अच्छे दिन तो किसी भी रस्ते आ सकते हैं, गोबर के ही रस्ते आ जाएँ तो क्या दिक्कत है. अगर पल्ले कुछ कैश बचा हो तो दांतों से पकड़ कर रखिये और उस दिन का इंतज़ार कीजिये जब शेयर बाज़ार में उतरेंगी गोबर से स्क्रब और साबुन बनाने वाली कंपनियां. शेयर बाज़ार ऐसी उछाल लेगा की पांच ट्रिलियन की इकॉनमी चुटकी बजाते ही साक्षात् आप के सामने होगी. गाय का गोबर दुनिया की सब से महंगी कमोडिटी बन जाएगी. सड़कों पर गोबर गिरने से पहले ही उठा लिया जायेगा. लोग गाय तब दूध के लिए नहीं, गोबर के लिए ही पालेंगे. भारतीय महिलाएं बेफिक्र होकर अपने तमाम जेवर लादे बेखौफ कहीं भी घूम सकेंगी क्योंकि अपने भाई लोग तब सिर्फ गोबर के लिए ही डकैती डाला करेंगे.

अपने देश में इतने अच्छे दिन तो कब के आ गए होते अगर चचा नेहरु ने अपना दिमाग पंच वर्षीय योजनाओं के बजाये ऐसी स्वदेशी सोच को मूर्त रूप देने में लगाया होता. पर वो और उसका कांग्रेसी गिरोह ऐसा सोच भी कैसे सकता था ? अंग्रेजों की जेल में उसे रोटी के साथ जो नमक मिलता था उसे अंग्रेजों का नमक मानते हुए इन हरामखोरों ने अंग्रेजों के साथ नमक हलाली करी और फिर देश के साथ गद्दारी तो होनी ही थी. यूँ गोबर का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से मधुबनी पेंटिंग और घर-चौबारा लीपने के लिए तो होता ही रहा है, क्या मालूम अब लालकिले और कुतुबमीनार के भी दिन फिर जाएँ. खैर जो भी हो गोबर की साबुन का सबसे बड़ा फायदा ये भी रहेगा की अगर घर में गैस ख़तम हो जाये तो साबुन की बट्टी जला कर रोटियां तो सेकी ही जा सकेंगी. जय गोबर – जय जय गोबर गणेश !

sunil kainthola