समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित छात्रवृति योजना में गत वर्षों में हुए अरबों रुपयों के घोटाले पर तमाम पत्रकार अपनी अपनी पसंद की कहानियाँ भर लिख रहे हैं । असल खेल क्या है वे अब भी इसकी तह तक नही जा पा रहें हैं ।

ये खेल 2005 में तत्कालीन समाज कल्याण सचिव राधा श्रीवास्तव रतूड़ी के कार्यकाल से शुरू होकर वर्तमान सचिव एल. फ़ैनई तक आता है । इन अधिकारियों के कार्यकाल में ये घोटाला ना केवल हुआ बल्कि उसे होने देने के लिए शासन स्तर से लेकर ज़िलों तक मे वे सब इंतजाम चाक चौबंद किये गए जो वे कर सकते थे । इस अरबों रुपयों के घोटाले को समझने के लिए तमाम उन पन्नो को पलटने की जरूरत है जो शासन की फाइलों में नोटसीट के रूप में दर्ज है ।

आखिरकार क्यों एक अपर सचिव राज्य सरकार के शासनादेश और भारत सरकार की गाइड लाइन के विरुद्ध हरिद्वार के जिला समाज कल्याण अधिकारी को जिले में स्थित एक संस्था विशेष को ऐसे कोर्स के लिए लाखों रुपयों की छात्रवृति जारी करने के लिए निदेशालय को बाईपास कर सीधे आदेश दे रहा था जिस कोर्स का फीस स्ट्रक्चर ही शासन से स्वीकृत नही था, वो भी इस विशेष टिप्पणी के साथ कि मुख्यमंत्री कार्यालय से मौखिक निर्देश प्राप्त हुए हैं ? सवाल और भी बहुत से हैं जिन तक जांच एजेंसियों को पहुंचने की जरूरत हैं,तभी इस खेल के बड़े खिलाड़ियों तक आंच पहुंचेगी ।

छात्रवृति वितरण के लिए राज्य सरकार के द्वारा शासनादेश जारी किए जाने में केंद्र सरकार द्वारा दी गई गाइड लाइन का भी खुल्लम खुल्ला उल्लंघन किया जाना पत्रवलियों में दर्ज है । उसी की परिणति है कि गत वर्षों में ये अरबों रुपयों का घोटाला हो पाया ।

बीते 19 साल की सरकारों के विभागीय मंत्रियों ने और विभागीय सचिवों ने जानबूझकर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दर किनार कर उन जूनियर अधिकारियों को मनमानी और मनचाही पोस्टिंग और कानून विरुद्ध मनमाने लाभ दिलाये जिसके एवज में वे जूनियर अधिकारी उनकी झोली भर सकते थे । इस घोटाले ने न केवल गरीब एंव वंचित वर्ग के छात्रों को उनके कानूनन हकों से वंचित किया बल्कि पूरे समाज कल्याण विभाग के सिस्टम को भी खत्म कर दिया ।

छात्रवृति घोटाले की अवैध रकम और घोटाले में लिप्त लोगो का जोर इतना है कि आज भी उसके प्रभाव में सरकार के विभागीय मंत्री और शासन के बड़े अधिकारी विभागीय सिस्टम को सही करने की और एक कदम भी नही बढ़ा पा रहे हैं, जिसकी बानगी विभाग के आईटी सेल और अनुसूचित जाति और जनजाति नियोजन प्रकोष्ठ में देखी जा सकती है ।

साभार- चंद्रशेखर करगेती (RTI- कार्यकर्ता)

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