मोरोना वायरस -लेकिन,किन्तु-परन्तु,अगर-मगर,फिर भी से परे है
इंदौर की टाटपट्टी बाखल में कोरोना संभावित बुजुर्ग को जांच के लिए लेने गयी डॉ ज़ाकिया सैयद और नर्सेज, पैरा मेडिकल स्टाफ के साथ जिस तरह की बेहूदगी और बदतमीजी हुयी उसकी सिर्फ निंदा, भर्त्सना और मज़म्मत ही की जा सकती है। उसे लेकर किसी भी लेकिन, किन्तु, परन्तु, अगर, मगर, फिर भी जैसी पतली गली तलाशना किसी मुकाम पर नहीं पहुंचाता। ऐसा करने वाले, कुछ जाने में और काफी कुछ अनजाने में, उन्ही मूर्ख शोहदों की जमात में खड़े होते हैं, जिन्होंने इस मेडिकल टीम पर पत्थर फेंके, उन पर थूका, उन्हें अपनी बाखल से खदेड़ बाहर किया। उनमें और इन किन्तुआरियों-परंतुकारियों-लेकिनधारियों में अंतर सिर्फ इतना है कि उनके हाथ में गालियां और पत्थर थे, इनके हाथ में शब्द और कुतर्क हैं। वरना दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुयी।
बात शुरू करने से पहले यह दोहराना जरूरी है कि टाटपट्टी बाखल में हुयी बेहूदगी की देश भर में निंदा हुयी है और किसी ने भी इसे जायज ठहराया हो ऐसा – अभी तक – नजर नहीं आया। इस मूर्खता के प्रकट होने वाली रात को ही मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब ने इंदौर के इन जाहिलों की सख्त मजम्मत, कड़ी भर्त्सना की थी। उनकी आवाज में अपनी और अपने जैसों की आवाज मिलाते हुए सिर्फ इतना और जोड़ना चाहेंगे कि कानूनी धाराओं में लिखी गयी सजा के अलावा इसमें लिप्त मूर्खों को कम से कम तीन महीने की तालीम अलग से दी जानी चाहिये, जिसमें इन्हे बैक्टीरिया, वायरस और हाईजीन की न्यूनतम शिक्षा दी जाये।
इंदौर में जो हुआ, वह मोरोना वायरस का प्रकोप था।
अंग्रेजी में मोरोन शब्द मूर्खता का समानार्थी होता है। चूंकि यह समय कपड़ों से लोगों की पहचान करने का समय है, इसलिए इन दिनों भाषाओं के भी धर्म तय कर दिए गए हैं। शब्दों के भी मजहब हो गए हैं। मोरोना का यह वायरस जब टाटपट्टी बाखल में संक्रमित हुआ, तो इसने टोपी पहन ली और यह जहालत का वायरस हो गया – जबकि कायदे से इसे इंदौर की मीठी मालवी में बेन्डेपन का वायरस कहना ज्यादा सही और समझ में आने लायक होता। बहरहाल भाषा या वर्तनी बदलने के बावजूद मूर्खता, मूर्खता ही रहती है, समझदारी नहीं बन जाती। मूर्खता या जहालत जो भी कह लें, उनका डीएनए है एक। उसकी खासियत यह है कि वह पूरी तरह सेक्युलर और धर्मनिरपेक्ष होती है – सही शब्द होगा सर्वधर्म समभावी होती है। इसलिए इनमें अक्सर यह साबित करने के लिए जंग छिड़ी रहती है कि मेरी जहालत तेरी मूरखता से ज्यादा पाक और पावन है। खालिस और अपौरुषेय है। प्राचीन और सनातन है। क्योंकि जैसा कि अनेक विद्वानों ने कहा और वरिष्ठ कवि कुमार अम्बुज ने दोहराया है – तमाम मूर्खताओं, जहालतों में धार्मिक मूर्खतायें सर्वश्रेष्ठ होती हैं। हालांकि इनमें से कितनों ने धर्म की किताबें पढ़ी होती हैं, इसके बारे में कहना मुश्किल है।
यही जहालत का वायरस था, जो मरकज के किसी मौलाना की तक़रीर में कोरोना से बचने के लिए कुछ ख़ास आयतों को पढ़ना काफी बताते हुए, संक्रमितों की संख्या में दर्जन डेढ़ दर्जन की तादाद जोड़ने के साथ अपनी मूर्खता से कुछ लोगों को इस विषाणु का मजहब तय करने की सहूलियत और मीडिया को अपनी पुरानी कहानी दोहराने के लिए नयी घनगरज दे गया। मित्र पत्रकार, पूर्व सम्पादक नसीर कुरेशी ने बताया कि हदीस में लिखा है कि “अगर आपको यह पता लगता है कि किसी जगह प्लेग फैला है तो वहां नहीं जाएं। अगर जहां आप हैं, वहां प्लेग फैल गया है, तो वहां से कहीं नहीं जाएं।” तब्लीगी मरकज के मौलाना ने हदीस नहीं पढ़ी होगी, यह मानने की कोई वजह नहीं है ।
