आपदा

देहरादून, चमोली आपदा के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान ऋषिगंगा झील के मुहाने से जल स्तर बढ़ने और रिसाव की जानकारी सामने आई है। 12 फरवरी को उत्तराखंड पुलिस की मॉनिटरिंग टीम रैणी गांव के ऊपर हिमालयी क्षेत्र में बनी झील के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाने पैदल मार्गों से जलभराव क्षेत्र पहुंची। इससे पूर्व में ग्लेशियर सहित अन्य कारणों से अत्यधिक मात्रा में पानी यहां रुक गया था। जिसके कारण आम जनमानस में भय का माहौल बना हुआ है।
टीम झील की स्पष्ट स्थिति को समझने के लिए दुर्गम झील के पानी और मिट्टी, बर्फ के नमूने लेने के साथ ही फ्लड के जमे नमूने लेने इस क्षेत्र में पहुंची। 14 घंटे के लंबे दुर्गम सफर को पार कर टीम रात्रि में मौके पर पहुंची। ग्राउंड जीरो पर पहुंचते ही पानी के प्रेशर को कम करने के लिए झील के मुहाने को आइस एक्स के माध्यम से खोला गया। वहीं वापसी के दौरान टीम के द्वारा बीहड़ वाले ग्लेशियर वाले स्थानों पर रोप में हुक भी बांधकर छोड़ दिया गया। ताकि अन्य आने वाली टीमों को यहां दिक्कतों का सामना न करना पड़े। एसडीआरएफ की 8 सदस्यीय टीम झील की सटीक जानकारियों के साथ वहां से एकत्र नमूनों सहित वापस तपोवन पहुंची। यह प्रथम मॉनिटरिंग दल है जो पैदल मार्गों से जलभराव क्षेत्र तक पहुंची है। उत्तराखंड पुलिस बल के पास 30 सदस्यीय मॉनिटरिंग दल है। जिसके आठ सदस्य कुशल पर्वतारोही हैं, जिन्होंने अनेक चर्चित चोटियों को फतह किया है। एसडीआरएफ के सेनानायक भी बेहतरीन पर्वतारोही हैं जो मिशन एवरेस्ट के डिप्टी लीडर रह चुके हैं।
ऋषिगंगा के मुहाने पर बनी झील के पानी से फिलहाल कोई खतरा नहीं है। लेकिन लगातार राज्य आपदा प्रतिवादन बल उत्तराखंड सतर्क है। ऐसे में पैंग, तपोवन व रैणी गांव में एक-एक टीम तैनात की गई है। यह टीम दूरबीन, सैटेलाइट फोन व पीए सिस्टम से लैस हैं। टीमें किसी भी आपातकालीन स्थिति में आसपास के गांव के साथ जोशीमठ तक के क्षेत्र को सतर्क कर देगी। दूसरी ओर अगर किसी भी प्रकार से जल स्तर बढ़ता है, तो ये अर्ली वार्निंग एसडीआरएफ की टीमें तत्काल ही संभावित प्रभावित क्षेत्र को इसकी सूचना देंगी। इस अलर्ट सिस्टम से ऐसी स्थिति में नदी के आसपास के इलाकों को 5 से 7 मिनट में तुरंत खाली कराया जा सकता है। दलों ने रैणी गांव से ऊपर के गांव के प्रधानों से भी समन्वय स्थापित किया है। ताकि जल्द ही दो तीन दिनों में आपदा प्रभावित क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगा दिया जाए। पानी का स्तर डेंजर लेवल पर पहुंचने पर आम जनमानस को सायरन के बजने से खतरे की सूचना मिल जाएगी। वहीं इस बारे में टीमें ग्रामीणों को जागरूक भी कर रही हैं।

प्राकृतिक आपदाओं में सतर्क रहने की दी हिदायत

रुड़की, आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिक प्राकृतिक आपदाओं पर शोध कर उनके कारणों का पता लगाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं, चमोली आपदा को लेकर आईआईटी के वैज्ञानिकों ने रिसर्च कर कारणों का पता लगाने का प्रयास किया है। ऐसी आपदाओं से बचने के उपाय भी बताए हैं।
आईआईटी रुड़की के भूकंप अभियांत्रिकी विभाग के वैज्ञानिक प्राकृतिक आपदाओं पर शोध करते है और उससे बचने के उपाय तलाशते हैं। विभाग के वैज्ञानिक मुकुट लाल शर्मा ने बताया कि हिमालय में जैसे भूकंप आना, बादल फटना, भूस्खलन और ग्लेशियर फटना आदि जिसे प्राकृतिक आपदाएं कहा जाता है। उन्होंने बताया इन आपदाओं से सतर्क रहने की आवश्यकता है, पहले से ही सतर्कता बरती जानी चाहिए। आपदाओं से बचने के लिए रेजिलेंट सोसायटी का होना जरूरी है, ताकि किसी भी आपदा से समय रहते बचा जा सकें। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार ने भी कुछ डाटा बेस बनाया है, डाटा बेस के हिसाब से प्रोटेक्शन करने की कोशिश की जाती है।

रेस्क्यू अभियान तेज, शव मिलने का सिलसिला जारी

चमोली, सात फरवरी को ग्लेशियर टूटने से आए सैलाब में मरने वालों की संख्या बढ़कर 50 हो गई है। वहीं, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और पुलिस के जवानों के द्वारा लगातार रेस्क्यू कार्य जारी है। जबकि मशीनों के द्वारा तपोवन टनल के अंदर से मलबा हटाने का काम किया जा रहा है। एनडीआरएफ के कमांडेंट पी.के तिवारी का कहना है कि एनडीआरएफ की अलग-अलग टीमों को टनल, बैराज साइट और रैणी गांव के पास सर्चिंग अभियान के लिए लगाया गया है।