हरीश रावत जी, आपकी इस ‘अदा’ पर तो गिरगिट भी चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए…

   उत्तराखंड वासियों को ढ़ेर सारी बधाई कि गैरसैंण आंदोलन के लिए ‘असली’ और ‘सच्चा’ मसीहा मिल गया है। द ग्रेट हरीश रावत!  जी हां, वही हरीश रावत जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए सबसे पहले गैरसैंण में विधानसभा सत्र के नाम पर नौटंकी करवाई और पहाड़ का सबसे बड़ा हितैषी होने का ढोल पिटवाया। मगर जब विधानसभा सत्र के दौरान स्थाई राजधानी की मांग करते हुए आंदोलनकारी गैरसैंण पहुंच रहे थे तो इन्हीं हरीश रावत ने उन्हें पुलिस से पिटवाया और जानवरों की तरह बस में ठूंस कर आदिबद्री-दिवालीखाल के जंगलों में छुड़वा दिया था। ऐसा लगातार तीन विधानसभा सत्रों में हुआ। आंदोलनकारी स्थाई राजधानी की मांग करते हुए पुलिस बैरीकेट्स पर गिरफ्तार होते रहे और हरीश रावत भराड़ीसैंण में अपना महिमामंडन करवाते रहे।ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने मीडिया द्वारा लगातार, बार-बार पूछे जाने के बाद भी स्थाई राजधानी के सवाल पर आज तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है । मैंने खुद जब हरीश रावत से गैरसैंण को लेकर सवाल किया तो इनका प्रतिप्रश्न था, ‘क्या आप मुझे मुहम्मद बिन तुगलक बना देना चाहते हैं ? ”  
    ये वही हरीश रावत हैं जिन्होंने गैरसैंण को राजधानी घोषित करना तो दूर, जिला तक इसलिए नहीं बनाया क्योंकि प्रदेश के दूसरे हिस्सों से भी जिले की मांग उठ रही थी।

      और आज यही हरीश रावत जब सत्ता से बेदखल हो चुके हैं। लगातार तीन चुनाव बुरी तरह हार चुके हैं तो इन्हें गैरसैंण याद आ रहा है। हरीश रावत जी आपकी इस अदा पर तो गिरगिट भी चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाए। दरअसल लगातार तीन हार के बाद हरीश रावत साहब का राजनीतिक अस्तित्व पाताललोक पहुंच चुका है। मैदानी सीटों से मुंह की खा चुके हरीश रावत अब गैरसेंण के बहाने पहाड़ी जनता की सहानुभूति चाहते हैं । यही वजह है कि उन्हें अचानक गैरसैंण की याद आ गई। कल गैरसैंण में हुए गिरफ्तारी के नाटक के बाद ‘चारण मंडली’ हरीश रावत को पहाड़ का सबसे बड़ा हितैषी बताने में जुट गई है।

      मगर पहाड़ को लेकर हरीश रावत की छद्म राजनीति का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि अभी भी वे गैरसैंण को स्थाई राजधानी कहने का नैतिक बल नहीं जुटा पा रहे हैं । इस पोस्ट के साथ हरीश रावत के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशाट देखिए, और लाल घेरे के भीतर वाला कंटेंट पढ़िए।

हरीश रावत साहब ने लिखा है – ‘मांगें बहुत साधारण सी हैं, जो निर्माण कार्य कांग्रेस के शासन काल में प्रारंभ हुए हैं जिसमें सचिवालय भवन भी है, उसको तत्काल प्रारंभ किया जाए, गैरसैंण को जिला बनाया जाए और आंदोलनकारियों पर जो धाराएं लगाई गई हैं, उन धाराओं को खत्म किया जाए।’

   क्या गैरसैंण के लिए जनता की बस इतनी सी मांग है ?

स्थाई राजधानी की मांग को रावत साहब जिस धूर्तता से गायब कर रहे हैं यही धूर्तता उत्तराखंड की दुश्मन है। रावत साहब आपको हमारा खुला चैलेंज है !  क्या आपमें ये कहने की हिम्मत है कि उत्तराखंड की स्थाई राजधानी तत्काल गैरसैंण घोषित होनी चाहिए।

     क्या आपमें ये सच स्वीकारने का साहस है कि गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित न करना आपकी बड़ी भूल थी ? आपको मुख्यमंत्री बनाने और लोकसभा का टिकट दिलाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहने वाले अपने समर्थक विधायकों से क्या आप गैरसैंण के पक्ष में इस्तीफा दिला सकते हैं ?  अगर आप इन सवालों का जवाब नहीं दे सकते हैं तो बंद कीजिए ये नौटंकी और अगर ये नौटंकी नहीं है तो आइए और किसी भी खुले मंच में स्थाई राजधानी के मुद्दे पर हमसे बहस करने की हिम्मत दिखाइए । आपका पहाड़ विरोधी चेहरा सबके सामने उजागर कर दिया जाएगा।

साभार – प्रदीप सती