डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हमारी संस्कृति में सूर्य का बहुत महत्व है. आधुनिक युग में सोलर एनर्जी का
महत्व बढ़ रहा है. उत्तराखंड में भी इसका महत्व बढता ही जाएगा. केंद्र और
राज्य सरकारें सौर ऊर्जा को लेकर कई स्कीम चला रही हैं. अच्छी बात ये है कि
ये स्कीम सब्सिडी के साथ चल रही हैं. उत्तराखंड के पहाड़ी और मैदानी इलाकों
में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन को लेकर लोग भी उत्साह दिखा रहे हैं. जहां
भी सोलर सिस्टम लग रहे हैं, उसे देखकर दूसरे लोग भी प्रेरित हो रहे हैं. खास
बात ये है कि हाइड्रो पावर से उत्पादित बिजली के लिए जितनी मशक्कत करनी
पड़ती है, उतना सोलर प्लांट के लिए नहीं करनी पड़ती है.हिमालय की गोद में
बसे उत्तराखंड ने कभी ऊर्जा प्रदेश बनने का सपना देखा था. इस सपने को
हाइड्रो प्रोजेक्ट तो पूरा नहीं कर पाए, लेकिन सौर ऊर्जा इसके लिए राज्य को
नई उम्मीद दे रहा है. हालांकि आर्थिक मोर्चे पर राज्य की कमजोर स्थिति सौर
ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कुछ परेशानी जरूर पैदा कर रही है, लेकिन
इस दिशा में भविष्य के सकारात्मक प्रयास राज्य की ऊर्जा के क्षेत्र में दशा को
बदल सकते हैं. पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंतित भी दिखाई देती
है और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई लिखित मसौदे भी तैयार किए गए
हैं. इसके बावजूद ऊर्जा की जरूरत के बीच पर्यावरण प्रदूषण को थामना मुमकिन
नहीं हो पाया है. इस दिशा में सौर ऊर्जा अपना एक अहम स्थान रखती है. यह
पर्यावरण संरक्षण के अलावा ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने का बड़ा साधन बन
सकती है. खासतौर पर उत्तराखंड जैसे राज्य तो इसके जरिए अपने ऊर्जा प्रदेश
के सपने को पूरा कर सकते हैं. वैसे तो उत्तराखंड सरकार ने 2027 तक राज्य को
वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में खड़ा करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन फिलहाल सौर
ऊर्जा के क्षेत्र में राज्य बहुत आगे नहीं बढ़ पाया है. आज भी उत्तराखंड के कई ऐसे
गांव हैं, जो शाम ढलते ही अंधेरे में डूब जाते हैं. पर्वतीय और दूरस्थ क्षेत्रों में
बिजली पहुंचाना तकनीकी रूप से मुश्किल भी है और बहुत खर्चीला भी. इन
हालातों में सौर ऊर्जा राज्य के सामने एक बेहतर विकल्प के रूप में भी खड़ा है.
तापमान बढ़ने के साथ ही उत्तराखंड में बिजली की मांग भी बढ़ी है.
अप्रैल महीने में यह अपने रिकार्ड स्तर तक भी पहुंची है. आंकड़ों के रूप
में इस बात को समझें तो अप्रैल में सामान्य दिनों में बिजली की मांग
45 मिलियन यूनिट से लेकर 50 मिलियन यूनिट की बीच रहती है, जबकि
गर्मियों में डिमांड बढ़कर 60 मिलियन यूनिट तक हो जाती है. खास बात यह है
कि इस दौरान खुले बाजार से बिजली खरीदने के बावजूद बिजली की मांग के
अनुरूप उपलब्धता नहीं बन पाती. पिछले महीने अप्रैल में तो बिजली की मांग
सर्वाधिक करीब 50 मिलियन यूनिट तक पहुंच गई थी. इस तरह तापमान बढ़ने
के साथ बिजली की डिमांड में करीब 5 मिलियन यूनिट की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई
थी. इस बात को उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा बिजली के
उत्पादन के साथ तुलनात्मक रूप से देखें तो निगम हर दिन करीब 12 से 15
मिलियन यूनिट ही बिजली का उत्पादन करता है. इन आंकड़ों से साफ है कि
उत्तराखंड ऊर्जा को लेकर केंद्र सरकार या करोड़ों रुपए में हर दिन खुले बाजार
से बिजली खरीदने पर ही निर्भर है. दरअसल ऊर्जा प्रदेश के रूप में सपना देखने
के पीछे यहां से निकलने वाली तमाम नदियां वजह थी, लेकिन कानूनी और
पर्यावरणीय अड़चनों में फंसने के बाद यहां जल विद्युत परियोजनाओं को आगे
नहीं बढ़ाया जा सका. उत्तराखंड में नदियों के लिहाज से 20,000 मेगावाट तक
बिजली उत्पादन की क्षमता आंकी गई है, जबकि राज्य में अभी केवल करीब
3,900 मेगावाट की क्षमता वाली जल विद्युत परियोजनाएं संचालित की जा
रही हैं. उत्तराखंड सरकार ने 13 मार्च 2023 को उत्तराखंड सौर ऊर्जा नीति
2023 को मंजूरी दी थी. इस नीति का उद्देश्य था कि साल 2027 तक राज्य में
2,500 मेगावाट तक ऊर्जा का उत्पादन किया जाए. इसमें राज्य सरकार ने
एकल खिड़की प्रणाली लागू करते हुए प्रक्रिया को सरल बनाने की बात कही.