इतिहास का एक सबक है – जिसे पता नहीं विज्ञान और चिकित्सा बिरादरी मानेगी या नहीं – और वो यह है कि कोरोना सहित दुनिया के किसी भी जानलेवा वायरस से ज्यादा खतरनाक होता है जहालत और मूर्खता वाला मोरोना वायरस। इसके संक्रमण की रफ़्तार ध्वनि और आवाज और प्रकाश की गति से भी तेज होती है और नतीजे में होने वाली मौतों की संख्या भी बहुत ज्यादा होती है। इसके संक्रमण से होने वाली मौतों के दो और खतरनाक आयाम हैं। एक ये कि व्यक्ति की देह ज़िंदा दिखती है, उसका दिल दिमाग और मनुष्य मर जाता है। दूसरी यह कि यह सिर्फ मानवताओं का ही संहार नहीं करता, सभ्यताओं का भी सर्वनाश कर देता है।
हर बैक्टीरिया – वायरस की तरह इस वायरस का भी मौलिक और प्रमाण समर्थित एक ख़ास गुण है। जिसमें यह पलता और जिसके जरिये यह फैलता है, अपने उस कैरियर को यह कतई नुक्सान नहीं फैलाता। दुनिया के अनुभव गवाह है कि अंधविश्वास और टोने-टोटकों और झाड़फूंक और घण्टा-घंटरियों को मुफीद इलाज और मुर्गे मुर्गियों की बलि को अचूक समाधान बताने वाले खुद अपने ऊपर कभी इस तरह के प्रयोग नहीं क वे सीधे किसी फाइव स्टार नर्सिंग होम में जाते हैं, अपनी हैसियत के मुताबिक़ दुनिया का सबसे बेहतरीन डॉक्टर ढूंढते हैं। बाकियों को अंधविश्वास में रखना एक जाँची-परखी-आजमाई विधा है। राज चलाने और शासन करने की विधा। दार्शनिक विचारक ग्राम्शी के शब्दों में कहें तो “शासन करने वाले सिर्फ सत्ता के दिखाई देने वाले उपकरणों के जरिये ही राज नहीं करते। वे एक वर्चस्व – हेजेमोनी – कायम करते हैं। दिमाग पर कब्जा करते हैं। इसके लिए वे एक पूरक सत्ता – सप्लीमेंटरी स्टेट – का सहारा लेते हैं।”रते। नॉम चोम्स्की ने इसे “मैन्युफैक्चरिंग कन्सेंट” का नाम दिया। यही बात ग्राम्शी और चोम्स्की से कोई 2200 वर्ष पहले चाणक्य अपनी मार्गदर्शिका कौटिल्य के अर्थशास्त्र में लिख गए थे कि “राजा को चाहिये कि वह अपनी प्रजा को ईश्वर से डरा कर रखे अन्यथा उसका राज चलना कठिन हो जाएगा। राजा को चाहिए कि वह स्वयं ईश्वर से कदापि भयभीत नहीं हो, वरना उसके लिए राज चलाना कठिन हो जाएगा। ”
अंधविश्वास और अवैज्ञानिकता के थोक और खेरीज सप्लायर्स इसी तरह की पूरक सत्ता हैं। असफल और जनविरोधी शासकों के लिए अवैज्ञानिकता और अंधविश्वासों की जकड में फंसी जनता हमेशा उपयोगी रहती है। यही वजह है कि मोरोना वायरस महाद्वीपों को लांघता, भाषाओं, धर्मों की सीमाएं तोड़ता अमरीका से लेकर इटली और पड़ोसी पाकिस्तान से लेकर ईरान और दूरस्थ ऑस्ट्रेलिया तक समान रूप से विचरण करता हुआ पाया जाता है। इन सभी देशों के हुक्मरान और उनकी पूरक सत्ताएं – हर तरह के मठ और मठाधीश बजाय इसका खण्डन करने के इसे महिमामण्डित करते हुए पाए जा रहे हैं।
क्या यह वायरस सिर्फ टाटपट्टी बाखल या निज़ामुद्दीन के मरकज तक महदूद है ? नहीं। यहां इस तरह के बाकी उदाहरण गिनाकर “पोलिटिकली करेक्ट” होने या “संतुलित” दिखने की कोई इच्छा नहीं। उन्हें इसलिए नहीं लिखा क्योंकि कोई भी – लेकिन, किन्तु, परन्तु, अगर, मगर, फिर भी – से बचना है और इस बार मूर्खता की ही नहीं, जहालत भर की मज़म्मत करना है। ऐसा है, तो चलिए ऐसा ही सही। हालांकि इस तरह की शाकाहारी शर्त उन्ही को शोभा देती हैं जो मूर्खता और जहालत में फर्क न करते/करती हों। खैर कुछ तो मजबूरियाँ रहती होंगी, यूं कोई चुनिंदा नहीं होता।
बस एक बात और कि कोरोना हाथ मिलाने से फैलता है – मोरोना, जहालत का हो या मूर्खता का, हाथ मिलाने से ठीक होता है। गले मिलने से हमेशा के लिए बचाव की प्रतिरोधक क्षमता वाला टीका लगा जाता है। पत्थर खाने और अपमानित होने के अगले ही दिन ठीक उसी जगह दोबारा पहुंचकर डॉ. ज़ाकिया सैयद और उनकी टीम ठीक यही काम कर थीं। उन्हें सादर प्रणाम ।
#बादल सरोज
