badal saroj

आदरणीय मोदी जी,
सादर प्रणाम!

क्षमा कीजियेगा. लिखना तो असल में आदरणीय प्रधानमंत्री जी को था, किन्तु अचानक कक्षा 5 में पढ़ी बाबा भारती और डाकू खडग सिंह की कहानी याद आ गयी। आपने शायद ही पढ़ी हो।

इस कहानी में एक डाकू बीमार बनने का दिखावा कर बाबा भारती से उनका जान से भी प्यारा घोड़ा सुलतान छीन लेता है। बाबा भारती उससे सिर्फ एक वचन मांगते हैं और वह यह कि “किसी से यह न कहना कि तुमने मदद के नाम पर छल से घोड़ा हासिल किया है। वरना लोग एक दूसरे की मदद करना बंद कर देंगे। मदद पर से विश्वास टूट जाएगा।”

ठीक इसी तरह हमे लगा कि हम प्रधानमंत्री के झूठ का खुलासा करेंगे, तो प्रधानमंत्री पद की गरिमा क्षीण होगी और लोगों का अब तक की बेहतरतम उपलब्ध शासन प्रणाली – लोकतंत्र – से विश्वास उठ जाएगा। खासकर बच्चे और युवा कितना खराब महसूस करेंगे कि उनके देश का प्रधानमंत्री इतना असत्य वाचन करता है। (झूठ असंसदीय शब्द है, इसलिए नहीं लिखा – हालांकि हमारी संसद और उसके नेता इस बात को भूल गए लगते हैं।)

यह चिट्ठी आपके ताजे असत्य कथन कि : “केरल में एपीएमसी की मंडियां नहीं हैं, वहां प्रोटेस्ट क्यों नहीं होता” पर है।

इधर बहुत सारे लोग आपकी डिग्रियों, एंटायर पॉलिटिकल साइंस के विषय वगैरा को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। उसे छोड़ें, जरूरी नहीं कि कोई व्यक्ति हर चीज के बारे में सब कुछ जानता ही हो – मगर यह छूट प्रधानमंत्री के लिए नहीं है। उनके बारे में यह माना जाता है कि वे जो कुछ कहेंगे, समझ-बूझ कर कहेंगे।

हालांकि इन दिनों तीन कृषि कानूनों को लेकर कट रहे बवाल से यह तो पता लग गया था कि मौजूदा भारत सरकार खेती-किसानी और किसानों के बारे में कुछ भी नहीं जानती। मगर अपने ही राज्य केरल के बारे में उसके मुखिया का अज्ञान इतना ज्यादा है, यह उम्मीद नहीं थी।

मान्यवर क्या आपको पता है कि केरल देश के उन कुछ प्रदेशों में से एक है, जिन्होंने कभी एपीएमसी एक्ट बनाया ही नहीं। पूछिए क्यों?

इसलिए कि इस प्रदेश का फसल का पैटर्न और उपज की जिंसें एकदम अलहदा है। अलहदा माने तो ये कि खेती किसानी की 82% पैदावार मसालों और बागवानी (प्लांटेशन) की है। केरल की खेती का मुख्य आधार यही है सर। नारियल, काजू, रबर, चाय, कॉफ़ी, तरह-तरह की काली मिर्च, जायफल, इलायची, लौंग, दालचीनी वगैरा-वगैरा।

अब चूंकि ये विशेष फसलें हैं, इसलिए इनकी खरीद-फरोख्त (मार्केटिंग) का भी कुछ विशेष इंतजाम होता है। इनके लिए विशेष बोर्ड होते है : जैसे रबर बोर्ड, कॉफ़ी बोर्ड, मसाला बोर्ड, चाय बोर्ड आदि-इत्यादि। किसान की फसलें इन्हीं की देखरेख में नीलामी से बिकती हैं। इनकी नीलामी की एक बहुत पुरानी आजमाई प्रणाली है।

इन उपजों का बड़ा हिस्सा निर्यात होता है और करोड़ों डॉलर की विदेशी मुद्रा कमा कर लाता है। और सर जी, ये आज की बात नहीं है – युगों से केरल के मसालों का स्वाद दुनिया ले रही है। कम्बख्त वास्को-डि-गामा इसी लालच में आया था। खैर ये इतिहास की बात है, आपके काम की बात यह है कि पिछले दस सालों में मसालों और औषध बूटियों (हर्ब्स) का विश्व व्यापार 5 लाख टन तक जा पहुंचा है, जो मुद्रा के हिसाब से 1500 मिलियन डॉलर्स (1 डॉलर=73.55 रुपये के हिसाब से यह कितने रुपये हुए, गिनवा लीजियेगा) हैं। इसमें विराट हिस्सा केरल का है।

कौन है केरल के किसानों का दुश्मन ?
इन उपजों में से किसी भी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) आपकी सरकार ने कभी घोषित किया? कभी नहीं। उस पर मुश्किल ये है कि केरल के किसानों की उपज विश्व बाजार की कीमतों के उतार-चढ़ाव से जुड़ी है ।

अब देखें आदरणीय कि वो कौन हैं, जो इनकी जान के पीछे पड़ा है? ये खुद आप की ही सरकार है हुजूर!!

