पाकिस्तान एक ओर तो भारत के साथ शांति की बात करता है तो दूसरी ओर नापाक हरकतें भी करता रहता है। यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भारत का हिस्सा है, पाकिस्तान के शीर्ष चुनाव अधिकारी ने पीओके में 25 जुलाई को विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा कर डाली है। पाकिस्तान ने पिछले साल गिलगिट-बाल्टिस्तान में भी विधानसभा चुनाव कराया था जिसका विरोध करते हुए भारत ने कहा था कि सैन्य कब्जे वाले क्षेत्र की स्थिति को बदलने के लिए किसी भी कार्रवाई का पाकिस्तान के पास कोई कानूनी आधार नहीं है। भारत सरकार ने पाकिस्तान को कई बार यह स्पष्ट रूप से बताया है कि गिलगिट और बाल्टिस्तान क्षेत्रों सहित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश भारत के अभिन्न अंग हैं।
पीओके में कब और कितनी सीटों पर होंगे चुनाव ?
जहाँ तक पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की बात है तो वहाँ के मुख्य चुनाव आयुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अब्दुल राशिद सुलेहरिया ने 25 जुलाई को चुनाव कराने की घोषणा की है। चुनाव कार्यक्रम के अनुसार उम्मीदवार 21 जून तक अपना नामांकन पत्र भर सकते हैं और अंतिम सूची 3 जुलाई को जारी की जाएगी। पीओके में विधानसभा के 45 प्रतिनिधियों को चुनने के लिए चुनाव होगा। पाकिस्तान ने इस बार के चुनाव में चार विधानसभा सीटें बढ़ा दी हैं। पीओके विधानसभा के लिए पिछला आम चुनाव जुलाई 2016 में कराया गया था और तब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज ने उसमें जीत दर्ज की थी।
पीओके के चुनावी मुद्दे क्या हैं ?
पाकिस्तान जिस पीओके में विधानसभा चुनाव कराने की बात कह रहा है वहां के लोगों के मन में क्या है, आइये अब यह जानते हैं। इस समय की बात करें तो पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ यहां के लोगों के मन में गहरा आक्रोश है। पिछले कुछ समय से यहां के लोग चीन की ओर से क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के किये जा रहे दोहन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। यही नहीं पीओके की जनता पाकिस्तानी सेना की ओर से जबरन भूमि कब्जे के खिलाफ भी आवाज उठाती रही है। साथ ही बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार की समस्या से इस समय पीओके का हर आदमी परेशान है। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं का अभाव तो है ही साथ ही बेरोजगारी और कमीशनखोरी ने हर आदमी का जीना मुहाल कर रखा है। यही नहीं आईएसआई की ओर से अकसर लोगों पर की जाने वाली छापेमारी भी यहां बड़ा मुद्दा है। साथ ही लोगों का आरोप है कि यहां पर सर्वाधिक बिजली बनने के बावजूद लोगों को पूरे समय बिजली सप्लाई नहीं की जाती और उसे बाहर बेच दिया जाता है। हालिया समय में कई बार यहाँ खुलकर पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ प्रदर्शन होते रहे हैं और सामाजिक कार्यकर्ता भारत तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की माँग करते रहे हैं।
हालिया विरोध प्रदर्शनों ने पाकिस्तान को चिंता में डाल दिया है
पीओके में महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तो चल ही रहे हैं साथ ही पिछले साल एक ऐसी घटना हुई थी कि पाक हुक्मरानों के होश उड़ गये थे। पिछले साल 21 अगस्त को पीओके के ददयाल शहर में एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार तनवीर अहमद ने पाकिस्तानी झंडा उतार दिया था जिसके बाद उसे सुरक्षा एजेंसियां उठा कर ले गयीं। यही नहीं इसी साल जनवरी में महँगाई के आसमान पर पहुँच जाने के खिलाफ स्थानीय नेताओं ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। जिसके बाद स्थानीय नेताओं की गिरफ्तारी के साथ ही आंदोलन हिंसक हो गया और पीओके में नागरिकों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं थीं। प्रदर्शनकारियों ने आजाद पट्टन इलाके में एक पुलिस थाने में आग लगा दी और पुलिस वाहनों को नष्ट कर दिया था जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग और लाठीचार्ज भी किया जिसमें कई लोग मारे गये और कई घायल हो गए थे।
पीओके की जनता पाकिस्तान से त्रस्त है
पीओके के स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान सरकार उनका विभिन्न तरह से शोषण कर रही है। देखा जाये तो पाकिस्तानी कब्जे वाले क्षेत्र के लोग इस्लामाबाद की मनमानी से तंग आ चुके हैं और लोगों को अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इसके साथ ही मुजफ्फराबाद शहर में बड़ी संख्या में स्थानीय निवासियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना के निर्माण के खिलाफ भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन चला रखा है। इस प्रदर्शन को पाकिस्तान सरकार बलपूर्वक दबाने का प्रयास भी कर चुकी है। यही नहीं जम्मू-कश्मीर नेशनल स्टूडेंट्स फेडरेशन द्वारा जंदाली में खुद को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराने के लिए पिछले दिनों एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था और उसमें पाकिस्तान से आजादी के नारे भी लगाये गये थे।
पीओके में चुनाव से पाकिस्तान हासिल क्या करना चाहता है ?
जहां तक यह सवाल है कि पाकिस्तान पीओके में चुनाव कराकर क्या हासिल करना चाहता है तो हम आपको बता दें कि कश्मीर मुद्दे को लेकर पाकिस्तान भारत के लिए परेशानी खड़े करने के प्रयासों में कमी नहीं लाना चाहता। दूसरा अभी पीओके में नवाज शरीफ की पार्टी का शासन है तो इमरान खान सेना के सहयोग से हर जगह से नवाज की पार्टी को हटा कर अपनी पार्टी को सरकार में लाने की कवायद में लगे हुए हैं। यदि इमरान खान की पार्टी की सरकार पीओके में बनती है तो वहां चीन की परियोजनाओं के खिलाफ आवाजें उतनी आसानी से नहीं उठ पायेंगी।
बहरहाल, पाकिस्तान कश्मीर को लेकर कितना बेचैन रहता है इसका अंदाजा इस बात से भी लग सकता है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कश्मीर के मुद्दे को उठाने और इस पर समर्थन हासिल करने के लिए इस्लामाबाद में अगले साल मुस्लिम राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाने की घोषणा की है। शाह महमूद कुरैशी ने कहा है क अगर ईश्वर ने मुझे मौका दिया तो मैं कश्मीर के मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए मार्च 2022 में इस्लामाबाद में मुस्लिम राष्ट्रों के विदेश मंत्रियों की बैठक का आयोजन करूंगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान कश्मीर का सपना ही देखता रहता है चाहे दिन हो या रात। देखना होगा कि पीओके में कराये जाने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम क्या रहते हैं?
साभार -नीरज कुमार दुबे