“रूपकुंड झील” हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों मैं बनने वाली छोटी सी झील हैं। यह झील 5029 मीटर ( 16499 फीट) की ऊचाई पर वेदनी बुग्याल के नजदीक स्थित हैं , जिसके चारो और ऊचे-ऊचे बर्फ के ग्लेशियर और त्रिशूल चोटियां हैं। यहाँ तक पहुचे का रास्ता बेहद दुर्गम हैं इसलिए यह जगह एडवेंचर ट्रैकिंग करने वालों कि पसंदीदा जगह हैं। यह झील यहाँ पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित हैं । यहाँ पर गर्मियों मैं बर्फ पिघलने के साथ ही कही पर भी नरकंकाल दिखाई देना आम बात हैं। यह झील बागेश्वर से सटे चमोली जनपद में बेदनी बुग्याल के निकट स्थित है। रूपकुंड झील को मुर्दा और कंकाल का कुंड भी कहा जाता हैं | यह कुंड ना केवल अपनी सुन्दरता बल्कि मुर्दों के कुंड जैसी रहस्यमय इतिहास के लिए भी मशहूर हैं | स्थानीय लोगों के अनुसार इस कुंड की स्थापना या निर्माण संसार के रचयिता भगवान् शिव ने अपनी पत्नी पार्वती (नंदा) के लिए करवाई हैं | कहा जाता हैं कि जब देवी पारवती अपने मायके से अपने ससुराल हिमालय को जा रही थी तो तब उन्हें रास्ते में प्यास लगती हैं और वह भगवान शिव से पानी की प्यास भुझाने की इच्छा जाहिर करती हैं और तभी भगवान शिव माता पार्वती की प्यास भुझाने के लिए उसी जगह पर अपने त्रिशूल से एक कुंड का निर्माण कर देते हैं और जब माता गौरी (पार्वती) कुंड से पानी पीने जाती है तो माता के पानी में पड़ते सुन्दर प्रतिबिम्ब को देखते हुए शिव जी द्वारा इस कुंड को “रूपकुंड” नाम दे दिया जाता हैं | आज भी स्थानीय लोग द्वारा जब भी नन्दा देवी राज जात यात्रा की जाती हैं तो यात्रा रूपकुंड पर अवश्य रूकती हैं और श्रधालू द्वारा इस कुंड के पास रुक कर माता की डोली का श्रृंगार व् विश्राम किया जाता हैं |
कुछ प्रचलित कहानियां – स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार एक राजा जिसका नाम जसधावल था,नंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला। उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी इसलिए वो देवी के दर्शन करना चाहता था। स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया। जैसा कि तय था, इस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से देवी नाराज़ हो गईं और सबको मौत के घाट उतार दिया। राजा, उसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया। मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं।
एक दूसरी किवंदती के अनुसार – तिब्बत में सन 1841 के युद्ध के दौरान सैनिको का एक समूह इस कठिन रास्ते से गुज़र रहा था , लेकिन वो रास्ता भटक गए और खो गए और व सारे सैनिक कभी नहीं मिले , हलाकि यह एक फ़िल्मी प्लाट जैसा लगता हैं इस स्थान में मिलने वाली हड्डियों के बारे में यह किवंदती काफी प्रचलित है |
एक और अन्य रिसर्च के अनुसार इस स्थान पर पाए जाने वाली हड्डियों पर रोशिनी पडी | रिसर्च के अनुसार ट्रेकर्स का एक समूह इस स्थान में हुयी भारी ओलावृष्टि में फस गया , जिसमे सभी की अचानक दर्दनाक मौत हो गयी और हड्डियों के x-ray और अन्य प्रयोग में पाया गया कि हड्डियों में दर्रारे पड़ी हुयी थी जिसमे पता चलता हैं कि कम से कम क्रिकेट की बाल के आकर के बराबर ओले रहे होंगे | वहां कम से कम 35 कि.मी. तक कोई गाँव नहीं था और सर छुपाने की कोई जगह भी नहीं थी | रिसर्च के अनुसार यह माना जाता है कि यह घटना 850 A.D के आसपास की रही होगी |