कल तक पारुल जी को गुजरात में सिर्फ उनके लिखे भजनो की बजह से ही जाना जाता था ! अब उनकी कविता का कई भाषाओ म अनुवाद हो रहा है। उधर गुजरात में ही मौत के आंकड़ों में बेहिसाब मिलावट की खबर आने के बाद रुपाणी साहब भी हरकत में आ गए। चार हजार कोविड मौतों के सरकारी आंकड़ों के सामने एक लाख तेईस हजार मृत्यु प्रमाण पत्र को नकारने के लिए मुख्यमंत्री की पूरी टीम सामने आ गई है।

सच सामने आ रहा है। प्रायोजित प्रचार से अलंकृत मूर्ति में दरारे दिखने लगी है। रोज नए कपडे पहनने वाले राजा की नग्नता अवाम को दिखने लगी है। पारुल खक्कड़ की कविता का हिंदी अनुवाद ह्यास शैख़ ने किया है।

एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

पारुल खक्कड़
पारुल खक्कड़

चौदह पंक्ति की कविता का तुरंत कम से कम छह भाषाओं में अनुवाद किया गया, जो उन सभी भारतीयों की आवाज बन गई, जो महामारी से हुई त्रासदियों से दुखी हैं और सरकार की अलगाव और स्थिति के कुप्रबंधन से नाराज हैं।

पारुल खक्कर की कविता शब्वाहिनी गंगा, जिसे उन्होंने 11 मई को अपने सोशल मीडिया अकाउंट में पोस्ट किया, गुजराती में एक छोटा लेकिन शक्तिशाली व्यंग्य है जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक ‘नग्न राजा’ के रूप में वर्णित करता है जो ‘राम राज्य’ (देवताओं का राज्य) पर शासन करता है। जहां पवित्र गंगा लाशों के लिए ‘हंस’ का काम करती है।  गुजराती कवियत्री पारुल खक्कड़  ने अपनी महज चौदह पंक्तियों से विश्व गुरु का सिंहासन डगमगा दिया है। फेसबुक पर लिखी गई उनकी कविता पर अट्ठाइस हजार गालियों भरे कमैंट्स आ चुके है। ये कमैंट्स किसने किये होंगे ? निश्चित रूप से अमित मालवीय के पट्ठे और दिमाग पर ताला लगाये भक्तों से ही इस आचरण की उम्मीद की जा सकती है।

ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाति घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा

उत्तराखंड के जनजाति के बीच रह कर काम करने वाले डा० सुनील कैंथोला ने इस कविता को अपनी आवाज दे कर बहुत कम समय में हजारों लोगों तक इस कविता को पहुंचा दिया है अगर आप सुनना चाहें तो इए लिंक को  एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’  क्लिक करें ,

   दो दशक पहले जिस राज्य में ‘राम राज्य’ की शुरुवात हुई थी  और  जिस भाषा को  ‘नग्न राजा’ सबसे अच्छी तरह जानते/समझते हैं , पारुल खक्कर की उसी भाषा में लिखी गई कविता  सत्ता के सच को सामने रखती है।

राम तेरी गंगा मैली हो गई !

एक ऐसे शासन का वर्णन करते हुए जहां राजा का अपने देश के नागरिकों के प्रति अलगाव उजागर हो गया है और चारों ओर लाचारी, गरीबी और कुप्रबंधन है, कविता न केवल सरकार पर, बल्कि मुख्यधारा के मीडिया, विपक्षी राजनीतिक दलों और अन्य पर भी प्रहार करती है। जैसा कि वे ‘नग्न राजा’ के शासनकाल में चुप और बिना रीढ़ के रहना चुनते हैं। यह देखते हुए कि भारत में महामारी की दूसरी लहर के बारे में सच्चाई को कम करके आंका जा रहा है, गलत बताया जा रहा है और कभी-कभी प्रतिबंधित भी किया जा रहा है, खक्कर की कविता अपने आप में एक साहसिक कार्य है। गुजरात भाजपा को सत्ता में लाने वाला देश का पहला राज्य था। और यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य भी है, जिन्हें कोरोनोवायरस स्थिति से खराब तरीके से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फटकार लगाई जा रही है।

लेकिन इस कविता को लिखने का खक्कर का इरादा बिल्कुल भी राजनीतिक नहीं था। वह भारत की सबसे पवित्र और संस्कृति को परिभाषित करने वाली नदी, “गंगा” में मीडिया द्वारा दिखाई गई कोरोना पीड़ितों के शवों को देख कर गहराई से हिल गई थी।