वैश्विक बंधुत्व और शांति के लिए समर्पित जीवन

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

स्वामीजी का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। इनका मूल नाम नरेंद्रनाथ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। पिता कोलकाता हाईकोर्ट में अटार्नी ऑफ लॉ थे।स्वामी जी कोलकाता के कॉलेज से बीण्एण् और लॉ की डिग्री हासिल की थी, लेकिन उनका मन अध्यात्म की ओर ज्यादा था। नरेंद्र नाथ को विवेकानंद नाम उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने दिया था। कहा जाता है कि स्वामीजी की याददाश्त बहुत तेज थी। वे बहुत ही जल्दी पूरी किताब पढ़ लेते थे और किताब की हर बात उन्हें याद रहती थी।

भारत को दुनिया में आध्यात्मिक गुरु के रूप में प्रस्तुत करने वाले व युवाओं को सृष्टि के कल्याण के लिए जागो, उठो और कर्म करो का मूल मंत्र देने वाले युगदृष्टा स्वामी विवेकानंद को आध्यात्मिक ज्ञान नैनीताल जनपद के काकड़ीघाट में प्राप्त हुआ था। विवेकानंद की देवभूमि यात्रा यहीं से प्रारंभ हुई थी। यहां स्वामी जी के अवचेतन शरीर में सिहरन हुई। वह पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठ गए। बाद में उन्होंने इसका जिक्र करते हुए कहा था कि उनको काकड़ीघाट में पूरे ब्रह्माण्ड के एक अणु में दर्शन हुए। यही वह ज्ञान था जिसे उन्होंने 11 सितंबर 1893 को शिकागो में पूरी दुनिया के समक्ष रखकर देश का मान बढ़ाया।स्वामी विवेकानंद और देवभूमि का गहरा संबंध रहा है। वह तीन बार देवभूमि आए।

कहा जाता है की स्वामी जी ने बेलूर मठ से हिमालय की कठिन यात्रा के लिए निकलते समय मठ के साथियों से कहा था की वह स्पर्श मात्र से लोगों को रुपान्तरित कर देने की क्षमता प्राप्त किए बिना वापस नहीं लौटेंगे। उन्होंने कहा था, इस बार जब यहां लौटूंगा तब मैं समाज के उपर एक बम की तरह फट पड़ूगा और समाज स्वान की तरह मेरे पीछे चलेगा। वह अपनी पहली आध्यात्मिक यात्रा पर 1890 में साधु नरेंद्र के रूप में गुरु भाई अखंडानंद के साथ नैनीताल पहुंचे। यहाँ वह तत्कालीन खेत्री के महाराज प्रसन्न भट्टाचार्य के आतिथ्य में उनके घर पर छह दिन रहे थे। यहाँ से उन्होंने पैदल ही अल्मोड़ा के लिए यात्रा प्रारंभ की। तीसरे दिन दोनो लोग रात्रि विश्राम के लिए काकड़ीघाट पहुंचे। 1899 में बना मायावती अद्वैत आश्रम उत्तराखंड के चंपावत जिले में एक ऐसा ही स्थल है, जहां जाकर व्यक्ति खुद को भूल, अपने वास्तविक चैतन्य रूप को पहचानने लगता है।

