डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड में तिमले का न तो उत्पादन किया जाता है और न ही खेती की जाती है। यह एग्रो फोरेस्ट्री के अन्तर्गत अथवा स्वतः ही खेतों की मेड़ों पर उग जाता है जिसे लोग बेहद चाव से खाते हैं। इसकी पत्तियां बड़े आकार की होने के कारण पशुचारे के लिये यह बहुतायत में प्रयुक्त होती हैं । तिमला न केवल पौष्टिक एवं औषधीय महत्व रखता है अपितु पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकीय में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। कई पक्षी तिमले के फल का आहार लेते हैं जिससे उनकी के माध्यम से इसका बीज एक जगह से दूसरी जगह फैला जाता है. कई सारे Wasp प्रजातियां तिमले के परागण में सहायक होती हैं।सम्पूर्ण विश्व में फाईकस जीनस के अन्तर्गत लगभग 800 प्रजातियां पायी जाती हैं। यह भारत, चीन, नेपाल, म्यांमार, भूटान, दक्षिणी अमेरिका, वियतनाम, इजिप्ट, ब्राजील, अल्जीरिया, टर्की तथा ईरान में पाया जाता है। जीवाश्म विज्ञान के एक अध्ययन के अनुसार यह माना जाता है कि फाईकस करीका अनाजों की खोज से लगभग 11000 वर्ष पूर्व माना जाता है। पारम्परिक रूप से तिमले में कई शारीरिक विकारों को निवारण करने के लिये प्रयोग किया जाता है जैसे अतिसार, घाव भरने, हैजा तथा पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों के रोकथाम हेतु। कई अध्ययनों के अनुसार तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषकतत्व की भी पूर्ति भी हो जाती है। एक रिसर्च के अनुसार तिमला व्यावसायिक रूप से उत्पादित सेब तथा आम से भी बेहतर गुणवत्तायुक्त होता है। वजन बढ़ाने के साथ-साथ इसमें पोटेशियम की बेहतर मात्रा होने के कारण सोडियम के दुष्प्रभाव को कम कर रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।वेल्थ ऑफ इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार तिमला में प्रोटीन 5.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेड 27.09 प्रतिशत, फाईवर 16.96 प्रतिशत, कैल्शियम 1.35, मैग्नीशियम 0.90, पोटेशियम 2.11 तथा फास्फोरस 0.28 मि0ग्रा0 प्रति 100 ग्राम तक पाये जाते हैं। इसके साथ-साथ पके हुये तिमले का फल ग्लूकोज, फ्रूकट्रोज तथा सुक्रोज का भी बेहतर स्रोत माना जाता है जिसमें वसा तथा कोलस्ट्रोल नहीं होता है। अन्य फलों की तुलना में फाइवर भी काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा ग्लूकोज तो फल के वजन के अनुपात में 50 प्रतिशत तक पाया जाता है जिसकी वजह से कैलोरी भी बेहतर मात्रा में पायी जाती है।तिमला में पोषक तत्वों के साथ-साथ फिनोलिक तत्व भी मौजूद होने के कारण इसमें जीवाणुनाशक गुण भी पाया जाता है तथा एण्टीऑक्सिडेंट प्रचुर मात्रा में होने की वजह से यह शरीर में टॉक्सिक फ्री रेडिकल्स को निष्क्रिय कर देता है तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में कई सारे उत्पादों को बनाने में मुख्य अवयव के रूप में प्रयोग किया जाता है। पोखरा विश्वविद्यालय, नेपाल 2009 के अनुसार तिमला में एण्टीऑक्सिडेंट की मात्रा 84.088 प्रतिशत (0.1 मि0ग्रा0 प्रति मि0ली0) तक पाया जाता है।
तिमला एक मौसमी फल होने के कारण कई सारे उद्योगों में इसको सुखा कर लम्बे समय तक प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में तिमले का उपयोग सब्जी, जैम, जैली तथा फार्मास्यूटिकल, न्यूट्रास्यूटिकल एवं बेकरी उद्योग में बहुतायत मात्रा में उपयोग किया जाता है। चीन में तिमले की ही एक प्रजाति फाईकस करीका औद्योगिक रूप से उगायी जाती है तथा इसका फल बाजार में पिह के नाम से बेचा जाता है। पारम्परिक रूप से चीन में हजारो वर्षो से तिमले का औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। विश्व भर में 1.1 मिलियन टन तिमले का उत्पादन पाया होता है जिसमें सर्वाधिक टर्की में होता है। तिमला के फल मे लगभग 1.76% तेल पाया जाता है। तिमला के तेल मे चार फैटी एसिड्स (वोसीसिनिक एसिड, अल्फा लाइनोलेनिक एसिड, लाइनोलेनिक एसिड तथा ऑलिक एसिड) पाये जाते है, जो कि कैंसर तथा दिल के विभिन्न बीमारियो के इलाज मे कारगर है। नियमित संतुलित मात्रा मे तिमला के फल का सेवन करने से कोलेस्ट्रोल का स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है।इसके अलावा तिमला का फल जेम, जेली तथा अचार आदि बनाने मे भी किया जाता है। पारिस्थितिक संतुलन मे तिमला का पौधा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राचीन समय मे तिमला के पत्तियो का प्रयोग खाना खाने की प्लेट (पत्तल) के रूप मे किया जाता था। किंतु वर्तमान मे प्लास्टिक के प्लेटो का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है, जिस कारण प्रतिवर्ष पर्यावरण प्रदूषण मे वृद्धि हो रही है। तिमला के पत्तियो का प्रयोग धार्मिक कार्यों मे भी किया जाता है, जिस कारण इसे पीपल के पेड़ की तरह पवित्र माना जाता है। सरकार यदि इस प्रकार के पौष्टिक एवं औषधिय गुणोयुक्त जंगली फलो के लिए कोई ठोस नीति जैसे मूल्यवर्धन, मार्केटिंग, नेटवर्किंग बनाये तो यह किसानो तथा नौजवानो के लिए स्वरोजगार व आर्थिकी हेतु एक बेहतरीन विकल्प है। पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी की इस पहल से निश्चित ही पहाड़ी अंजीर बेड़ू का स्वाद लोग अब घर बैठे ही ले सकेंगे.पहाड़ी अंजीर बेड़ू ने बने उत्पाद जैम, स्क्वैश, चटनी, जूस आदि उत्पाद हिलांस पर हैं पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान की पहाड़ी उत्पादों को विश्व स्तर तक पहचान दिलाने की पहल के अंतर्गत ही बेड़ू से अलग-अलग उत्पाद बनाकर ‘हिलांस’ के बैनर तले पूरे देश में बेचने की तैयारी जिला प्रशासन कर रहा है