जनता की आवाज ,मोब्लिंचिंग के खिलाफ

मोब्लिंचिंग के खिलाफ PM को पत्र लिखने वाले बुद्धिजीवियों के खिलाफ कार्यवाही के विरोध में धरना, पीएम को लिखा पत्र

देहरादून। उत्तराखण्ड के नागरिकों ने आज रविवार को स्थानीय गांधी पार्क पर इकट्ठा हो कर मोब्लिंचिंग के खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले 51 लोगों के खिलाफ केस दर्ज होने के विरोध में धरना-प्रदर्शन किया। उसके बाद जिलाधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को पत्र भेजा। मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को लेकर इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फिल्मकार श्याम बेनेगल समेत 50 से अधिक हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखा था। इस पत्र में इस तरह की बढ़ती घटनाओं को रोकने की मांग की गई थी। इसके बाद एक वकील बिहार की अदालत में चला गया और अदालत ने उनके खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दे दिए हैं।वक्ताओं ने कहा कि लोकतंत्र में असहमति का अधिकार, विरोध का अधिकार है और जिस प्रकार से असहमति करने वालों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं ये स्वतंत्र लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

“आज देहरादून गांधीपार्क में प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री को भेजा ज्ञापन”-

सेवा में,
प्रधानमंत्री,
भारत सरकार
7 – लोककल्याण मार्ग,नई दिल्ली

महोदय,
सादर प्रणाम!
संविधान की धारा 19 (1) (a) देश की आम जनता को लोकतान्त्रिक तरीके से विरोध करने और असहमत होने का अधिकार देता है। भारतीय संस्कृति आदिकाल से ही शास्त्रार्थ करने व असहमति व्यक्त करने की आज़ादी देती है। भारत का संविधान इसी प्रकार की स्वस्थ, तीखी लेकिन सम्मानपूर्वक बहसों के फलस्वरूप ही दुनिया का एक बेहतरीन लोकतान्त्रिक ग्रन्थ बन पाया है।

लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ‘विरोध करना’ सिर्फ एक संवैधानिक अधिकार ही नहीं है, अपितु लोकतंत्र को स्वस्थ रखने के लिए एक ‘आवश्यक कर्तव्य’ भी है। आज देश में एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है, स्वस्थ और सभ्य बहसों का स्थान असभ्य और गाली – गलौच की संस्कृति ने ले लिया है। वैचारिक विरोध का अर्थ व्यक्तिगत विरोध मान लिया गया है जिस कारण समाज में एक वैमनस्य की भावना पैदा हो रही है। जरा से विरोध पर गाली -गलौच, मार पीट और मोबलिंचिंग एक आम बात हो गई है।

महोदय, पिछले दिनों समाज के कुछ अग्रणी व्यक्तियों जिनमें पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलाकार और अध्यापक शामिल थे, ने आपको देश का सर्वोच्च नेता और प्रधानमंत्री होने के नाते एक पत्र लिखकर आपके कुछ फैसलों पर अपनी असहमति जताई थी, उम्मीद है कि उसे आपने एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक तरीके के तरह से समझा होगा, लेकिन मुज्जफरपुर – बिहार की एक अदालत के आदेश पर इन बुद्धिजीवियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। दर्ज की गई प्राथमिकी सीधे तौर पर. भारत गणतांत्रिक देश के एक नागरिक के तौर पर, इनके संवैधानिक अधिकारों का हनन3 तथा भारतीय संस्कृति और परंपरा का अपमान भी है।

हम अधोहस्ताक्षरी आपसे निवेदन करते हैं कि प्रधानमंत्री के नाते, देश के संविधान में प्रदत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, इन 51 बुद्धिजीवियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करके एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में एक कदम बढ़ाया जाए।
सादर

 

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इस पर हस्ताक्षर वालों में किशोर उपाध्याय, गीता गैरोला, निर्मला बिष्ट, हेमलता, अनुराधा, गरिमा दसौनी, अपूर्वा, भार्गव चंदोला, जगमोहन मेहंदीरत्ता, त्रिलोचन भट्ट, अम्बुज शर्मा, दीप्तीरावत बिष्ट,मालती हल्दर,अजय शर्मा, प्रदीप सती, इंद्रेश मैखुरी,जयकृत कंडवाल, जयदेव भट्टाचार्य, राजेश चमोली, मोहन कुमार विजय भट्ट, संजय भट्ट, सुरेश नेगी, उदवीर पंवार, राजू सिंह, , कैलाश नौटियाल, सुधीर पन्त, आरिफ, धर्मेंद्र ठाकुर, हिमांशु चौहान, आदि लोग थे।