आध्यात्मिक साधना के लिए यह उत्तम स्थल है। जहां कोई आवाज नहीं, केवल प्रकृति अपने नैसर्गिक रूप में मन को ऊंचाइयों तक ले जाने में सहायक होती है। विवेकानंद ने मायावती आश्रम की परिचय पत्रिका लिखते हुए यह निश्चय किया था, ऐसी जगह जहां सत्य के अलावा कुछ नहीं आ पाएगा। वहां पर मैं इस विचार का प्रतिपादन करना चाहता हूं। सत्य की खोज करने वाले लोग जहां बिना अंधविश्वास के, धर्म का असली मर्म समझेंगे, वहां बुद्ध, शिव, विष्णु नहीं, बल्कि उस एक चैतन्य प्रभु की सत्ता को जान सकेंगे, जो सब में है। चंपावत जिले में पहुंचने में टनकपुर से तीन घंटे के पहाड़ के सफर को पूरा करना होता है और वहां से आधा घंटे के बाद देवदार के वृक्षों के घने जंगल से गुजरती एकल सड़क मायावती आश्रम तक जाती है। चंपावत से 22 किलोमीटर दूर एवं लोहाघाट से 6 किलोमीटर की दूरी पर मायावती अद्वैत आश्रम स्थित है।। पहले यह मायावती चाय का बागान था और यह जनरल मैकग्रेगर के पास था। उनसे सेवियर दंपति ने खरीदा और आश्रम का रूप दिया। 55 किलोमीटर की दूरी तक कोई अस्पताल या डाक्टर मौजूद नहीं है। गांव से गंभीर रोगियों को आश्रम के अस्पताल में लाकर चिकित्सा दी जाती है। मायावती आश्रम से नंदा कोट, नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घंटी, कामत, नीलकंठ ,बदरीनाथ और केदारनाथ चोटियां नजर आती हैं।आश्रम के संग्रहालय में आज भी वह छपाईखाना मौजूद है जो सेवियर दंपति ने खरीद कर आश्रम में लगाया था। ताकि स्वामी विवेकानंद द्वारा 1896 में शुरू की गई मासिक पत्रिका प्रबुद्ध भारत का प्रकाशन हो सके। मासिक पत्रिका आज कोलकाता से प्रकाशित होती है।

तीव्र बुद्धि के धनी भारत के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। स्वामी विवेकानंद गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। गुरु के नाम पर उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। उनका पूरा जीवन ही युवाओं के लिए आदर्श है। महज 25 साल की उम्र में सांसारिक मोह माया को त्याग कर विवेकानंद ने संन्यास ले लिया था। उनका हिंदू धर्म और आध्यात्म के प्रति गहरा लगाव था। ईश्वर की खोज पर निकले विवेकानंद को जब गुरु रामकृष्ण परमहंस मिले, तो वह प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु बन गए। बाद में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया। अपने जोशपूर्ण भाषणों के कारण विवेकानंद युवाओं में काफी लोकप्रिय हो गए। स्वामी विवेकानंद को सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से बेहद लगाव था। अपने जीवनकाल में उन्होंने तीन बार अल्मोड़ा की पैदल यात्रा की। यहां उन्होंने कई दिनों तक प्रवास किया और लोगों को अध्यात्म पर प्रवचन भी दिए। अल्मोड़ा प्रवास के दौरान स्वामी जी ने कई स्थानों पर कठिन तपस्या की।स्वामी विवेकानंद 1890 में पहली बार अल्मोड़ा पहुंचे। यहां स्वामी शारदानंद और स्वामी कृपानंद से उनकी मुलाकात हुई। यहां वह लाला बद्री साह के घर पर रुके।

एकांतवास की चाह में एक दिन वह घर से निकल पड़े और कसारदेवी पहाड़ी की गुफा में तपस्या में लीन हो गए। कुछ समय बिताने के बाद स्वामी जी अपने शिष्यों के साथ यहां से बदरीनाथ की यात्रा पर निकल गए। 11 मई, 1897 में विवेकानंद दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे। तब उन्होंने यहां खजांची बाजार में जनसभा को संबोधित किया। कहा जाता है कि तब यहां पांच हजार लोगों की भीड़ उनके दर्शनों के लिए एकत्र हुई थी।स्वामी ने अपने भाषणों में कहा था- “यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का स्थान है। यह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्म पिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है। यह वही पवित्र भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं।” उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि इन पहाड़ों के साथ हमारी श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका कुछ भी बचा नहीं रहेगा।1897 में दूसरी बार अल्मोड़ा के भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद ने करीब तीन माह तक यहां निवास किया। वह 1898 में तीसरी बार अल्मोड़ा आए। इस बार उनके साथ स्वामी तुरियानंद व स्वामी निरंजनानंद के अलावा कई शिष्य भी थे। इस बार उन्होंने सेवियर दंपती का आतिथ्य स्वीकार किया। इस दौरान करीब एक माह की अवधि तक स्वामी जी अल्मोड़ा में प्रवास पर रहे।

हालांकि 39 साल की कम उम्र में ही 4 जुलाई 1992 में स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया। उनके अनमोल वचन और संदेश आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्तोत्र हैं। हर साल उनकी पुण्यतिथि यानी 4 जुलाई को स्वामी विवेकानंद स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। पुण्यतिथि पर उनकी पावन स्मृति को सादर प्रणाम

यह लेखक के निजी विचार हैं !

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