डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत सरकार रेलवे मंत्रालय का उत्तराखंड में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट चल रहा है। इस रेलवे प्रोजेक्ट का काम काफी तेज गति से चल रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि जो कम्पनी इन प्रोजेक्टों में टनलों का निर्माण कार्य कर रही है, वह निर्माण में गुणवत्ता का ख्याल नहीं कर रही है। यही कारण है कि भूस्खलन को रोकने के लिए बनाई गई दीवार ही लैंडस्लाइड की चपेट में आ गई है।

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में मानसून सीजन आफत की तरह आता है। इस दौरान भूस्खलन और चट्टानों के दरकने की खबरें आती रहती हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट का मकसद उत्तराखंड के चार धामों को आपस में जोड़ना है। परियोजना के तहत 16 पुल, 17 सुरंग और 12 रेलवे स्टेशन बनाए जाने प्रस्तावित हैं। जिनमें से 10 स्टेशन पुलों के ऊपर और सुरंग के अंदर होंगे। खुली जमीन पर इन स्टेशनों का प्लेटफार्म वाला हिस्सा ही दिखाई देगा कर्णप्रयाग रेल परियोजना भारतीय रेलवे की सबसे चुनौतीपूर्ण रेल परियोजना है।

125 किलोमीटर लंबी इस परियोजना पर 105 किलोमीटर रेल लाइन सुरंगों के भीतर से होकर गुजरेगी। परियोजना पर कुल 17 सुरंगों का निर्माण किया जा रहा है। ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के निर्माण में कई अनियमितताएं बरती जा रही हैं, जो बड़ी-बड़ी दुर्घटनाओं को दावत दे रही हैं। मंगलवार को ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के तहत बनाई गई निमार्णाधीन टनल की सेफ्टी दीवार ही भूस्खलन की चपेट में आने से ढह गई। दरअसल, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के अन्तर्गत कर्णप्रयाग के पास सिवाई गांव में बन रही निमार्णाधीन रेलवे टनल के बाहर रॉक बोल्टिंग कर भूस्खलन को रोकने के लिए बनाई गई दीवार भूधंसाव होने से क्षतिग्रस्त हो गई है। साथ ही टनल के ऊपर से गुजरने वाली कर्णप्रयाग सिवाई सड़क भी भूधंसाव की चपेट में आने से 15 मीटर धंसने के कारण मार्ग अवरुद्ध हो गया है। इसके चलते 13 गांवों का संपर्क भी टूट चुका है।

भूस्खलन के कारणों और वहां की स्थिति का आकलन किया जा रहा है। बताया कि वर्तमान परिस्थितयों में निर्माण कार्य तत्काल शुरू नहीं किया जा सकता है। चूंकि टनल के अंदर काम करने में सुरक्षा पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भूगर्भीय सर्वे रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। प्रारंभिक तौर पर सामने आ रहा है कि टनल के ऊपरी क्षेत्र में मोटर मार्ग और पहाड़ी से वर्षा के पानी के साथ काफी मलबा टनल के मुहाने पर आया। इसकी वजह से टनल के मुहाने वाले हिस्से से भू-धंसाव की स्थिति पैदा हुई है। कर्णप्रयाग निर्माणाधीन रेल परियोजना से प्रभावित गूलर घाटी के ग्रामीणों ने बारिश में व्यासी रेल स्टेशन और सुरंग के बाहर प्रदर्शन किया। कहा कि टनल के कारण उनके घरों में दरारें पड़ गई हैं। ग्रामीण दहशत में जीने को मजबूर हैं लेकिन कई बार शिकायत करने पर रेल विकास निगम और प्रशासन उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहा है।

उत्तराखंड समेत देश के तमाम हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध तरीके से सड़कों के निर्माण समेत तमाम विकास कार्य, वनों की कटाई और जलाशयों से पानी का रिसाव भूस्खलन का बड़ा कारण साबित हो रहा है लेकिन ​22 साल में आपदा से निपटने को ​किसी तरह की नीति तैयार न होना। अब तक की सरकारों पर सवाल खड़े कर रहा है। हर बार आपदा आती है, सरकारें नुकसान को लेकर रिपोर्ट तैयार कर मुआवजा देकर पुर्नवास और संसाधनों को विकसित करने के लिए कई प्लानिंग भी बनाती हैं। लेकिन जब भी प्राकृतिक आपदा से सरकारों का सामना होता है, तो सभी सिस्टम बेबस नजर आता है। जिसके बाद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ के अलावा तमाम देशभर की संस्थाएं अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाती हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की तबाही का दूसरा बड़ा कारण है। चारधाम यात्रा के लिए ऑल वेदर रोड से कितने जंगलों व पेड़ों की बलि दी गई इसका कोई हिसाब सरकार के पास नहीं है। सिर्फ तुर्रा दिया जाता है कि ऑल वेदर रोड बनने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा लेकिन नाजुक पहाड़ों में इस तरह की सनक भरी नीतियों से केवल भीड़ और मोटर वाहनों का सैलाब बढ़ाकर कार्बन की मात्रा कई गुना बढ़ाने का इंतजाम हो रहा है। आगजनी और वाहनों का सैलाब हिमालय में ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरों को और भी बढ़ा रहे हैं।

यह लेखक के निजी विचार हैं !

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