जस्टिस धूलिया उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के सुदूरवर्ती गांव मदनपुर के रहने वाले हैं.उनके दादा भैरव दत्त धूलिया स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हें ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ में भाग लेने के लिए सात साल जेल की सजा सुनाई गई थी ।

10 मई , दिल्ली: न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (के रूप में 09 मई 2022 को शपथ ली। वरिष्ठ वे उत्तराखंड के दूसरे वाशिंदे हैं, जो उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बने हैं। उनसे पहले उत्तराखंड के निवासी पीसी पंत भी उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रहे थे। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश का पदभार ग्रहण करने से पहले सुधांशु धूलिया गोहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, उससे पहले वे उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल में न्यायाधीश रहे। इलाहाबाद से उन्होंने वकालत शुरू की और उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वे नैनीताल उच्च न्यायालय आ गए। नैनीताल में ही वे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए। 1994 में जिस समय उत्तराखंड आंदोलन हुआ, उस समय सुधांशु धूलिया इलाहाबाद में वकालत करते थे। 02 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में हुए जघन्य कांड , जिसमें दिल्ली जा रहे प्रदर्शनकारियों को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे के पास तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार के इशारे पर पुलिस-प्रशासन ने रोक कर जुल्म और वहशीपने की सारी हदें लांघते हुए न केवल युवाओं को गोलियों से भून दिया गया, बल्कि महिलाओं से दुराचार भी किया गया। अलबत्ता मुजफ्फरनगर के स्थानीय वाशिंदों ने जुल्म के मारे उत्तराखंडियों की बड़ी मदद की। इस इस कांड का मामला उच्च न्यायालय, इलाहाबाद भी पहुंचा तब वहां उत्तराखंड संघर्ष समिति की तरफ से इस मामले की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं के दल में सुधांशु धूलिया भी शामिल थे। पहली बार सुधांशु धूलिया का नाम, इसी केस के सिलसिले में सामने आया था। इस मामले में वकीलों की टीम के नेतृत्वकर्ता एल.पी नैथानी थे, जो बाद में नैनीताल उच्च न्यायालय में उत्तराखंड सरकार के महाधिवक्ता भी रहे।


मुजफ्फरनगर कांड के इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रवि एस. धवन के अगुवाई वाली खंडपीठ ने मुजफ्फरनगर कांड की तीव्र भर्त्सना करते हुए लिखा कि- ‘आजाद भारत की सरकारों ने उत्तराखंड के लोगों के साथ ऐसा सलूक किया, जैसा जर्मनी में नाजियों ने यहूदियों के साथ किया”। 273 पन्ने के फैसले में उच्च न्यायालय ने मृतकों के आश्रितों को दस लाख रुपया, बलात्कार पीड़ित महिलाओं को भी दस लाख रुपया, अवैध हिरासत में रखे गए और घायलों को भी पचास हजार रुपया मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही इस कांड के दोषी अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को मुकदमा चलाने का आदेश दिया। हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी उच्चतम न्यायालय में इस फैसले के अधिकांश हिस्से को 1999 में पलटवाने में कामयाब हो गए।
मुजफ्फरनगर कांड के कुछ मामले अब भी सीबीआई की अदालतों में चल रहे हैं। राज्य आंदोलन से जुडे़ प्रमुख आंदोलनकारी का कहना है कि रामपुर तिराहा में बर्बर हत्याकांड और मातृ शक्ति के अपमान ने जैसे उत्तराखंड में आग लगा दी थी। आम जनमानस सड़कों पर उतर आया,लोग पुलिस कंट्रोल रूम के बाहर जमा हो गए थे। सभी को अपनों की चिंता थी। सब जानना चाहते थे कि उनका बेटा, बेटी, मां-पिता, भाई-बहन सुरक्षित है या नहीं। पुलिस प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं था। हर तरफ बेचैनी थी। हर कोई विचलित था। 

यह अफसोसजनक है कि उत्तराखंड राज्य बने 22 वर्ष हो गए हैं, लेकिन राज्य में बनने वाली किसी सरकार ने इन मामलों में प्रभावी पैरवी करने की कोशिश नहीं की। इसके चलते हुआ यह कि आरोपी मुकदमों को उत्तराखंड से बाहर ट्रान्सफर कराने में सफल रहे। एक पुलिसवाला- सुभाष गिरि, जो इस मामले में गवाह था, रहस्यमय रूप से ट्रेन में मरा हुआ पाया गया। आंदोलनकारी गवाहों को अपने खर्चे पर बिना किसी सुरक्षा के गवाही पर जाना पड़ता है। न्याय का इंतजार मुजफ्फरनगर कांड के मामले में भी अंतहीन जान पड़ता है। जबकि उन्हें अलग राज्य उत्तराखंड का पहला मुख्य स्थाई अधिवक्ता होने का गौरव हासिल हैं। उनके जूनियर रहे अधिवक्ता संजय भट्ट बताते हैं कि उन्होंने हमेशा हिंदी भाषी अधिवक्ताओं को ना केवल प्रोत्साहित करते थे बल्कि केस से संबंधित अध्ययन के लिए भी प्रेरित किया करते थे।   जस्टिस धूलिया ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहे राजीव शर्मा के साथ सितारगंज जेल में सुधार को  लेकर ऐतिहासिक फैसला देने के साथ महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए। वह हाईकोर्ट में पर्यावरण से संबंधित मामलों की बेंच के चेयरमैन भी रहे हैं। उन्होंने उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों में महत्वपूर्ण आदेश पारित किये, उनके दिये गए अधिकांश फैसले कायम रहे जो बाद में नजीर भी बने। उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के क्षतिज आरक्षण के खिलाफ जो फैसला दिया, वह अब तक प्रभावी है।  उत्तराखंड हाईकोर्ट के हर पैनल में शामिल रहे। राज्य के मामलों में बारीक नजर रखने वाले अधिवक्ता होने की वजह से राज्य की पहली निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने उन्हें हर महत्वपूर्ण मामले में विशेष काउंसिल नियुक्त किया। जस्टिस धूलिया ने लॉकडाउन के दौरान अधिवक्ताओं की दिक्कतों को दूर करने के लिए निजी तौर पर भी प्रयास किये। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष महासचिव पूर्व सांसद अनेक अधिवक्ताओं ने जस्टिस धूलिया को गोहाटी उच्च न्यायालय जैसे महत्वपूर्ण स्थान के लिए कोलेजियम की सिफारिश होने को राज्य के लिए गौरव करार दिया। बहरहाल इस मामले में उत्तराखंड को एक समय न्याय दिलाने की कोशिश में शरीक रहे सुधांशु धूलिया उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए हैं, वे सबके साथ न्याय कर सकें, इसके लिए उन्हें शुभकामनाएं।

ये लेखक के निजी विचार हैं

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला (दून विश्वविद्यालय)

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