आज रस्‍किन बांड का जन्‍मदिन है। वह 88 वर्ष के हो गए हैं। उन्होंने अब तक करीब 500 कहानियां और 6-7 उपन्यास लिखे हैं। उत्तराखंड के हिल स्टेशन मसूरी में जन्में और यहीं पले-बढ़े बांड के उपन्यास और कहानियों पर श्याम बेनेगल और विशाल भारद्वाज जैसे चर्चित निर्देशन फिल्म बना चुके हैं। तो कई कहानियों पर लघु फिल्में और सीरियल भी बने हैं। बच्चों के लेखक के रूप में लोकप्रिय रस्‍किन बांड ब्रिटिश मूल के हैं। फिल्म अभिनेता/निर्माता शशि कपूर और निर्देशक श्याम बेनेगल ने 80 के दशक में रस्‍किन बांड के उपन्यास ‘फ्लाइन ऑफ़ पिजन्स’ पर ‘जुनून’ नाम से खूबसूरत और चर्चित फिल्म बनाई थी। उस समय इस फिल्म को काफी सराहा और पसंद किया गया था। फिल्म में शशि कपूर के अलावा शबाना आजमी, नफीसा अली, टाम अल्टर जैसे दिग्गज कलाकारों ने काम किया था।

निर्देशक और निर्माता विशाल भारद्वाज ने ने रस्किन बांड की फिल्म ‘सुज़ैन्स सेवेन हसबैंड’ पर ‘ सात खून माफ़’ जैसी रोमांटिक-थ्रिलर फिल्म बनाई। सात खून माफ एक डार्क फिल्म है जिसकी मुख्य पात्र सुजैन करीब छह लोगों से शादी करती है और उनमें छह लोगों को मौत के घाट उतार देती है। उसे सच्चे प्यार की तलाश होती है, जो उसे नहीं मिल पाता है। फिर भी सच्चे प्यार पर उसका भराेसा बना रहता है। फिल्म में प्रियंका चोपड़ा, इरफान खान, नसरूद्दीन शाह, नील नितिन मुकेश जैसे कलाकारों ने काम किया है। रस्किन बांड की कहानी द ब्लू अंब्रेला पर विशाल भारद्वाज ने इसी नाम से फिल्म बनाई है। फिल्म की कहानी के केन्द्र में एक बच्ची है जो अपनी मां और भाई के साथ पहाड़ों पर रहती है। कहानी उस बच्ची और पास मौजूद एक छाते के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म में दिग्गज कलाकार पंकज कपूर ने काम किया है। इस फिल्म को समीक्षाें द्वारा काफी सराहा गया है।

भार्गव सैकिया ने रस्किन बांड की कहानी ‘द ब्लैक कैट’ पर 20 मिनट की लघु फिल्म बनाई है। फिल्म को स्कूली बच्चे, बड़े और सिनेमा प्रेमियो ने खूब पसंद किया था। फिल्म में दिग्गज अभिनेता टॉम ऑल्टर रस्किन बॉण्ड के किरदार में हैं। इसके साथ ही बांड की शॉर्ट स्टोरीज पर दूरदर्शन पर एक धारावाहिक एक था रस्टी भी प्रसारित किया जा चुका है। रस्किन बांड को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 1957 में कामनवेल्थ के जॉन लेवेलिन रीशे पुरस्कार और 1992 में साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित 1999 में पदम श्री और 2014 में पदम भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। रस्किन बॉन्ड को 1957 में इंग्लैंड में जॉन लेवन राइस मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वहीं 1992 में अंग्रेजी लेखन के लिए उनकी लघु कहानियों के संकलन ‘आर ट्रीज स्टिल ग्रो इन देहरा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है.

1999 में रस्किन बॉन्ड को बाल साहित्य में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से और 2014 में पद्मविभूषण से अलंकृत किया जा चुका है. दिल्ली सरकार द्वारा 2012 में उन्हें लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड एवं गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा रस्किन बॉन्ड को पीएचडी की मानद उपाधि से विभूषित किया गया है. अपने मौसम और हरियाली के अलावा देहरादून और मसूरी की एक और विशेष पहचान हैं। वो है मशहूर अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड। दूसरे शब्दों में कहें तो रस्किन बांड का साहित्य भी बहुत हद तक दोनों पहाड़ी शहरों के विश्व प्रसिद्ध ख्याति का परिचायक है। उनका कहना है कि 1934 में कसौली में जन्म और देहरादून में सत्रह वर्षीय नवयुवक होने तक का समय गुजारने के बाद दूसरे कई अंग्रेजों की तरह ही रस्किन भी रोजी-रोटी की तलाश में लंदन चले गए थे । यह 1951 के आसपास की बात है जब भारत आजाद हो चुका था। लेकिन खूब घने पेड़ों के बीच बसे उनकी दादी के घर में बिताए हुए बचपन के दिन और हिंदुस्तानी साथियों की याद ब्रिटेन में हमेशा के लिए बस जाने से उनका मोहभंग करती रहती। यही यादें सहारा बनीं “द रुम ऑन द रूफ” उपन्यास लिखने में। उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुआ और इससे उनकी जो कमाई हुई, उन पैसों से उन्होंने ‘स्वदेश’ यानी भारत वापसी की। उपन्यास की कथावस्तु का केंद्र देहरादून शहर था जिस पर उन्हें अपने समय का एक प्रसिद्ध पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । उसके बाद जीवन यापन के लिए उन्होंने लेखन को ही सहारा बना लिया। रस्किन बॉन्ड की लेखन शैली बेहद सहज और सरल रही इसलिए जल्द ही वह बेस्टसेलर लेखकों में शामिल हो गए।