The indifference and profanity of Dr. Zakia Syed and nurses, para medical staff who went to the Corona potential elderly for investigation in Tatapatti Bakhal, Indore, can only be condemned, condemned and reprimanded. Finding a thin street like any but him, but, if, but still, does not lead to any place. Those who do so, some in the know, and quite a few inadvertently, stand in the same group of foolish comedies,Who threw stones at this medical team, spit on them, drove them out of their arms. The only difference between them and these feathers-but-hunters-holders is that they had abuses and stones in their hands, they have words and words in their hands. Otherwise, there is fire on both sides.Before we start, it is necessary to reiterate that the absurdity in Tatapatti Bakhal has been condemned across the country and no one has justified it – yet – it is not seen. On the night of this foolishness, the famous poet Rahat Indauri Saheb strongly condemned these goths of Indore.I would like to add more to his voice by adding his voice to his and his own kind, that apart from the punishment written in the legal sections, the fools involved in it should be trained separately for at least three months, in which they should be exposed to bacteria, viruses and hygiene. Minimum education should be given.What happened in Indore was an outbreak of Morona virus.The word moron in English is synonymous with stupidity. Since it is the time to identify people with clothes, these days the religions of languages have also been fixed. Words have become a religion too. When this virus of Morona got infected in Tatpatti Bakhal, it put on a cap and became a shipwreck virus – although it would have been more correct and understandable to call Bandepan virus in the sweet Malvi of Indore.However, despite changing the language or spelling, stupidity remains, stupidity does not become sense. Whatever their stupidity or shipwreck, their DNA is one. Her specialty is that she is completely secular and secular – the correct word would be all religion is equal. Therefore, there is often a war in them to prove that my ship is more clean and pure than your foolishness. Is pure and unassuming. Is ancient and eternal. Because as many scholars have said and senior poet Kumar Ambuj has repeated -Religious fools are the best among all fools and ships. Although some of them read books of religion, it is difficult to say.This was the virus of the ship, which is enough to read certain verses in order to avoid corona in the contention of a maulana of Marqaz, adding a dozen and a half dozen to the number of infected people, and by fooling some people, the religion of this virus The decision was made and the media was given a new cube to repeat its old story.Friend journalist, former editor Naseer Qureshi said that in the hadith it is written that “If you find out that the plague has spread somewhere, do not go there. If the plague has spread where you are, do not go anywhere.” . ” There is no reason to believe that Maulana of Tablighi Markaz would not have read the hadith.There is a lesson in history – which the science and medical fraternity will not know or not – and that the morona virus is the most dangerous of all the deadly