रमेश चंद्र पाण्डे अध्यक्ष, उत्तराखण्ड कार्मिक एकता मंच

गडबडी के लिए पहले जवाबदेह आयोग के अध्यक्ष दें इस्तीफा

दरअसल मसला यह है कल यानि 12 फरवरी होने वाली भर्ती परीक्षा हेतु पेपर बनाने के लिए आयोग द्वारा अलग से पृृथक प्रश्न नहीं बनवाये हैं , बल्कि पूर्व परीक्षा हेतु विशेषज्ञों द्वारा दिये गये प्रश्नों का जो क्वैश्चन बैंक है उसी में से प्रश्न लिये जाने हैं। मतलब यह तय है कि कल के पेपर में कोई भी प्रश्न उस क्वेश्चन बैंक से बाहर का नहीं आने वाला और यह क्वेश्चन बैंक पहले ही लीक हो चुुका है। आयोग द्वारा इस पेपर-लीक की कार्यवाही में संलिप्त 56 उम्मीदवारों को नोटिस भेजकर 15 दिन में जवाब दाखिल करने के आदेश भी जारी कर चुका है। अब आयोग का दावा है कि यह लीक हुआ मैटर सिर्फ इन 56 के अलावा कहीं और नहीं गया है और यह बात किसी के गले नहीं उतर रही। बस इसी बात को लेकर सारा बखेड़ा खड़ा हुआ है। बेरोजगार संघ का कहना है कि पहले उन 56 लोगों की जाँच कर के यह पुष्टि हो कर ली जाये कि वास्तव में यहाँ लीकेज उन 56 तक ही है या रायता आगे भी फैला है। मगर सरकार की जिद्द है कि हर हाल में यह परीक्षा कल करवा दी जाये। अब कल पेपर होने के बाद अगर यह साबित हो गया कि लीकेज का रायता आगे भी फैला था तो जिम्मेदार कौन होगा ?

उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा आगामी 12 फरवरी को पटवारी/ लेखपाल की पुुन: कराई जा रही परीक्षा की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, मन में अज्ञात अनहोनी की आंशका हिलोरें मार रही हैं। यूं तो आयोग द्वारा गोपनीयता और पारदर्शिता के साथ परीक्षा के आयोजन की तैयारी पूरी करने के दावे किये जा रहे हैं और परीक्षा में सम्मिलित होने वाले अभ्यर्थियों को उनके प्रवेश पत्र के आधार पर नि:शुल्क यात्रा सुविधा दिये जाने हेतु उत्तराखण्ड परिवहन निगम की ओर से स्पष्ट आदेश भी जारी कर दिये गये हैं। ऐसे में जब परीक्षा देने के लिए दूरदराज से आने वाले अभ्यर्थी अपने अभिभावकों का आर्शीवाद व शुभकामनाओं के साथ बस में बैठकर गन्तव्य की ओर रवानगी कर रहे होंगें,ऐसी अज्ञात अनहोनी की आशंका मन में नहीं आनी चाहिए थी लेकिन गहन पड़ताल करने पर इन आशंकाओं के पीछे जो वजह हैं उन्हें नकारा नहीं जा सकता है और ये ऐसी वजह हैं जिनके विद्यमान रहते लगता है कि मौजूदा संदेहास्पद परिदृष्य में इस परीक्षा को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाना चाहिए।

12 फरवरी को दोबारा हो रही यह परीक्षा ऐसे समय में होने जा रही है जब भर्तियों में हुई धांधलियों को लेकर लोक सेवा आयोग एवं अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से राज्य के समूचे जनमानस का विश्वास उठ चुका है। इन धांधलियों की जांच सीबीआई से कराने की मांग को लेकर गुस्साए बेरोजगारों का आन्दोलन चरम पर है। 9 फरवरी को आन्दोलित बेरोजगारों पर हुए लाठीचार्ज से उनके कपाल से बह रहे खून को देखकर हर वर्ग में उबाल है।
9 फरवरी को ही जहां एक ओर मुख्यमंत्री ने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए नकल विरोधी अध्यादेश 2023 का अनुमोदन कर इसे गर्वनर को भेजा और यह संदेश देने की कोशिश की गई कि नकल रोकने के लिए यह देश का सबसे सख्त कानून है लिहाजा अब कोई गडबड़ी नहीं होगी। दूसरी ओर लोक सेवा आयोग द्वारा परीक्षा नियंत्रक के पद से सुन्दर लाल सेमवाल को हटा दिया। फिलहाल परीक्षा नियंत्रक का अतिरिक्त कार्यभार हरिद्वार के सिटी मजिस्ट्रेट अवधेश कुमार सिंह को दे दिया है ।

