सुनील थपल्याल ‘घंजीर’

   *ए युनीक डैफिनेशन औफ पर्याबरण औन पर्याबरण डे*

(पुरण जमनो इसकोल , पुरणु टैपौ मास्टर, पुरणा टैपा बिगड़्यार्थी अर नै जमनो सबजैक्ट …. पर्याबरण…..)

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बालको आज बल पर्याबरण दिवस च् … चला त् एक एक कै बथावा पर्याबरण किसे कैते हैं ..?

खड़ु हो रै चिपतरि …..!

जी मासाब ! ब्वर्या मे बैठकर पढाई करने को पर्याबरण कैते हैं !

हां ब्यटा त्यारा ददा औंला चोरि नि खयां हूंदा त् त्वेफर इतगा अकल कख्वे आंणि छै … सिडौन बेकूप कहीं का !
खड़ु हो रै ! धगुलि ….

मासाब न्हा मेरे दादा जी ने बथाया कि परदे के पीछे काम करने को पर्याबरण कैते हैं …!

शाबासे धगुलि ! त्यारू ददा वे टैम फर परदा पिछनै काम नि करदु त् आज य कच्ची कंटर पिवाक पीड़ि खराब नि होंदि … स्यटप ..!
खड़ु हो रै पिंदकि ….

मासाब पर्याबरण माने पर्या चीज कु हरण नी करना चै ! जन रावणन् सीतौ हरण कैरि अर लंकौ पर्याबरण खराप ह्वे …

त्यारा बुबा रामौ पाल्ट त् बरसु बटि ख्यलणु च् पर औलाद वे परला दर्जे बांदर मिलिन … मुसफेफड़ा कहीं का …
खड़ु हो रै कितला …

मासाब पर्याबरण मल्लप पीणे के बाद प्रायश्चित कना …

हां जन तेरू बुबा करद रोज … उल्लू कहीं का …
खड़ु हो रै जख्या …(जख्या बूतयाल वु उच्छेदि बिग्ड़्यार्थी च् जैसे मास्टर बि दूर भजदीं … दलेदर दा कु भणजु …)

मासाब तुम बि यूं बांदरू तैं क्य पुछणा छौ पर्याबरण … मीम पुछदि … मि बथौंलु बिस्तार से । य्हा हम पाड़ीयूं बरौबर ल्ये कैन हूण जंगल हवा पाणि बचाण वलु .. य्हा हमुन पर्याबरण बचाणा चक्कर मा सर्या पाड़ अर गौं का गौं खालि कैरि देनि ..। लोग ब्वना छन कि पलैयन हूणु च् पुटगि बान … बेकूप छन … पुटगि त् हमुन यखि बि पालि देणि छै .. स्यू देखा सर्या सारि सुंगरून् भ्वरीं च् .. पर न्है … हम ठैरा पर्याबरण पिरेमी … हम डालों फर चिपटि जंदौ अर चिपगो ह्वे जंदौ । हम यख रैंदा त् हमुन पाड़ै शुद्व हवा पाणि डालि बोट्यूं कु नाश कनु छौ .. इलै हमुन पर्याबरण बचांणौ भारि बलिदान दे अर अपंणि कूड़ी बाड़ि छोड़ि छाड़ि प्रेदेशु का खराप पर्याबरण मा पौंछि ग्यों … हम लोखु तैं अपणा ये महान बलिदान कु भान नीछ अर हम पलायन कु रोणु रूणा रंदौ , हम अपणि जग हंसै करोणा रंदौ… जागो पाड़ियो जागो … अपने को सम्मान दो … तुम हि हो असली पर्याबरण पिरेमी …

मासाब हौरि बिंगाना है क्या ….?

मासाब बिहोश….

!!!

   यस.के थपल्याल *घंजीर*