आदरणीय हरीश रावत जी ….
उम्मीद है कि आप कुशल होंगे। आपकी कुशलता की खैरखबर इसलिए लेनी पड़ रही है क्योंकि 12 जुलाई को आपने जो विराट गिरफ्तारी दी,उससे खैर खबर लेना लाज़मी हो गया । गिरफ्तारी का क्या नज़ारा था ! आपकी अगुवाई में तमाम कांग्रेस जन खुद ही एक-दूसरे के गले में माला डाल कर गाजे-बाजे के साथ गैरसैण तहसील पहुंचे। वहाँ गिरफ्तार होने के लिए आपने तहसील की सीढ़ियाँ भर दी। जेल भरो आंदोलन तो सुनते आए थे पर जेल भेजे गए आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के विरोध में “तहसील की सीढ़ियाँ भरो” आंदोलन,आपके नेतृत्व में पहली बार देखा। क्या नजारा था-आपके संगी-साथियों ने एस.डी.एम से कहा, हमें गिरफ्तार करो क्योंकि हमारे 35 साथी जेल भेज दिये गए हैं। स्मित मुस्कान के साथ एस.डी.एम ने कहा-हमने आपको गिरफ्तार किया और अब हम आपको रिहा करते हैं। फर्जी मुकदमें में जेल भेजे गए आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के ऐसे “प्रचंड” प्रतिवाद की मिसाल अन्यत्र मिलना लगभग नामुमकिन है ! एक पूर्व मुख्यमंत्री,विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान विधायक,उप नेता प्रतिपक्ष,पूर्व डिप्टी स्पीकर,पूर्व कैबिनेट मंत्री आदि-आदि अदने से एस.डी.एम को ज्ञापन दे कर गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे और ऐसा न होने की दशा में प्रचंड आंदोलन की चेतावनी दे रहे थे । आंदोलन के ऐसे प्रहसन का दृश्य आपके अतिरिक्त इस प्रदेश को और कौन दिखा सकता है ।इस प्रचंड प्रतिवाद प्रहसन से पूर्व आपने कांग्रेस जनों के साथ गैरसैण नगर में जुलूस निकाला। होने को जुलूस गैरसैण को राजधानी बनाए जाने के समर्थन में था पर जुलूस में नारे लग रहे थे कि हरीश रावत नहीं आँधी है, ये तो दूसरा गांधी है। जाहिर सी बात है कि नाम भले ही गैरसैण का था,पर प्रदर्शन आपके द्वारा,आपके निमित्त था।आपके निमित्त यह सब न होना होता तो जिन आंदोलनकारियों की 3 दिन बाद जमानत हुई,वह बिना उनके जेल गए ही हो जाती। पर तब आप यह गिरफ्तारी प्रहसन कैसे कर पाते ? और हाँ आँधी क्या बवंडर हैं आप ! वह बवंडर जो पानी या रेगिस्तान में जब उठता है तो सबसे पहले अपने आस-पास वालों को ही अपने में ही लील लेता है और रह जाते हैं सिर्फ आप। जहां तक गांधी होने का सवाल है तो गांधी तो एक ही था- एक ही है -एक ही रहेगा। गांधी के बंदर तीन भले ही बताए गए थे पर इतने सालों में वे कई कई हो गए हैं। इन बंदरों पर बाबा नागार्जुन की कविता आज भी बड़ी प्रासंगिक है।
नागार्जुन कहते हैं :
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के! सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के!
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के! जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के! लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के!
लम्बी उमर मिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
दिल की कली खिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के! बूढ़े हैं फिर भी जवान हैं, तीनों बन्दर बापू के!
परम चतुर हैं, अति सुजान हैं तीनों बन्दर बापू के! सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
बापू को हीबना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बन्दर बापू के!
बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बन्दर बापू के! असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बन्दर बापू के!
हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बन्दर बापू के!
गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बन्दर बापू के!
नागार्जुन की कविता की बात इसलिए ताकि “प्रेम पगे,शहद सने,परम चतुर,अति सुजानों” को यह भान रहे है कि कहीं पे निगाहें,कहीं पे निशाना की तर्ज पर गैरसैण पर निगाहों वालों का निशाना किधर है,यह बखूबी समझा जा रहा है ।वैसे एक प्रश्न तो आप से सीधा पूछना बनता ही है हरदा कि आपके मन में गैरसैण कुर्सी छूट जाने के बाद ही क्यूँ हिलोरें मार रहा है ? आखिर जब आप मुख्यमंत्री थे तब आपको गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की घोषणा करने से किसने रोका था ? आप घोषणा कर देते तो जिन साथियों को चक्काजाम करने की आड़ में जेल भेजा गया न वे चक्का जाम करते,न मुकदमा होता,न उन्हें जेल जाना पड़ता। पर आपके राज में तो मुझे ही अपने साथियों के साथ गैरसैण के विधानसभा सत्र के दौरान स्थायी राजधानी की मांग करने के लिए पदयात्रा करने पर जंगल चट्टी से आपकी पुलिस ने कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। अर्द्ध रात्रि में एस.डी.एम और पुलिस भेजी आपने,हमें धमकाने को! ऐसा आदमी अचानक गैरसैण राजधानी की मांग का पैरोकार होने का दम भरता है तो संदेह होना लाज़मी है। साफ लगता है कि यह सत्ता,विधायकी,सांसदी गंवा चुके व्यक्ति की स्टंटबाजी है। राजनीति में ऊंचे कद वाले राजनेता अपनी स्टेट्समैनशिप के लिए जाने जाते हैं. पर आपको देख कर लगता है कि आपके पास केवल स्टंटमैनशिप है। आपकी स्टंटमैनशिप कायम रहे,आप सलामत रहें।
भवदीय
इन्द्रेश मैखुरी