किसानों को सम्मान और सामाजिक सुरक्षा

किसानों को सम्मान और सामाजिक सुरक्षा देने के मुद्दे पर एकजुट हुए प्रदेश के 25 संगठन : कल /आज होगा देशव्यापी प्रदर्शन

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति से जुड़े देश के 300 से अधिक संगठनों ने मिलकर कल 16 मई को किसानों को मान-सम्मान और सामाजिक सुरक्षा देने के मुद्दे पर देशव्यापी प्रदर्शन का आह्वान किया है। इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में भी किसानों और दलित-आदिवासियों से जुड़े 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हो गए हैं। उन्होंने ग्रामीणों से अपील की है कि केंद्र की मोदी सरकार की कृषि व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें और फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए अपने-अपने घरों से या गांव की गलियों में कतार बनाकर अपने संगठन के झंडे-बैनरों के साथ अपनी मांगों के पोस्टर लहरायें और आधे घंटे नारेबाजी करें। ग्रामीणों को अपनी सुविधानुसार विरोध प्रदर्शन का समय तय करने के लिए कहा गया है। आयोजकों के अनुसार, इन सभी संगठनों के साथ आने से प्रदेश के सैकड़ों गांवों में ये विरोध प्रदर्शन आयोजित होंगे।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने बताया कि इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कृषि कार्यों को मनरेगा से जोड़ने और प्रवासी मजदूरों सहित सभी ग्रामीणों को काम देने; रबी फसलों, वनोपजों, सब्जियों, फलों और दूध को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने और समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत का डेढ़ गुना देने; सभी ग्रामीण परिवारों को तीन माह तक 10000 रुपये मासिक आर्थिक सहायता देने; राशन दुकानों के जरिये सभी आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुएं सस्ती दरों पर प्रदान करने और राशन वितरण में धांधली बंद करने; शहरों में फंसे ग्रामीण मजदूरों को उनसे यात्रा व्यय वसूले बिना सुरक्षित ढंग से उनके गांवों में पहुंचाने और बिना सरकारी मदद पहुंच चुके प्रवासी मजदूरों को 5000 रुपये प्रवास भत्ता राहत के रूप में देने; खेती-किसानी को हुए नुकसान के लिए प्रति एकड़ 10000 रुपये मुआवजा देने; किसानों से ऋण वसूली स्थगित करने और खरीफ सीजन के लिए मुफ्त बीज, खाद और कीटनाशक देने; किसानों और ग्रामीण गरीबों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज़ से मुक्त करने; डीजल-पेट्रोल की कीमत घटाकर 22 से 25 रुपये के बीच करने; किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाकर 18000 रुपये वार्षिक करने और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने की मांग उठाई जा रही है।

उन्होंने कहा कि कोरोना संकट से निपटने के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा जो अनियोजित और अविचारपूर्ण लॉक डाऊन किया गया है, उसका सबसे ज्यादा नुकसान ग्रामीण गरीबों, किसानों और प्रवासी मजदूरों को उठाना पड़ रहा है। इन तबकों की आजीविका छीने जाने और खेती-किसानी को हुए नुकसान के कारण वे भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार की कोई हमदर्दी इस सबसे पीड़ित तबके के साथ नहीं है और सबसे संकटपूर्ण समय में भी उनकी समस्याओं की अनदेखी की जा रही है। महामारी की त्रासदी झेल रहे इन सबसे ज्यादा गरीब तबकों को इस समय सीधे नगद सहायता और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये पोषण आहार की जरूरत है, लेकिन केंद्र सरकार की आर्थिक चिंता में पूंजीपति और कॉरपोरेटों को छोड़कर और कोई तबका नहीं है। जो किसान समुदाय पूरे देश का पेट भरने के लिए सतत प्रयत्नशील है, केंद्र सरकार द्वारा उसका पेट भरने की चिंता न करना उसकी संवेदनहीनता को ही बताता है। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार सरकारी गोदामों में जमा आठ करोड़ टन अनाज का उपयोग देशवासियों को भुखमरी से बचाने के लिए करें। जो किसान पूरी दुनिया का पेट भरता है, उसका पेट भरने की जिम्मेदारी से केंद्र सरकार मुकर नहीं सकती।

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कृषि क्षेत्र के लिए घोषित पैकेज को निराशाजनक बताते हुए किसान नेताओं ने कहा कि बैंकों से कर्ज दिए जाने और बजट में पूर्व घोषित योजनाओं को ही पैकेज के रूप में पेश करना किसानों के साथ सीधी धोखाधड़ी है। जब तक कानून बनाकर फसल को सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता और किसानों को कर्जमुक्त नहीं किया जाता, खेती-किसानी की हालत नहीं सुधारी जा सकती। मनरेगा को भी कृषि कार्यों से जोड़ने की जरूरत है, तभी अपने गांवों में पहुंचे करोड़ों प्रवासी मजदूरों को काम देना संभव होगा। इसी प्रकार, गांवों के जिन मजदूरों ने अपना शरीर गलाकर इस देश के औद्योगिक विकास में अपना योगदान दिया है, आज संकट के समय उनके घरों में उन्हें सुरक्षित पहुंचाना भी केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी है।

प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर इस आंदोलन में छत्तीसगढ़ किसान सभा के संजय पराते, ऋषि गुप्ता, सुखरंजन नंदी, कपिल पैकरा, राकेश चौहान, नंद कुमार कश्यप; किसानी प्रतिष्ठा मंच और भारत जन आंदोलन के विजय भाई; छग प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा, राजकुमार गुप्ता; जिला किसान संघ राजनांदगांव के सुदेश टीकम; अभा क्रांतिकारी किसान सभा के तेजराम विद्रोही; छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे; छमुमो मजदूर कार्यकर्ता समिति के कलादास डहरिया; हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वरसिंह अर्मो; राष्ट्रीय किसान समन्वय समिति और छग आदिवासी कल्याण संस्थान के एस आर नेताम, छग किसान-मजदूर महासंघ के पारसनाथ साहू; किसान संघर्ष समिति कुरूद के लीलाधर साहू, बिसाहूराम साहू; स्वाभिमान मंच के सुमिरन गुप्ता; दलित-आदिवासी मंच की राजिम केतवास; आदिवासी एकता महासभा के बाल सिंह, सुरेन्द्रलाल सिंह, कृष्ण कुमार; छग किसान महासभा के नरोत्तम शर्मा; आदिवासी महासभा के मनीष कुंजाम; छग प्रदेश किसान सभा के अनिल शर्मा; किसान जन जागरण मंच के सोहन पटेल और लक्ष्मीलाल पटेल; किसान-मजदूर संघर्ष समिति के लोकनाथ नायक; किसान संघ कांकेर के गिरवर साहू; जनजाति अधिकार मंच के केशव शोरी; आंचलिक किसान संगठन के नंद किशोर बिस्वाल और छत्तीसगढ़ कृषक खंड के मेवालाल जोगी सहित अनेक किसान नेता शिरकत करेंगे।

सभी किसान संगठनों और नेताओं की ओर से