बहुप्रतिक्षित हेमकुण्ड रोपवे परियोजना में निविदा में नकली एफ.डी.आर./सी.डी.आर. लगाकर धोखाधड़ी करने वाली पाईन एण्ड पीक लिमिटेड नामक कम्पनी ने ना सिर्फ पर्यटन विभाग के साथ ही धोखाधड़ी की बल्कि अन्य लोग भी इसकी धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं । कम्पनी ने आधिकारिक तौर पर जिन लोगों को निदेशक दर्शाया गया है उनकी नियुक्ति भी फर्जी हस्ताक्षरों से हुई है। पर्यटन विभाग द्वारा बहुप्रतिक्षित हेमकुण्ड रोपवे परियोजना में फर्जी एफ.डी.आर. लगाने के मामले में पाईन एण्ड पीक लिमिटेड एवं उसकी अन्य सहयोगी कम्पनियों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करने पर इस बात का खुलासा हुआ।

भाष्कर काला

देहरादून , 18 अप्रैल : देहरादून स्थित उत्तरांचल प्रैस क्लब में आयोजित परत्कार वार्ता में पाईन एण्ड पीक लिमिटेड कम्पनी में दर्शाये गये भास्कर काला ने मीडिया के सम्मुख आ कर यह खुलासा किया कि वह इस कम्पनी में कभी भी निदेशक रहे ही नहीं। भास्कर ने बताया कि वह एक प्रवासी (एन.आर.आई.) भारतीय हैं और विगत दस वर्षों से आस्ट्रेलिया में निवास कर रहे हैं। उनके मुताबिक उनके व्यक्तिगत मित्रों द्वारा उन्हें यह जानकारी दी गयी कि हेमकुण्ड रोपवे परियोजना के किसी प्रकरण में कम्पनी के विरूद्ध मुकदमा दर्ज हुआ है जिसमें उन्हें भी फर्जी रूप से निदेशक दर्शाया गया है। यह सूचना मिलने पर उन्होने तमाम मीडिया से जानकारी ली तथा वस्तुस्थिति से अवगत होने के लिए देहरादून पहुंचे।

#मुकेश जोशी

भास्कर के बताया कि जब उन्होने रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज की बेवसाइट और अन्य माध्यमों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि वो एक बड़ी धोखाधड़ी के शिकार हो चुके हैं। कम्पनी के स्वामी मुकेश जोशी व रितेश जोशी ने फर्जी तरीके से इनको कम्पनी में नियुक्त किया है। यही नहीं कम्पनी में उनके फर्जी डिजिटल सिग्नेचर के माध्यम से अन्य लोगों को भी निदेशक बनाया गया है। इसके अलावा उनको कम्पनी की विभिन्न मीटिंगो में उपस्थित दिखाया गया है जिसमें उन्होंने प्रतिभाग ही नहीं किया था उस दौरान वह ऑस्ट्रेलिया में निवास कर रहे थे।वेबसाइट से पता चला है कि उनको बतौर डायरेक्टर कम्पनी में जीरो शेयर होल्डिंग दिखाई गयी है तथा उक्त बैठकों के लिए एवं बतौर डायरेक्टर कोई मानदेय ना तो निर्धारित था और ना ही कभी दिया गया।

भास्कर काला ने आगे बताते हुए कहा उनकी नियुक्ति वर्ष 2009 से दर्शाई गयी है जबकि निदेशक बनाने की कार्यवाही सी.ए. दिनेश गुप्ता एवं मुकेश जोशी के माध्यम से फरवरी 2011 में की गयी जो कि स्वयं में संदेहास्पद है। इसके अलावा भी कई अन्य भेदभावपूर्ण प्रपत्र रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज की वेबसाइट में दिखाई पड़ते हैं जिनकी सच्चाई जांच के माध्यम से ही ज्ञात हो सकती है। इस सम्बन्ध में उन्होंने पुलिस अधीक्षक महोदय से जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध भी किया है।

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