गत माह नेपाल की संसद के निचले सदन ने एकमत से नेपाल के नए राजनीतिक नक्शे को पारित कर दिया है। नेपाल के नए नक्शे को पारित करने के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया गया था। इस प्रस्ताव को नेपाल की संसद में मौजूद 258 सदस्यों ने मंजूरी दी है। इसके बाद यही प्रक्रिया नेपाल की संसद के उच्च सदन में दोहराई जाएगी। दोनों सदनों से पारित होने के बाद इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। नेपाल की संसद के इस फ़ैसले पर भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी है कि दावे एतिहासिक तथ्य और सबूतों पर आधारित नहीं हैं और ना ही इसका कोई मतलब है। दरअसल पिछले दिनों नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी किया है। इस नक़्शे में लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को नेपाल की सीमा का हिस्सा दिखाया गया है। नेपाल की कैबिनेट ने इसे अपना जायज़ दावा क़रार देते हुए कहा कि महाकाली (शारदा) नदी का स्रोत दरअसल लिम्पियाधुरा ही है जो फ़िलहाल भारत के उत्तराखंड का हिस्सा है। भारत इससे इनकार करता रहा है. इससे पहले भारत की ओर से लिपुलेख इलाक़े में सीमा सड़क का उद्घाटन किया गया था. लिपुलेख से होकर ही तिब्बत चीन के मानसरोवर जाने का रास्ता है. इस सड़क के बनाए जाने के बाद नेपाल ने कड़े शब्दों में भारत के क़दम का विरोध किया था. भारत के क़दम का विरोध काठमांडू में नेपाल की संसद से लेकर काठमांडू की सड़कों तक दिखा था. दरअसल छह महीने पहले भारत ने अपना नया राजनीतिक नक़्शा जारी किया था जिसमें जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ के रूप में दिखाया गया था. इस मैप में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भारत का हिस्सा बताया गया था. नेपाल इन इलाक़ों पर लंबे समय से अपना दावा जताता रहा है. इससे पहले नेपाल ने कहा था कि भारत ने जिस सड़क का निर्माण ‘उसकी ज़मीन’ पर किया है, वो ज़मीन भारत को लीज़ पर तो दी जा सकती है लेकिन उस पर दावा नहीं छोड़ा जा सकता है.