viruses of the world, including the corona.The speed of its infection is faster than the speed of sound and voice and light and the resultant number of deaths is also very high. Deaths from its infection have two more dangerous dimensions. One is that a person’s body looks alive, his heart, mind and man dies. Second, it not only destroys human beings, but also destroys civilizations.Like every bacteria – virus, this virus also has a fundamental and evidence-backed special quality. In which it multiplies and through which it spreads, it does not harm its career at all. The experience of the world testifies that superstitions and sorcery and sweepers and bells and whistle-blowers never give such experiments to themselves as a sure solution to the cure and the sacrifice of chickens. They go directly to a five-star nursing home, find the best doctors in the world according to their status.Keeping the rest in superstition is a tried-and-tested mode. Mode of governing and ruling. In the words of the philosopher thinker Gramshi, “The rulers do not rule only through visible instruments of power. They maintain a hegemony – hegemony. They occupy the mind. For this they create a complementary power – supplementary State – resort to. “Ratte. Noam Chomsky named it “Manufacturing Consent”.Some 2200 years before Gramsci and Chomsky, Chanakya wrote in his guide Kautilya’s Arthashastra that “the king should scare his subjects with God, otherwise his rule will become difficult. The king must himself be God Never be afraid, otherwise it will be difficult for him to rule. “The bulk of the superstition and unscientific and the supporter suppliers are similar complementary powers.People trapped in the clutches of unscientific and superstitions are always useful for unsuccessful and anti-people rulers. This is the reason why the Morona virus transcends continents, breaks the boundaries of languages, religions, and is found to be wandering equally from America to Italy and from neighboring Pakistan to Iran and remote Australia. The rulers of all these countries and their complementary powers – all the monasteries and monasteries are found glorifying it instead of rebutting it.Is the virus just for the sake of Tatpatti Bakhal or Nizamuddin? No. There is no desire to be “politically correct” or to look “balanced” by counting the rest of such examples here. Not written to them because no one – but, but, if, but still – is to be avoided and this time not to be foolish, but to be repentant. If so, then let’s be right. However, such vegetarian condition suits only those who do not differentiate between stupidity and ship.Well there must be some compulsions, no one is selected like this.Just one more thing that corona spreads by shaking hands – morona, whether of shipwreck or foolishness, is corrected by shaking hands. The throat is vaccinated with immunity forever. Dr. Zakia Syed and his team were doing exactly the same thing on the very next day after eating stones and being humiliated. Regards to them.
#badalsaroj
https://jansamvadonline.com/in-context/mirror-of-the-corona-virus-and-shadow-of-the-color-system/