मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के मामले में तय नीतियों पर चल रही है। उसका एजेंडा है — सार्वजनिक क्षेत्र को पहले बीमार करो, फिर उसको कौड़ियों के मोल पूंजीपतियों को सौंप दो। कोयला, स्टील, रक्षा, हवाई मार्ग, बैंक-बीमा और अब एलआईसी — इन सब मामलों में यही पैटर्न दिख रहा है।पहले जो उपक्रम फायदे में चल रहे थे, सुनियोजित प्रयास किया गया है कि वे घाटे में जाकर बीमार पड़ जाये।
उक्त बातें रायपुर प्रेस क्लब के रु-ब-रु कार्यक्रम में माकपा पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कही। उन्होंने कहा कि सभी आर्थिक मानदंडों पर देश मंदी की चपेट में है और आम जनता की क्रय शक्ति में गिरावट आने से उपभोग का स्तर गिरा है। लेकिन जनता को रोजगार देकर, सार्वजनिक कल्याण के कामों में सरकारी खर्च बढ़ाकर और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को बेहतर करके उनकी क्रय शक्ति बढ़ाने की जगह पूंजीपतियों को करों में छूट देकर वह इस समस्या से निपटना चाहती है, जो सही रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि बजट में मनरेगा आबंटन में 9500 करोड़ रुपये और खाद्य सब्सिडी में 75500 करोड़ रुपयों से अधिक की कटौती की गई है, जो सरासर जनविरोधी कदम है। इस कटौती के कारण देश के गोदामों में रखा 7.5 करोड़ टन अनाज सड़ जाएगा और गेहूं की सरकारी खरीद पर असर पड़ेगा। इससे किसानों की हालत और खराब होगी। इसलिए माकपा पूरे देश में इस बजट के खिलाफ अभियान चला रही है।
माकपा नेत्री ने नागरिकता देने की प्रक्रिया को धर्म से जोड़ने को संविधान के बुनियादी मूल्यों का हनन बताया और कहा कि चूंकि एनआरसी की पहली सीढ़ी एनपीआर है, छत्तीसगढ़ सहित सभी राज्य सरकारों को इसकी प्रक्रिया रोकने के लिए नोटिफिकेशन जारी करना चाहिए। उन्होंने बताया कि एनपीआर की प्रक्रिया पूरी करना राज्य सरकारों के हाथ में है और केरल में वामपंथी सरकार ने इस अधिकार का उपयोग किया है। उन्होंने कटाक्ष किया कि जिस भाजपा सरकार ने बंगला देश से आये लाखों नमः शूद्र समुदाय के शरणार्थियों को अनुसूचित जाति की मान्यता नहीं दी है, वह हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ चिंता का दिखावा कर रही है, जबकि उसका असली मकसद धर्म के आधार पर देश को विभाजित करना है।
बृंदा करात ने कवर्धा में कल ही उजागर एक आदिवासी महिला के सामूहिक बलात्कार की घटना और केशकाल में धान खरीदी की व्यवस्था करने में नाकाम प्रशासन के खिलाफ आंदोलनरत किसानों पर लाठी चार्ज किये जाने की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि देश में हर रोज 93 बलात्कार हो रहे हैं, लेकिन बेटियों को सुरक्षा देने के बजाए बलात्कारियों को सुरक्षा दी जा रही है और एनसीसी कैडेटों से उन्हें सलाम करवाया जा रहा है और पीड़ितों को आग में झोंका जा रहा है। बेटी बचाओ का जाप करने वाली सरकार ने निर्भया फंड में भी भारी कटौती कर दी है और वर्मा समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया है। इसका नतीजा है कि महिला उत्पीड़न पर सजा की दर केवल 25% है।
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माकपा नेत्री ने कहा कि देश की इस दुर्दशा के खिलाफ खिलाफ छात्र-नौजवान-महिलाएं और मजदूर-किसान बड़े पैमाने पर सड़कों पर उतर रहे हैं। 8 जनवरी की मजदूर-किसानों की हड़ताल इसी बात का प्रतीक है और आने वाले दिनों में वे देश की राजनीति का एजेंडा तय करने जा रहे हैं।