देहरादून,25 सितम्बर: जोशीमठ में भूधंसाव के असल कारणों की पड़ताल और समाधान सुझाने के लिए सरकार ने जो जिम्मेदारी विभिन्न विज्ञानी संस्थानों को सौंपी थी, उनकी रिपोर्ट अब सार्वजनिक कर दी गई है। जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआइ) की जांच रिपोर्ट पर गौर करें तो विज्ञानियों ने भूधंसाव की स्थिति के इतिहास और वर्तमान दोनों ही परिस्थितियों पर विस्तृत अध्ययन किया है।
हालिया अध्ययन में संस्थान के विज्ञानियों ने पाया कि कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं, जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है। एनडीआरआई व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की भांति इस बात का उल्लेख किया है कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं। दूसरी तरफ इसी भूभाग पर समय के साथ शहरीकरण का अनियंत्रित भार भी पड़ा है, जिसके चलते भूधंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से गतिमान थी, उसमें आंशिक तेजी आ गई है।
42 नई दरारों में से अधिकांश सुनील गांव, मनोहर बाग सिंहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में हैं। इन्हें 50 से 60 मीटर बड़े भूभाग पर अधिक देखा जा सकता है। जीएसआइ की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ का अधिकांश भूभाग ढालदार है। यहां 11 प्रतिशत भूभाग 45 डिग्री से अधिक ढाल वाला है, जबकि आठ प्रतिशत भूभाग 40 से 45 डिग्री ढाल वाला है। अधिक ढाल वाले क्षेत्रों में भारी निर्माण से खतरा बना रहेगा।