देहरादून, दिनांक 21 जुलाई, 2019 को देहरादून के मोथरोवाला रोड़ पर स्थित एक रेस्टॉरेंट में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पलायन से लूटते पीटते ,उत्तराखंड के लिए चिंतन करने वाले कुछ अवकाश प्राप्त कर्मचारी, उद्योगपति, पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता साथियों का समागम हुआ! आपसी परिचय के साथ शुरू हुवा ये समागम पूर्व निर्धारित एजेंडा जिसमे उत्तराखंड के दोनों मंडलों से एक एक गाँव चिन्हित कर विकास के मॉडल के रूप में विकसित कर सरकार को आइना दिखाने हेतु जोरदार चर्चा का केंद्र रहा, आप मान सकते हैं जो उत्साह ,जोश व समर्पण वहाँ मौजूद साथियों में दिख रहा था वो न केवल दो गाँव विकसित करके दिखाएंगे बल्कि इस प्रदेश में कांग्रेस ,भाजपा के इतर प्रदेश में अकाल पड़े हुए राजनीतिक विकल्प को खड़ा करने में भी सक्षम होंगे ऐसा प्रतीत हो रहा था, 35 साल के सामाजिक सरोकार से जुड़े रहने के कारण डॉ लोकेश नवानी को इसका पूरा श्रेय जायेगा जो अब इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए कमर कस चुके हैं, उनके जोश जज्बे को देखकर कहा जा सकता है वो राजनीति के उत्तराखंडी चाणक्य साबित होंगे!

आज ही के दिन आज से ठीक एक वर्ष पहले गैरसैंण राजधानी की माँग को लेकर भी ये साथी इसी होटल में समागम कर चुके हैं!

खैर मैं अपनी बात जोड़ते हुए ये पोस्ट समाप्त करूँगा हम सब मिलकर के 2-4-10 गाँव बेहतरीन बना सकते हैं मगर हमें लगभग 15700 गाँवों को आबाद देखना है, जिसकी संपूर्ण जिम्मेदारी सरकार की है, सरकार हर गाँव में सड़क, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, सुरक्षा, बिजली, पानी, स्वच्छता व खेल मनोरंजन जैसी मूलभूत सुविधा गुणवत्तापूर्ण तरीके से उपलब्ध करवाए इसीलिए तो इतने ब्यूरोक्रेट्स, विधायक, सांसद, कर्मचारियों का वेतन भत्तों का बोझ हम अपने करों से ढो रहे हैं, अगर वो इस सबको पूरा करने में विफल होते हैं तो उनको सिस्टम में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है! सर्वप्रथम ये चेतना हमें प्रदेश के नागरिकों को देनी होगी, जब नागरिकों को लोकतंत्र में अपने मालिक होने का अहसास होगा, तभी वो एक बेहतर भविष्य देख सकते हैं, तभी वो एक बेहतर नागरिक साबित हो सकता है, हमें राजनीतिक विकल्प की ओर जाना है, भाजपा के मोहल्लों को कब्जाए हुए टीमों के सिंडिकेट को तोड़ना है, तो हमें हर जनपद में कार्यालय खोलने होंगे, हर जनपद में 5-10 फूल टाइमर रखने होंगे जिनका अधिभार हमें उठाना होगा, सरकार के भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचार के समाधान को लेकर राजनीतिक चेतना जगानी होगी, लोग रोजगार, स्वरोजगार से अपनी आर्थिक स्थिति कैसे मजबूत कर सकते हैं, उन्हें जागरूक करना होगा, उसके लिए उनके अंदर एक भूख पैदा करनी होगी!

उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थतियाँ हैं, दूर दूर बसे लोगों तक पहुंच बनाने के लिए संसाधन भी अधिक लगते हैं, उपरोक्त गतिविधियों के लिए कोई एक व्यक्ति संसाधन मुहैया करवा दे ये संभव नहीं है, तो फिर ये कैसे संभव है?

तो मेरा दो टूक कहना है, अच्छी हो या बुरी पर राजनीति पूर्ण रूप से मैनेजमेंट का विषय है जनता को गुमराह करना हो या जागरूक, बिना संसाधन के कुछ भी संभव नहीं है, लिहाजा सिर्फ बड़ी बड़ी बातें ही न हों, अपनी बोरियत मिटाने के लिए पार्ट टाइम पॉलिटिक्स, पार्ट टाइम चिंतक न बने रहें, अगर सच में इस प्रदेश के लुटने पिटने का दर्द है तो ऐसे 2 से 3 हज़ार नागरिक आगे आएं जो कम से कम 500/1000/2000/5000/10000 रूपये प्रतिमाह प्रदेश में राजनीतिक विकल्प खड़ा करने में निरंतर योगदान दें, तब जाकर राजनीतिक विकल्प देने की बात करने के मायने होते हैं!

उपरोक्त समागम में डॉक्टर लोकेश नवानी, विजय जुयाल, त्रिलोचन भट्ट, प्रदीप सति, भार्गव चन्दोला, देवेश आदमी, कविंद्र इष्टवाल, सविता लखेड़ा, जयकृत कंडवाल, हर्षमणि व्यास, टी. एस. असवाल, डॉ बृजमोहन डबराल, रिटायर्ड ब्रिगेडियर पीएस पसबोला, विनोद बगियाल, देवेंद्र सिंह रावल, डॉ एस.पी. सती, अम्बुज शर्मा,गुणानन्द जखमोला, अनिल उनियाल, सुनील उनियाल, हिमांशु राणावत, विपिन पंवार, सुनील सिंह चौहान आदि साथी मौजूद रहे।