देहरादून 03 फरवरी। संस्कृत प्रेमियों और संस्कृत शिक्षकों ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को एक ज्ञापन देकर उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विनियम 2014 को लागू करने संबंधी विषय पर विधानसभा भवन स्थित उनके कार्यालय कक्ष में शिष्टाचार भेंट की।
इस अवसर पर सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘ आहुति’ के संस्कृत प्रेमी अध्यक्ष रवींद्र नाथ कौशिक के नेतृत्व में विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपा गया। इस दौरान संस्कृत महाविद्यालय शिक्षक संघ उत्तराखंड के संरक्षक डॉक्टर शैलेन्द्र डंगवाल तथा प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर रामभूषण बिजलवाण ने बताया कि प्रदेश में माध्यमिक संस्कृत शिक्षा और उच्च संस्कृत शिक्षा को अलग-अलग करने की कार्यवाही सात साल से लंबित है।
संस्कृत प्रेमी रवींद्र नाथ कौशिक ने बताया कि विद्यालयों में इससे स्थिति यह बन रहीं हैं कि संस्कृत विद्यालयों में माध्यमिक और उच्च शिक्षकों के पदों के विपरीत नियुक्तियां नहीं हो रहीं हैं । यहां तक कि एक ही शिक्षक को छह से आठ तक कक्षाओं को पढ़ाना पड़ता है। इससे एक कक्षा को पढ़ाने का नंबर चार-चार दिन बाद आता है। इससे प्रदेश में संस्कृत शिक्षा हतोत्साहित होती जा रही है।
संस्कृत महाविद्यालय शिक्षक संघ, उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉक्टर बिल्जवाण ने बताया कि संस्कृत निदेशालय/ परिषद में माध्यमिक शिक्षा से भिन्न विषयों के एलटी/प्रवक्ता स्तरीय शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर आकर बैठ गए हैं। डॉ बिजलवाण ने मांग की कि प्रतिनियुक्ति पर आये माध्यमिक शिक्षकों को उनके मूल कैडर में वापस भेज सहायक निदेशक जनपद का कार्यभार उसी जिले के संस्कृत महाविद्यालय – विद्यालय के वरिष्ठ शिक्षक को दिया जाये जो अपने महा विद्यालय के साथ बिना किसी अतिरिक्त व्ययभार सहायक निदेशक का दायित्व भी देखेंगे।
प्रतिनिधि मंडल में सम्मिलित शिवराम संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य राम प्रसाद थपलियाल ने विधानसभा अध्यक्ष को उनके संस्कृत प्रेम का हवाला देते हुए कहा कि वे अपने नैतिक और संवैधानिक प्रभाव से छात्र हित में पदसृजन और रिक्त पदों पर नियुक्ति को उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विनियम 2014 को तत्काल लागू कराने में सहायता करें । साथ ही विनियम में स्पष्ट रूप से प्रावधान करायें कि संस्कृत विद्यालयों-महाविद्यालयों के शिक्षकों को ही निदेशालय/परिषद एवं जनपद सहायक निदेशक आदि के पद पर प्रति नियुक्ति पर जाने का प्रावधान हो।
विधानसभा अध्यक्ष ने प्रतिनिधि मंडल को आश्वासन दिया है कि संस्कृत शिक्षा की समस्याओं को शासन की मंशा के अनुरूप शीघ्रातिशीघ्र दूर कराया जायेगा।
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