उत्तराखंड , 700 करोड़ के मुख्य अपराधी माने जा रहे सयुंक्त निदेशक गीताराम नौटियाल को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी अग्रिम जमानत न देने व 7 दिन के अंदर सरेंडर करने का आदेश होने के बाद अब गीता राम के पास सिवाय सरेंडर होकर जेल जाने के कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। कल माननीय सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी एवं न्यायमूर्ति एम.आर.शाह की अदालत में गीताराम की विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर यह साफ कर दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा उसके विरुद्ध पारित आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय में डाली गई याचिका से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि 18 अक्टूबर को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने समाज कल्याण विभाग की 700
करोड़ से अधिक की छात्रवृत्ति घोटाले के मामले में मुख्य आरोपी गीताराम नौटियाल की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए याचिका को खारिज कर दिया था जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी मुहर लगा दी है। अब गीता राम के पास आत्मसमर्पण के अतिरिक्त कोई रास्ता शेष नहीं है। एसआईटी ने कोर्ट में मामले की गोपनीय रिपोर्ट भी पेश की जिसमें उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत थे। एसआईटी की ओर से कहा गया की नौटियाल जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और गिरफ्तारी से बचने के लिए लगातार लोकेशन बदल रहे हैं । हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी को रोकने के लिए याचिका दायर करने से पहले अपनी गिरफ्तारी को रोकने के लिए वह एससी एसटी आयोग भी गए थे जिस पर आयोग ने नौटियाल पर किसी भी तरह की कार्रवाई करने से रोक लगा दी थी, जिसे माननीय न्यायालय ने अपनी अवमानना मानते हुए गीताराम पर 25000 का जुर्माना भी लगाया था। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट के इस नए आदेश के बाद गीताराम नौटियाल “कब और कहां” आत्मसमर्पण करते हैं व छात्रवृत्ति घोटाले की कितनी मछलियों के नाम उगलते हैं।
गीता राम ने गिरफ्तारी से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वकीलों की एक पूरी फ़ौज खड़ी कर रखी थी मगर सब बेकार हो गया ।अभियुक्त द्वारा अपनी याचिका में पूरे प्रदेश सरकार,नौकरशाही, पुलिस महकमें को ही पार्टी बना रखा था।मगर माननीय न्यायालय की टिपण्णी कि अभियुक्त द्वारा गिरफ्तारी से बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना कर मामले को लटकाकर कानून का मजाक उड़ाने का प्रयास किया जा रहा है। बताते चलें कि एस आई टी आज से 10 दिन पूर्व ही गीता राम की कुर्की के आर्डर को चस्पा करा कर मुनादी करवा चुकी है।