वर्ष 2020 का रमणिका सम्मान पुरुस्कार छत्तीसगढ़ के पत्रकार संतोष यादव को देने का निर्णय लिया गया है। उन्हें आज 1 मार्च को हैदराबाद में एक गरिमामय समारोह में सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार रमणिका गुप्त फाउंडेशन द्वारा हर वर्ष देश के आदिवासी-दलित अंचलों में काम कर रहे लेखकों, पत्रकारों या स्तंभकारों को उनकी असाधारण लेखनी और कामों के लिए दिया जाता है। पुरुस्कार में एक सम्मान पत्र और 25000 रुपये की नकद राशि प्रदान की जाती है।
इस सम्मान की घोषणा करते हुए फाउंडेशन ने कहा है कि छतीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में कार्यरत पत्रकार संतोष यादव एक स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकारिता की मिसाल हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के जीवन और उनके संघर्षों को, हाशिये पर पड़े लोगों के सामाजिक कल्याण के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता तथा नक्सलियों से निपटने के नाम पर निर्दोष आदिवासियों पर बर्बर पुलिस अत्याचार को प्रखरता से उजागर किया है। उन्होंने वर्ष 2011 से छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध समाचार पत्र नवभारत के पत्रकार की हैसियत से अपने कैरियर की शुरूआत की थी। उनकी जनसरोकारीय पत्रकारिता और प्रतिबद्धता को दबाने के लिए तत्कालीन भाजपा सरकार और दागी आईजीपी एसआरपी कल्लूरी की भूमिका की पूरे देश में निंदा हुई थी और राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों के प्रति इस सरकार संवेदनहीनता चर्चा में आई थी। ऐसा करते हुए उन्हें भी तत्कालीन भाजपा सरकार और उसकी पुलिस की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है। वर्ष 2015 में उन्हें जेल में डाल दिया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 307 तथा खतरनाक जन सुरक्षा अधिनियम की धारा 29 के तहत आरोप मढ़े गए। जेल में वे दो वर्षों तक रहे और उन्हें भयंकर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गई। उनके परिवार को भी इस बर्बरता का शिकार होना पड़ा और आर्थिक रूप से उनकी कमर तोड़ दी गई। वर्ष 2017 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत दी गई, लेकिन तब भी उनकी हर प्रकार की सामान्य गतिविधि को प्रतिबंधित किया गया तथा हर रोज उन्हें पुलिस थाने में अपनी हाजिरी दर्ज करानी पड़ती थी। इस प्रताड़ना से उन्हें राहत 2 जनवरी, 2020 को ही मिली, जब एनआईए कोर्ट ने उन्हें सभी झूठे आरोपों से अंतिम रूप से बरी कर दिया।
फाउंडेशन ने कहा है कि संतोष यादव के साहस की और बस्तर में आदिवासी प्रतिबद्धता, मानवीय संवेदना और मानवाधिकारों के प्रति सजग पत्रकार के रूप में छत्तीसगढ़ प्रदेश और देश में मानवाधिकारों और सामाजिक मुद्दों पर कार्य करने वाले और पत्रकारों के बहुत-से संगठनों ने सराहना की है। उन्होंने इस सम्मान समारोह में भविष्य में भी आदिवासी हितों और मानवाधिकारों के लिए लड़ने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
उल्लेखनीय है कि रमणिका गुप्ता आदिवासी अंचलों से जुड़े साहित्य को उकेरने वाली देश की जानी-मानी साहित्यकार थी। रमणिका गुप्ता फाउंडेशन के प्रबंधन आदिवासी शोध और विकास केंद्र (सेन्टर फॉर आदिवासी रिसर्च एंड डेवलपमेंट) किया जाता है, जो आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच का रिसर्च विंग है। इस पुरस्कार को साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है। संतोष यादव ने यह पुरुस्कार आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच के महासचिव, पूर्व सांसद जीतेन्द्र चौधरी के हाथों से ग्रहण किया।
Santosh Yadav declared for Ramnika Sanman Purasker-2020
Ramnika Gupta Foundation, which is now managed by the Centre for Adivasi Research and Development (CARD), the research wing of the Adivasi Adhikar Rashtriya Manch (AARM) confers every year an award to one budding and potential Adivasi Writer/Columnist/Author for their exceptional works. The award includes one citation and Rs. 25,000 (Rupees Twenty Five Thousand).
This year the Ramnika Gupta Foundation has chosen to confer the award to Shri Santosh Yadav (33), a sensitive free launch columnist, bold writer and human right activist of Chhattisgarh. Shri Yadav started his career in 2011 as a columnist in Nava Bharat Samachar Patra, published from Jagdalpur, Chhattisgarh. In his columns, number of episodes has been published on the life & struggles of Adivasi, apathy of Government to the welfare of marginalized people and reckless police atrocities upon the innocent Adivasis in Chhattisgarh in the name of combating Naxalites. Against which and on the role of the then BJP Government of Chhattisgarh, huge debate was erupted at the national level. At that time, Mr. Kalluri, a most tainted IPS Officer was posted in Bastar Region as Inspector General of Police. In 2015, Mr. Yadav was dragged into the Jail for more than 2(two) years being framed under Section 302 and 307 of IPC, implicated under Section 29 of Chhattisgarh Security Act, a draconian act, physically and mentally tortured in numerous way. His family members are also not spared from this brutality harassment and economic blockade. Shri Yadav managed to obtain bail from the Supreme Court in 2017, and has to report every day to the local Police Station and barred from all normal activities. Finally on January 2, 2020 he was acquitted from all false charges. Mr. Yadav works was appreciated and awarded by several Human Rights, Social and Journalist Organizations at the National and State Level.
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