इसके अलावा लैंड यूज बदलाव के शुल्क में भी छूट दी गई. सरकारी जमीन पर
परियोजना लगाने के लिए निवेशकों को 70% स्थानीय युवाओं को रोजगार देना
अनिवार्य किया गया. उत्तराखंड में अब तक 575 मेगावाट की सौर ऊर्जा
परियोजना मंजूर की गई है. इसमें से भी 235 परियोजनाओं पर काम चल रहा
है. इस दौरान तमाम योजनाओं में आम लोगों को सब्सिडी देकर प्रोत्साहित करने
की भी कोशिश की जा रही है. सौर ऊर्जा के तहत न केवल केंद्र सरकार बल्कि
राज्य सरकार भी लोगों को सब्सिडी दे रही है. इसमें प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना
के तहत 11,000 से ज्यादा लाभार्थियों को 90 करोड़ से ज्यादा की सब्सिडी दी
जा चुकी है. हालांकि लाभार्थियों को काफी देरी से इस सब्सिडी का लाभ मिल
रहा है. वैकल्पिक ऊर्जा की उत्तराखंड में बेहद ज्यादा संभावनाएं हैं. इसकी वजह
यह है कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य होने के कारण यहां तमाम जगहों पर अच्छी
धूप देखने को मिलती है और ऐसे में वैकल्पिक ऊर्जा की संभावनाओं को भी बल
मिलता है. हालांकि वो ये भी कहते हैं कि इस पर राज्य सरकार को काफी पहले
ही काम शुरू कर देना चाहिए था और अब इसके लिए नीति में कुछ और सुधार
करने चाहिए, ताकि लोगों को इस वैकल्पिक ऊर्जा को अपनाने में फायदा दिखाई
दे और लोग इसे अपना सकें. वैसे तो राज्य सरकार का मानना है कि वित्त की
राय के कारण ही सब्सिडी की इस योजना को खत्म किया गया है. लेकिन यह भी
किसी से छिपा नहीं है कि राज्य की स्थिति आर्थिक रूप से अच्छी नहीं है और
वित्त विभाग बजट में खर्च को लेकर अक्सर कटौती के प्रयास करता रहा है.
बहरहाल कारण जो भी हों, लेकिन इतना तय है कि राज्य की तरफ से सब्सिडी
नहीं दिए जाने के बाद सौर ऊर्जा के विकल्प पर लोगों की दिलचस्पी भी कम
होगी. इनमें से 23,251 सोलर संयंत्र स्थापित हो चुके हैं। इनमें से 16,543
लाभार्थियों को सब्सिडी मिल चुकी है। सब्सिडी के बड़े आकार का अंदाजा इससे
लग सकता है कि केंद्र से 138 करोड़ की सब्सिडी लाभार्थियों को उपलब्ध कराई
गई है। राज्य सरकार के स्तर से लाभार्थियों को 75 करोड़ की सब्सिडी मिलनी
है।सब्सिडी के इस भार को ही राज्य सरकार के पीछे हटने का कारण माना जा
रहा है। केंद्र सरकार से मिल रही सब्सिडी के बूते ही राज्य में इस योजना को
खींचा जाएगा। देहरादून जिले के सर्वाधिक लाभार्थी पीएम सूर्यघर योजना में
प्रदर्शन के मामले में उत्तराखंड देश के अग्रणी प्रदेशों में है। इस प्रदर्शन को देखते
हुए योजना को क्रियान्वित कर रहा ऊर्जा निगम पुरस्कृत हो चुका है। इस योजना
के सर्वाधिक 5500 से अधिक लाभार्थी देहरादून जिले के हैं। देहरादून के बाद
नैनीताल जिले के हल्द्वानी क्षेत्र में सर्वाधिक लाभार्थी हैं। इसके बाद ऊधम सिंह
नगर और हरिद्वार जिले हैं।इन चार जिलों की तुलना में शेष पर्वतीय जिलों में
अत्यंत कम व्यक्तियों ने इस योजना में रुचि दिखाई है। राज्य की सब्सिडी बंद
होने से योजना पर पड़ने वाले प्रभाव के अंदेशे से ऊर्जा निगम और उत्तराखंड
अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण यानी उरेडा, सहमे हुए हैं। सब्सिडी के बढ़ते भार
के कारण पीएम सूर्यघर योजना में राज्य सरकार अपने स्तर से सब्सिडी नहीं
देगी। एक अप्रैल, 2024 से लागू की गई इस व्यवस्था से आवासीय भवनों की
छत पर सोलर प्लांट लगाने में बढ़चढ़कर भागीदारी निभा रहे जिलों देहरादून,
हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर और नैनीताल के कदम अब लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए
डगमगा सकते हैं।इन जिलों से ही सोलर रूफटॉप योजना में बढ़चढ़कर
हिस्सेदारी की जा रही है। शेष नौ पर्वतीय जिलों की भागीदारी न्यून है। सब्सिडी
बंद होने से ये चार जिले सबसे अधिक सहमे हुए हैं। पीएम सूर्यघर योजना में केंद्र
सरकार की ओर से दी जा रही सब्सिडी के साथ 31 मार्च, 2024 तक प्रदेश
सरकार भी सब्सिडी दे रही थी।
लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार
दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।