गोपनीयता एवं पारदर्शिता के साथ परीक्षा सम्पन्न कराने के लिए संवैधानिक व्यवस्था में पहले से ही जो विधिक दायित्व निर्धारित हैं उनका निर्वहन सत्यनिष्ठा के साथ सही ढंग से हुआ होता तो ये आपराधिक घटनाएं घटित ही नहीं होती। लिहाजा सबसे पहली जरुरत उसे चिन्हित करने की है जिसके द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन करने में लापरवाही की गई। इससे इस बात का पता स्वत: ही चल जायेगा कि आखिर किसकी लापरवाही से यह आपराधिक घटना घटित हुई ?

असली जवाबदेह को कटघरे में डाले बिना चाहे नकल रोकने के लिए ऐसे कितने ही सख्त कानून बन जाएं उसे असल मुद्दे से ध्यान भटकाने वाले के साथ ही ढकोसला ही कहा जायेगा। लिहाजा जरुरत है सिस्टम के अनुरूप जिसके जो दायित्व हैं उनमें अगर वह खरा नहीं है तो उसके खिलाफ जवाबदेही तय कर सख्त कार्यवाही करने की ।

न्याय व्यवस्था का सिद्धांत भी यही है कि “इग्नोरैंस आफ लाॅ इज नो एक्सक्यूज” अर्थात कानून की अवहेलना की माफी नहीं होती है। जो सिस्टम पहले से है उसे फुल-प्रुफ करने के बजाय यदि कानून का भय दिखाकर सिस्टम में सुधार की बात की जाय तो यह सभ्य समाज के लक्षण नहीं हैं । अगर यह दिखाने के लिए परीक्षा नियंत्रक को हटाया गया है कि 12 फरवरी की परीक्षा के लिए सब ठीक कर दिया है तो यह एकदम गलत है। ऐसे में तो यह और भी गलत है कि जब दो दिन बाद परीक्षा हो और परीक्षा नियंत्रक को हटाकर उसका अतिरिक्त कार्यभार सिटी मजिस्ट्रेट को दे दिया जाय । मौजूूदा संंवेेनशील माहौल में परीक्षा नियंत्रक के पद पर फुल टाइम अधिकारी की तैनाती अति आवश्यक थी और यह भी सवाल है कि 12 तारीख को होने वाली परीक्षा के प्रश्नपत्र जो परीक्षा नियंत्रक की कस्टडी मे होने चाहिए, उस परीक्षा के ठीक दो दिन पहले अचानक बिना कोई कारण बताए परीक्षा नियंत्रक को आखिर क्यों हटा दिया।
इस परीक्षा को लेकर लोक सेवा आयोग के दावों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सुनिश्चित हो गया है कि इस परीक्षा हेतु तैयार पेपर के लीक होने की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कहीं कोई गुंजाइश शेष नहीं है ? इस पर आयोग और सरकार का उत्तर हां होगा लेकिन मेरा उत्तर यह है कि जिस प्रकार पटवारी की परीक्षा के आयोजन से पूर्व पेपर लीक होने की सूचना आयोग को मिल चुकी थी और इस सूचना के बावजूद आयोग द्वारा 8 जनवरी को यह परीक्षा आयोजित कराई, ठीक उसी तरह 12 फरवरी को दोबारा होने वाली इस परीक्षा के बारे में भी सबको पता है कि इसके पेपर पहले से ही कैसे लीक हैं।
ऐसे में दावे से कहा जा सकता है कि आगामी 12 फरवरी को होने वाली परीक्षा के प्रश्न पहले से ही लीक है। अब देखने वली बात यह है कि इस विषम परिस्थिति के बावजूद लोक सेवा आयोग आखिर परीक्षा कराने के लिए क्यों आमादा है। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार गोपनीयता एवं पारदर्शिता के साथ परीक्षा आयोजित कराने का पहला विधिक दायित्व आयोग के अध्यक्ष का है और अध्यक्ष इस दायित्व को निभाने में नाकाम रहे हैं लिहाजा नैतिकता के आधार पर सबसे पहले आयोग के अध्यक्ष को अपने पद से तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए अन्यथा स्थिति में जो मौजूदा हालात हैं उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि ऐसे सभी मामलों में अपने दायित्व का ठीक से निर्वहन नहीं करने वालों की जवाबदेही तय करते हुए सख्त कार्यवाही नहीं की गई तो जवाबदेह को कुर्सी से उतारकर कटघरे में लाने के लिए अब जनता कभी भी सीधे सर्जिकल स्ट्राइक कर देगी ।

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