इन बोर्ड्स को -जो आपके ही वाणिज्य मंत्रालय के अधीन हैं- कमजोर किया जा रहा है। इनके ढेर सारे पद खाली पड़े हैं। डायरेक्टर्स तक की पोस्ट अरसे तक बिना नियुक्ति के रह जाती हैं। इन्हें अपने खर्चो की जरूरत के लायक भी फण्ड नहीं देती केंद्र सरकार, वही जिसके प्रधानमंत्री स्वयं आप हैं ।

उस पर कांग्रेस और आपकी सरकारों के फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (एफटीए) का कहर अलग से है। बिना किसी कस्टम, कर या प्रतिबन्ध के भारत को विदेशी माल का डम्पिंग ग्राउंड बनाकर केरल के किसानों की कमर तोड़ने वाली केंद्र सरकार है, जिसके सरबराह आप हैं ।

क्या आपने कभी सोचा कि एफटीए करने या आसियान देशों के उत्पादों से देश को पाटने से पहले उन उत्पादों को पैदा करने वाले प्रदेशों से, उनके किसानों से पूछ लिया जाये। नहीं, कभी नहीं!

 किसने बचाये केरल के किसान ?
केरल के किसानों को किसने बचाया? उसी वाम-लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार ने, जिसे कोसने के लिए आप सरासर झूठ (सॉरी, असत्य) बोलने से बाज नही आये।

2006 में जब एलडीएफ सरकार आई तो केरल, जो पहले कभी नही हुआ, किसान आत्महत्याओं का केरल था। एलडीएफ उनके लिए कर्ज राहत आयोग लेकर आया। कर्जे माफ ही नहीं किये, अगली फसलो के लिए आसान शर्तों पर वित्तीय मदद का प्रबंध भी किया।

इतना ही नहीं, विश्व बाजार में कीमतें गिरने के वक्त उसे ढाल दी। सहकारी समितियों से खरीदा, उनके जरिये मूल्य संवर्धन – वैल्यू एडिशन – (कच्चे माल की प्रोसेस कर बेहतर उत्पाद बनाना) करके उसकी आय बढ़ाने के प्रबंध किए।

गेहूं होता नहीं और चावल या दाल की फसल इतनी तो थी नहीं कि उनके लिए मंडी कमेटियों का टन्डीला खड़ा किया जाता।। तो क्या यूँ ही छोड़ दिया उन्हें? जी नहीं। राज्य सरकार ने इनकी खरीद के लिए नियम बनाये और उनके अनुसार खरीदी के लिए थोक और खुदरा की मार्केट खड़ी की।

आपको पता है मोदी सर कि केरल में धान 2748 रुपये प्रति क्विंटल खरीदा गया। आपकी तय एमएसपी से 900 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा दिया गया किसानों को।

केरल के किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को सुनकर तो आपके होश उड़ जाएंगे सर जी!! धान के लिए 22,000 रुपये, सब्जी पर 25,000 रुपये, ठंडे मौसम की सब्जी पर 30,000 रुपये, दाल पर 20,000 रुपये, केले पर 30,000 रुपये प्रति हैक्टेयर है यह राशि! प्रति व्यक्ति नहीं, प्रति हेक्टेयर!! यह आपके 6000 रुपये के संदिग्ध सम्मान निधि के दावे की तरह नकली नहीं, असली है।

केरल की एलडीएफ सरकार ने अपने प्रदेश को देश का एकमात्र प्रदेश बना दिया, जहाँ सब्जियों का भी आधार मूल्य तय किया गया है। कसावा (12रु), केला (30रु), वायनाड केला (24रु), अनन्नास (15रु), कद्दू लौकी (9रु), तोरई गिलकी (8रु), करेला (30रु), चिचिंडा (16रु), टमाटर (8रु), बीन्स (34रु), भिण्डी (20रु), पत्ता गोभी (11रु), गाजर (21रु), आलू (20 रु), फली (28 रु), चुकन्दर (21 रु), लहसुन (139 रु) किलो तय किया गया है।

कोरोना महामारी में सुविक्षा केरल योजना लागू की और 3600 करोड़ रुपये केरल की कृषि सहकारिताओं को दिए, ताकि वे संकट का मुकाबला कर सकें ।

सर जी, इधर बिहार भी है!!
सवाल पूछना है तो बिहार से पूछिए ना, जहाँ भाजपा वाली सरकार ने 2006 में मण्डियां खत्म कर दीं और किसान को 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल धान बेचने के लिए विवश कर दिया। एमएसपी 1868 रु की तुलना में 800 रुपये कम दर पर।

आदरणीय,
भारत के किसानो से युद्ध-सा काहे लड़ रहे हैं आप और आपकी सरकार? यह तो जगजाहिर है कि कोरोना में सिर्फ यही थे, जिनकी मेहनत के रिकॉर्ड बने। सो भी तब, जब इनके भाई-बहन काम छिन जाने के बाद हजारों किलोमीटर पाँव-पैदल लौट कर घर आये ।

झूठ दर झूठ (ओह, असत्य दर असत्य) बोलकर काहे अडानी और अम्बानी का मार्ग झाड़-बुहार रहे हैं आप? उनके भर थोड़े ही है, भारत नामक देश के प्रधानमंत्री हैं आप!

दिल्ली आए किसानों की बात मानिये और उसके बाद हो आइये केरल 10-15 दिन के लिए। देख आइये वाम जनवादी मोर्चे का राज – आपको सचमुच में वह ईश्वर का खुद का देश – गोड्स ओन कंट्री – न लगे तो बताइयेगा!

नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ

आपका उत्तराकांक्षी
*बादल सरोज*
संयुक्त सचिव, अखिल भारतीय किसान सभा

बर्ड फ्लू को लेकर अलर्ट : मध्य प्रदेश के तीन जिलों में कौओं का मरना जारी

 

#किसान_आंदोलन #kisanandolan #kisanprotest #kisan #kisanektazindabad