हरिद्वार, अखिल विश्व गायत्री परिवार के मुख्यालय शांतिकुंज व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आत्मिक ऊर्जा के जागरण का महापर्व नवरात्र साधना करने जुटे साधकों के लिए सामूहिक साधना के साथ विशेष सत्संग का भी आयोजन हो रहा है। साधक त्रिकाल संध्या में जप से आंतरिक ऊर्जा के लिए साधना करते हैं, तो वहीं बौद्धिक विकास के लिए सत्संग। देसंविवि में युवाओं के मन को सही दिशा देने एवं उनमें आंतरिक ऊर्जा को सकारात्मक रुख के साथ आगे बढ़ने के उद्देश्य से कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या तथा शांतिकुंज में वरिष्ठ परिजन साधकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में आयोजित कक्षा में युवाओं का मार्गदर्शन करते हुए कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि जीवन शैली को सही कर लेना ही यज्ञ है और सभी अहिंसा युक्त कर्म भी यज्ञ समान हैं। यज्ञ वह है जिसमें परमात्मा और व्यक्तित्व का मिलन होता है। यज्ञ विश्व का केन्द्र है। यज्ञ हमारी भारतीय संस्कृति का पिता है। नवचेतना के उद्घोषक डॉ. पण्ड्या ने नवरात्र साधना में जप, तप के साथ यज्ञ पर विस्तार से प्रकाश डाला। साथ ही उन्होंने श्रीमद्भगवतगीता के चैथे अध्याय के तेईसवें श्लोक की व्याख्या करते हुए यज्ञ विज्ञान पर विस्तृत जानकारी दी।
इससे पूर्व संगीतज्ञों ने वायलिन, बांसुरी आदि वाद्ययंत्रों साथ ‘हे प्रभो! जीवन हमारा यज्ञमय कर दीजिए’ गीत से उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया। इस अवसर पर देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव बलदाऊ देवांगन, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, स्वयंसेवी कार्यकर्त्ता, छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। वहीं शांतिकुंज के मुख्यसभागार में त्रययोग व गायत्री विषय पर संबोधित करते हुए श्याम बिहारी दुबे ने ज्ञानयोग, कर्मयोग व भक्तियोग पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गायत्री सद्बुद्धि की प्रदात्री देवी है। इसके मनोयोगपूर्वक नियमित जप से साधक के अंदर सद्बुद्धि का जागरण होता है। इस अवसर पर देश-विदेश से सैंकड़ों साधक उपस्थित रहे।