प्रवर समिति की बैठक रही बेनतीजा
देहरादून,18 सितंबर : एक पुरानी कहावत है कि “खोदा पहाड़ निकली चुहिया” यही सब आज प्रवर समिति की बैठक में देखने को मिला। उत्तराखंड आंदोलनकारीयों के 10% क्षैतिज आरक्षण को लेकर बनी प्रवर समिति की बैठक आज विधान सभा में सम्पन्न हुए। आधी अधूरी तैयारी के साथ पहुंचे विधायक व अधिकारी विचार तो कर रहे थे मगर पूर्व के शासनादेशों की पूर्ण जानकारी का ना होने के चलते कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सका।
गत दिवस विधान सभा में पारित एक्ट में हुई गलतियों और उसमें होने वाले सुधार को लेकर संयुक्त मंच के क्रान्ति कुकरेती ने समिति के अध्यक्ष प्रेम चंद अग्रवाल से समय मांगा था। जिस पर उन्होंने बैठक से आधा घंटा पूर्व विधान सभा में मिलने को कहा गया। किंतु वह तय समय पर नहीं पहुंच पाए।
उनके विधान सभा में पहुंचते ही पूर्व अन्य 4 विधायक उनके कक्ष में पहुंच चुके थे। उनके पीआरओ ने उनसे पूछा कि कुल कितने आंदोलनकारी इस व्यवस्था का लाभ उठा रहे हैं। जिस पर उन्हें बताया गया कि लगभग 1700।
उसके बाद कार्मिक सचिव ने क्रान्ति कुकरेती से पूछा कि उक्त एक्ट में किस तरह का संशोधन आपेक्षित है। इस पर उन्होंने कहा कि चूंकि पूर्व में आंदोलनकारियों को 2 एक्ट (1269 व 1270 ) बनाकर व्यवस्था का लाभ दिया गया था। किंतु मौजूदा एक्ट में शासन ने दोनों एक्टों को मिला कर जो खिचड़ी बनाने की कोशिश की है, वह किसी भी तरह से पकने वाली नहीं।
दरअसल 11 अगस्त 2004 को तत्कालीन सरकार द्वारा आंदोलनकारियो को दो अलग अलग एक्ट 1269 व 1270 बना कर व्यवस्था का लाभ दिया गया था। जो कि अलग अलग व्यवस्थाएं थी। पहली व्यवस्था 1269 जिसमें जिलाधिकारी के माध्यम से प्रार्थी को उसकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार लोक सेवा आयोग की परिधि के पदों पर सीधी नियुक्ति गई थी। अब चूंकि इसमें परीक्षा नहीं होनी थी इसलिए इसमें 10% क्षैतिज आरक्षण कोई विषय नहीं था, वैसे भी यह श्रेणी अब लगभग खत्म हो चुकी है। इसके लिए सरकार को अलग से एक्ट लाने की आवश्यकता है। जबकि मौजूदा बिल जो कि 1270 को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से लाया गया है जिसके दिनांक 11 अगस्त 2004 के शासनादेश में लिखे वाक्य कि समस्त चिन्हित आंदोलनकारीयों के एक आश्रित को इसका सिर्फ एक बार लाभ दिया जायेगा, की जगह संशोधन कर “समस्त चिन्हित आंदोलनकारियों को स्वयं अथवा उनके आश्रितों को उत्तराखंड राज्य की राज्याधीन सेवाओं में सेवायोजन हेतु 10% क्षैतिज आरक्षण प्रदान किया जायेगा” करना होगा ।
अब प्रवर समिति को चाहिये कि वह यथाशीघ्र अपनी दूसरी बैठक बुला कर मौजूदा एक्ट की बिंदु संख्या 4 (1) को हटा कर शासन को अलग से एक्ट लाने को कहे तथा बिंदु संख्या 4 (2 ) में लिखे वाक्य की जगह उपरोक्त में दिए गए संशोधन को अपने सुझावों में जोड़ कर पटल पर वापस सदन में रख दे जिससे विधान सभा का विशेष सत्र आहूत कर इसे महामहिम राजयपाल की संस्तुति के लिए भेजा जा सके।
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