप को पुष्ट कर सके पर हम लोगों ने इसके पीछे का भाव भुला दिया और लगे बस भूखे रहने का नाटक करने लगे ।
आज भी डॉक्टर्स किसी को भी स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए बोलते हैं तो किसी सुदूर पहाड़ों पर जाने के लिए बोलते हैं या किसी प्राकृतिक स्थान पर जाने के लिए बोलते हैं ताकि वहाँ प्रकृति से सानिध्य प्राप्त कर उसकी शक्तियों से अपने आप को बलिष्ठ कर सकें आज आपको बड़े बड़े गोल लाल टमाटर दिखते तो हैं , पर उनमें जो टमाटर के गुण हैं वह नाममात्र का है ! केमिकल से हम इन सब्जियों को चमकदार और बड़ा तो बना लेते हैं , पर उनके अन्दर के गुण विकसित नहीं कर पाते। यह ऐसा ही है जैसे कुरूप स्त्री अपने आप को मेक अप से ढक कर सुन्दर दिखने लगे पर उसकी कुरूपता सामने तो आनी ही है ।
ऐसे ही कृत्रिम रासायनिक उत्पादों से बने ये शाक सब्जी अपने गुण तरह तरह की बीमारियों के रूप में लाते हैं।
पहले लोग खुले आसमान के नीचे सोते थे । याद है गावों में पुरुष लोग बाहर खेतों में तारों से भरे चादर के नीचे सोते थे और स्त्रियाँ और बच्चे छत पर । इससे उन्हें प्रकृति से रात में होने वाले प्रकाश का लाभ मिलता था । परन्तु आज लोगों ने बंद कमरे में प्रदुषण युक्त कमरों में सोना शुरू कर दिया है । जहां निरंतर प्लास्टिक , पेंट , और तरह तरह के यंत्रों से निकलने वाले प्रदुषण युक्त atoms, molecules जैसी गन्दी हवा का निवास होता है । इसी में वह अपने आप को आधुनिक मानकर खुश हो रहे हैं और हथेली भर भर के दवाई खाकर फिर एक दिन 60 वर्ष तक की आयु में कैंसर , और अन्य रोगों से गले मिलकर मृत्यु को प्राप्त हो जा रहे हैं ।
कोई भी प्राकृतिक प्रकाश जो रात में होता है वह पृथ्वी तक पहुँच ही नहीं पा रहा है ! और जो पहुँच रहा है तो , लोग अपने आप को घरों में बंद करके उससे लाभ ही नहीं ले पा रहे हैं !
इसीलिए इस बार प्रण करें कि इस शरद पूर्णिमा के अवसर पर सब लोग 3 घंटे के लिए कृत्रिम प्रकाश बंद करके छत पर , पार्क में पूर्ण चन्द्र के शरद प्रकाश का लाभ लें और अपने को स्वस्थ्य करें ! इसीलिए खीर बनाकर चन्द्रमा के प्रकाश में रखने का विधान है । ताकि चन्द्रमा का प्रकाश उसमें अपनी औषधीय गुण डालकर उसे औषधीय युक्त कर दे ।
चन्द्रमा को अर्घ्य देने का विधान इसी कारण बनाया गया , सूर्य को अर्घ्य देने का विधान इसी कारण बनाया गया ! चन्द्रमा की किरणे अतिघाती तन्तु या पेंटाथियलिक टंटेकिल्स के अति विरल लगभग 00.25 तरन (प्रोविटी) या इससे कम की होती हैं ! जिससे एपिडेर्मिक सिस्टम बिना किसी प्रतिरोध के इसका संश्लेषण कर लेता है, तथा मेटाबोलिक ड्यूप्लेण्डियासिस के माध्यम से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nerves System) अपने सम्प्रदान निलय (Diversion junction) के कवच के रूप में इसे कोशिकीय भित्ति (Cellular Wall) की तरह चिपका लेता है ! कोशिका के फ्रक्टोरल सेल्यूलाइड का विलयन चन्द्रमा के पेंटाथिलिक रिप्रोवल्स के साथ बड़ी आसानी से हो जाता है और इस प्रकार प्रत्येक ग्रंथि के मूलभूत प्रतिजीवद्रव्य या न्यूक्लिक एसिड तक इसका संवहन आसानी से हो जाता है !यही कारण है कि चन्द्रमा को “औषधिपति” भी कहा गया है।
क्या अब आप शरद पूर्णिमा की रात्रि में सब कृत्रिम प्रकाश बंद करके आप चन्द्रमा के प्रकाश का लाभ लेकर अपना मानसिक और शारीरिक उन्नति करेंगे ?
हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार यह 13 अक्टूबर को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर रातभर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करता है। ऐसा भी माना जाता है कि इस तिथि में ही धन की देवी मां लक्ष्मी जी का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्मी माता आसमान में विचरण करती हैं और जागने वाले भक्तों को धन-वैभव का वरदान देती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन ही वाल्मिकि जयंती भी मनाई जाती है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। वहीं, अगर कुंवारी कन्याएं यह व्रत रखें तो उन्हें मनवांछित पति मिलता है।