ऐसा नही है कि मुस्लिम समुदाय के पास आर्थिक संसाधनों की कमी रही हो। ये सब जानते हैं कि वक़्फ़ के रुप में आपके पास काफी संपत्ति है लेकिन अगर आज मुस्लिम समाज शैक्षिक रूप से पिछड़ा है या धर्म के नाम पर अंधविश्वास में जकड़ा हुआ है या अपनी बात को खुलकर नही बोल पा रहा उसका कारण क्या है ? ये प्रश्न मुस्लिम समुदाय को खुद अपने आप से व उन लोगो से पूछने चाहिए जो खुद को मुस्लिमानों का सच्चा हमदर्द बता कर पुरे समुदाय को लाचार , बेसहारा पेश कर अपना व अपने प्रियजनों की पेट भरते रहे तथा अपने अनर्गल बयानों और फतवों को जारी कर खुद तो सुर्खियां बटोर कर रोटियां सेकता रहे
उन्ही की कारगुजारियों का परिणाम आज उनकी गरीब-मेहनतकश जनता को भुगतना पड रहा है ।आपने जो मुस्लिम समुदाय को जिस तरफ से पेश किया आज वही दिख भी रहा हैं। आप अरब देशों की तारीफ करते हुए वहां की अत्याधुनिक सुविधाओं की चर्चा तो करते रहे लेकिन आपने उन गरीब मेहनतकश लोगो को मजहब के नाम पर दिया क्या ? सिर्फ मस्जिदे, मदरसे और जमातें जिनसे एक आम मुसलमानी न तो आधुनिक समाज के साथ सामंजस्य बिठा पाया और न ही उसकी कोई सोच उभरकर सामने आ सकी। मेरा सवाल ये है कि आपने क्यों नही आधुनिक स्कूल-कॉलेज बनाये जिनमे कमजोर और मेहनतकश मुस्लिम और गैर-मुस्लिम परिवार के लोगो को अच्छी और सस्ती/मुफ्त शिक्षा मिल पाती, मेडिकल कॉलेज और खैराती अस्पताल क्यों नही खोले जहां गरीबों का मुफ्त में इलाज हो पाता. एक गरीब मुस्लिम का बच्चा भी डॉक्टर या इंजीनियर बनने की सोच रखता या आपने क्यों नहीं एक राष्ट्रीय स्तर का मीडिया हाउस खोलने का प्रयास किया ?
वक़्फ़ और खैरात के पैसे से मस्जिद-मदरसों के अलावा अगर आपने अच्छे स्कूल-कॉलेज,आधुनिक सुविधाओं से लैस अस्पताल बनवाये होते तो एक गरीब मुस्लिम के पास भी मुख्यधारा में जुड़ने का रास्ता होता। आपने उसे धर्म और आडंबर के ऐसे जाल में जकड़ा है कि आज वह खुद को अपने ही देश में दोयम दर्जे का महसूस कर रहा है। अब भी वक़्त है मजहब के नाम पर जहालत और गुमराह करना बंद आज लोगों को मस्जिदों से ज्यादा जरूरत स्कूल-कॉलेज व अस्पताल की है. खैरात और वक़्फ़ का पैसा इनमें लगाइए, इसमें इंसानियत भी बढेगी और दुआएं भी मिलेंगी।
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