भारत प्राचीन और दिशा देने वाला देश है। सांस्कृतिक विरासत इसकी पहचान रही है। भले ही आज अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन उससे भारतीय कलैंडर की महता आज भी कम नहीं हुई है। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही बसंती नवरात्र की शुरुआत भी होती है। एक अहम बात सनातन धर्म के अनुयायीयों का मानना है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।
उत्तराखंड चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा का दिन है। आज के दिन से नवरात्रि शुरु होती है और हिन्दू नववर्ष भी मनाया जाता है। इसे विक्रम संवत या नव संवत्सर कहा जाता है। संवत्सर 60 प्रकार के होते हैं। विक्रम संवत्सर में यह सभी संवत्सर शामिल होते है।
विक्रम संवत्सर की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. की थी। पौराणिक मान्यता अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी, अतः इसे नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो कहते हैं तो कर्नाटक में इसे युगादि कहते हैं।आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी कहते हैं। महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा कहते हैं, गुड़ी का अर्थ विजय पताका से होता है। महाराष्ट्र में आज के दिन हर घर में गुड़ी अर्थात विजय पताका लगायी जाती है। यहां इन्हीं दिनों से नववर्ष की शुरुआत मानी जाती और मीठे पकवान बनाकर नये वर्ष की शुरुआत की जाती है। महाराष्ट्र में आज के दिन पुरन पोली मनाया जाता है। आज ही के दिन पंचांग पढ़ा जाता है। पंचांग हिन्दू कलैन्डर है जिसे पढ़कर ज्योतिष आने वाले वर्ष के विषय में बातते हैं। जिनका आने वाला साल भारी होता है उन्हें विभिन्न प्रकार के दान्य पुण्य के कार्य करने की सलाह दी जाती है। विक्रम संवत में दिन, सप्ताह और महिने की गणना सूर्य व चंद्रमा की गति पर आधारित है। यह काल गणना अंग्रेजी कलैंडर से आधुनिक व विकसित मानी गयी है। इसमें सूर्य,चन्द्रमा और ग्रहों के साथ तारों के समूह को भी जोड़ा गया है, जिन्हें नक्षत्र कहा जाता है। एक नक्षत्र चार तारा समूहों से मिलकर बनता है। कुल नक्षत्रों की संख्या 27 बताई गयी है। सवा दो नक्षत्रों का समूह मिलकर एक राशि का निर्माण करता है।
उत्तराखंड में भी आज ही के दिन गांव में पुरोहित के आने की परंपरा रही है वह अपने जजमानों के घरों में जाकर संवत्सर सुनाते हैं। संवत्सर को सुनाने के बदले पुरोहित को गांव वाले दक्षिणा देते हैं। इसी दिन से नवरात्रि की शुरुआत भी होती है उत्तराखंड में कुछ स्थानों पर इस नवरात्रि के दिन भी हरेला रखा जाता है। इस दिन अधिकांश लोगों का उपवास होने के कारण रात्रि के समय ही पकवान बनाये जाते हैं। हिन्दू नववर्ष यानी नव-संवत्सर 2078 की शुरुआत 13 अप्रैल 2021 से होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि होती है। इसी दिन से नवरात्रि की शुरुआत भी होती है। नव-संवत्सर शुरू होने के साथ ही सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। ज्योतिषों के अनुसार, इस बार नव-संवत्सर एक बेहद ही विचित्र योग में शुरू हो रहा है, जिसके चलते यह हानिकारक परिणाम ला सकता है।
डॉ० हरीश चन्द् अन्डोला (दून विश्वविद्यालय देहरादून )
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