फोटो : The_Quint से साभार

संजय पराते

    यह इजराइल की कंपनी एनएसओ है।  जिसने जासूसी का सॉफ्टवेयर स्पाईवेयर पेगासस बनाया है। इसका कहना है कि जासूसी का यह उपकरण वह केवल लाइसेंस प्राप्त और वैध सरकारी एजेंसियों को ही बेचती है। इसका सीधा अर्थ है कि यदि इस जासूसी उपकरण के जरिये भारतीय नागरिकों की जासूसी की जा रही थी और उनकी निजता का हनन किया जा रहा था, तो ऐसा उपकरण भारत सरकार को या उसकी अनुमति से किसी सरकारी या फिर निजी कंपनी को बेचा गया है। भारत मे यदि इस उपकरण का उपयोग हो रहा है, तो इसमें भाजपा की मोदी सरकार का सीधा हाथ है।

इस जासूसी के समय पर भी ध्यान दीजिए – अप्रैल- मई 2019 जब देश मे चुनावी बुखार अपने उफान पर था। लेकिन भीमा-कोरेगांव मामले में नागपुर के वकील निहाल सिंह राठौड़ ने व्हाट्सएप्प को 28 मार्च को ही ई-मेल के जरिये शिकायत की थी कि उनकी जासूसी हो रही है। वास्तव में जासूसी का यह मामला वर्ष 2017 से पहले से ही शुरू हो गया था।

लेकिन केवल निहाल सिंह की ही जासूसी नहीं की जा रही थी। देश के सैकड़ों नागरिकों की, और हां, अवश्य ही वे मोदी सरकार की नीतियों की खिलाफत करने वाले प्रतिष्ठित लोग थे, जिनकी जासूसी की जा रही थी। इसका शिकार होने वालों में पत्रकार, प्रोफेसर, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, एक्टर, लेखक और राजनैतिक नेता सभी थे। बेला भाटिया, शालिनी गेरा, आनंद तेलतुंबड़े, आलोक पुतुल, सरोज गिरी, सिद्धांत सिब्बल जैसे नामों से इसकी पुष्टि होती है कि मोदी सरकार के निशाने पर केवल इसके विरोधी ही है। अभी तो कई नाम और उजागर होंगे।

गुटनिरपेक्षता की नीति को त्यागकर इस सरकार ने नस्लवादी इजराइल के साथ यारी-दोस्ती का रास्ता अपनाया है। होना तो यह चाहिए था कि यह सरकार इजराइल से जवाब तलब करती कि उनके यहां से संचालित होने वाली किसी कंपनी की हिम्मत कैसे हुई कि वह हमारे देश के नागरिकों की जासूसी करें ? लेकिन इतनी हिम्मत किसी साम्राज्यवाद परस्त सरकार में नहीं होती। वह उस व्हाट्सएप्प से जवाब तलब कर रही है, जिसने खुद अमेरिका की संघीय अदालत में एनएसओ समूह के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि व्हाट्सएप्प उपयोगकर्ताओं की उसने अपने स्पाईवेयर से जासूसी की है और इसके प्रति अपने ग्राहकों को सावधान भी किया है।

ऐसी सरकार, जो स्वयं अपने नागरिकों की निजता के हनन में शामिल हो, को संवैधानिक रूप से सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं रह जाता। लेकिन जो सरकार अपनी ही संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को कुचल रही हो, जो पूरे देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता को बेचने पर आमादा हो, उससे ऐसी नैतिकता की उम्मीद भी नहीं की जा सकती!