 दूषित होते पर्यावरण की वजह से जिन बीमारियों ने जन्म लिया उसकी चपेट में कोई किसी का अपना आया और वो अब कहाँ है जाहिर सी बात है अस्पताल इसके बारे में बेहतर जानते है कुछ ऐसा ही कहने की कोशिश कर रहे है कवि  और लेखक रस्किन बांड खास तौर से देहरादून और मसूरी के प्राकृतिक सौंदर्य को निर्माण और विकास के नाम पर की गई दुर्गति को इस कविता में  उकेरा है. देहरादून और मसूरी को उत्तराखंड में एक ज़माने में ‘खुशी के जुड़वां शहर’ कहा जाता था.आंकड़ों की मानें तो यहां लगातार आबादी का बढ़ना, पर्यावरण की कीमत पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और बड़े बड़े भवनों का खड़ा होना साफ कारण रहा है कि यहां वेस्ट मैनेजमेंट बदतर हुआ है और जलस्रोतों को भारी नुकसान पहुंचा है. पिछले कुछ ही समय में ग्लेशियर से लेकर बादलों के फटने तक से भारी आपदाएं भी उत्तराखंड के प्राकृतिक असंतुलन की कहानी कहती हैं.  रस्किन बांड का पहाड़ों के प्रति समर्पण और देहरादून व मसूरी के प्रति काफी गहरा लगाव था। रस्किन का दून घाटी के प्रति गहरा भावात्मक लगाव से ही  दून घाटी की खूबसूरती व प्राकृतिक सौंदर्य उनके लेखन में उभर कर आई।

 साल 2016 में एक कार्यक्रम में  उत्तराखंड के राज्यपाल  ने  रस्किन बांड को  सम्मानित किया था। इसी  दौरान बॉन्ड ने देहरादून- मसूरी  के लिये अपने लगाव  को बुद्धिजीवियों के साथ साझा किया। उन्होंने अपने किशोरावस्था में देहरादून से लंदन जाने तथा लंदन से वापस देहरादून की खूबसूरत वादियों में लौट आने , दोस्तों, पहाड़ों, पेडों और देहरादून की पर्यावरण से जुड़ी अपनी स्मृतियों के बारे में बताया । जो उनके पर्यावरण के प्रति प्रेम को दर्शाता  है रस्किन बांड  के कई ऐसे लेखन है जिसमें उन्होंने प्रकृति से जुड़ाव  को एक अलग अंदाज में बताया है । उनके उपन्यास  ‘पैन्थर्स मून’ की बात  करें तो इसमें जंगली जीव  और इंसानों  के संबंधों  को बड़ी खूबसूरती से पेश किया है। जो वाकई में वास्तविकता को दर्शाता है । उनका यह  लेख एक खूंखार तेंदुए पर आधारित तथा लेकिन उन्होंने इसके जरिये शिकारियों के लालच  और  अंधाधुंध विकास  के  आतंक  से  प्रकृति को नुकसान पहुँचने  और   जानवरों को भी अप्राकृतिक बनने को मजबूर करने की वास्तक़िता से लोगों को रूबरू कराया।  जलवायु परिवर्तन के प्रति चिंतन देखा गया है। उन्होंने अपना ये दर्द किसी उपन्यास से नही एक छोटी कविता से साझा किया है। आखिर वहां चिंतित क्यों ना हो, वो कई साल से देहरादून और मसूरी की उन वादियों में रह रहे है जो अपनी प्रकृतिक खूबसूरती  के लिए देशभर में मशहूर है ।

रस्किन 1964 में पहली बार मसूरी आये थे तब से वह यहाँ रह रहे है मसूरी में अपने 57 साल के जीवन काल में  उन्होंने जरूर पर्यावरण के बदलते प्रभाव को महसूस किया होगा। अगर हम रस्किन के बिताए वर्षों को उनकी कविता से महसूस करें तो हमें भी मसूरी की वादियों में जलवायु परिवर्तन का एहसास होगा। रस्टी’ और ‘अंकल केन’ जैसे किरदारों के साथ बच्चों की कल्पनाओं को रंगीन पंख देनेवाले बाल साहित्यकार रस्किन बॉन्ड आज 86 वर्ष के हो गये हैं. अपनी रचनाओं के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजे जा चुके रस्किन बॉन्ड आज भी मसूरी में बेहद साधारण तरीके से जीवन जीना पसंद करते हैं. वे चाहते हैं कि जब तक उनकी सांसें चले वे बच्चों के लिए कहानियां लिखते रहें अपने जीवन में इतना कुछ हासिल करने के बाद क्या कभी उनके दिमाग में संन्यास लेने का विचार आया है ? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि उनके जैसा लेखक जिसे ‘‘कोई पेंशन या भविष्य निधि नहीं” मिलती है, वह कभी सेवानिवृत्त नहीं हो सकता ।

ये लेखक के निजी विचार हैं .

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय )

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