सियासत हमेशा नए चेहरों में संभावनाएं और भविष्य का नेतृत्व तलाशती है । बहुत कम ऐसे चेहरे होते हैं जिनमें यह संभावनाएं नजर आती हैं । प्रकाश पंत उत्तराखंड की सियासत का ऐसा ही चेहरा थे, जिसमें हर किसी को भविष्य का एक बड़ा राजनेता नजर आता था । प्रकाश पंत का यूं असमय जाने का मतलब उत्तराखंड की सियासत में एक बड़ा शून्य खड़ा होना है । इस शून्य की भरपाई हो पाएगी यह फिलहाल तो संभव नजर नहीं आता । जिन्होंने प्रकाश पंत को करीब से देखा है, जो उनकी दो दशक की राजनैतिक यात्रा के गवाह रहे हैं । वह जानते होंगे कि ‘प्रकाश’ पंत बनना हर सियासतदां के बूते की बात नहीं, यह ‘आग’ में तपकर ‘कुंदन’ बनने जैसा है ।

         आज जब राजनेता पढ़ना भूल चुके हैं, गंभीर विषयों पर नेताओं का बिना जाने समझे बोलना चलन मे है, राजनेताओं में विनम्रता की जगह अहंकार ले चुका है, ऐसे में प्रकाश पंत जैसे नेता बेहद प्रासंगिक हैं । उत्तराखंड की राजनीति में प्रकाश पंत को एक विनम्र, व्यवहार कुशल, सर्व सुलभ होने के साथ ही किसी भी विषय पर पूरी तैयारी के साथ अपनी बात रखने के लिए जाना जाता है । यह सही है कि मौजूदा दौर में सियासत में आना बहुत आसान है । मगर मौजूदा दौर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को समझना, इसमें खुद को साबित करना, विषयों को पकड़ना, लोकप्रिय होना और जनता का भरोसा जीतना आसान नहीं है । प्रकाश पंत की खासियत यही थी कि उन्होंने बहुत कम समय में अपनी प्रतिभा और योग्यता के दम पर यह सब हासिल किया।

       नवंबर 2000 में जब अलग उत्तराखंड बना तो शायद गिनती के लोग रहे होंगे जो प्रकाश पंत को जानते रहे हों । वह सरकारी फामेसिस्ट की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए और भाजपा में रहते हुए 1998 में वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बने । इसी नाते प्रकाश पंत अलग उत्तराखंड में अंतरिम विधान सभा के सदस्य बने । विधायी एवं संसदीय कार्यों का कोई अनुभव न होने के बावजूद प्रकाश पंत को नए राज्य में विधानसभा अध्यक्ष की महत्वूपर्ण जिम्मेदारी सौंपी गयी । कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि एक फार्मेसिस्ट किसी राज्य के सर्वोच्च सदन को कुशलता से संचालित कर सकता है । उस वक्त सदन संचालन को लेकर आशंकाएं भी व्यक्त की जाती थीं, मगर प्रकाश पंत ने न सिर्फ बेहतर तरीके से सदन का संचालन किया बल्कि विधानसभा की आधारभूत संरचना की नींव भी रखी ।सीखने की ललक ने उन्हें विधायी और संसदीय कार्यों के जानकार के रूप में स्थापित किया । विधान सभा अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने अपनी सियासी जमीन भी मजबूत की और पिथौरागढ़ विधानसभा सीट से वह विधायक निर्वाचित हुए । राज्य में जब जब भाजपा की सरकार रही अन्य विभागों के साथ ही वह हर बाद संसदीय कार्य मंत्री रहे । राजनैतिक आडंबर, प्रपंच और प्रबंधन से दूर रहने वाले प्रकाश पंत की छवि राज्य में एक धीर गंभीर नेता की रही । पंत सियासत में गंभीरता, सौम्यता और जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए ही जाने जाते थे । प्रकाश पंत संभवत: इकलौते ऐसे नेता रहे, जिनके किसी भी बयान पर कभी कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ ।

राज्य बने बीस साल होने को हैं, सत्ता पक्ष और विपक्ष में तमाम नेता आए गए लेकिन प्रकाश पंत ने राज्य की सियासत में जो अलग पहचान बनायी उसके इर्द गिर्द आज भी कोई नजर नहीं आता । उत्तराखंड के भविष्य के लिहाज से प्रकाश पंत का असमय जाना बड़ी क्षति है, पंत के समर्थकों और प्रशंसकों में ही नहीं बल्कि सियासत में दिलचस्पी रखने वालों को उनमें भविष्य का मुख्यमंत्री नजर आता था। काल ने उत्तराखंड के एक काबिल राजनेता को असमय छीनकर ऐसी चोट दी है जिसे लंबे समय तक नहीं भरा जा सकता । काश सियासत की युवा पीड़ी प्रकाश पंत से प्रेरणा ले पाए तो उत्तराखंड ने खोया है उसकी जल्द भरपाई हो पाए ।

अंत में बस इतना ही कि हम राजनेताओं को कोसते जरूर हैं, उन पर सवाल भी उठाते हैं मगर सच यह है कि एक काबिल नेता को तलाशने और तराशने में बहुत वक्त लगता है । योग्य नेता सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का, किसी भी राजनैतिक विचारधार का क्यों न हो आखिर वह राष्ट्र और राज्य की संपत्ति होता है । एक योग्य नेता का असमय जाना राज्य और राष्ट्र दोनो का नुकसान है । प्रकाश पंत का असमय जाना भी सिर्फ राज्य की नहीं राष्ट्र की भी क्षति है। उत्तराखंड को उनकी कमी हमेशा.. हमेशा.. खलती रहेगी .. विनम्र श्रद्धांजलि।

 

                                                                                  साभार- योगेश भट्ट