मेरे पिता को मिली ईमानदारी  की सजा: मनीष खडूड़ी
मनीष खंडूड़ी 

देहरादून,  पौड़ी लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी मनीष खंडूड़ी ने कांग्रेस की जीत का दावा किया है। कांग्रेस में शामिल होने को लेकर उनसे पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि उनकी विचारधारा  हमेशा से ही विकास की रही है जो कि कांग्रेस के साथ मेल खाती है और बगैर विचारधारा के मेल के किसी पार्टी में शामिल होना गलत होता।

  मनीष खंडूड़ी ने हाल ही में देहरादून आए राहुल गांधी के दौरे के दिन कांग्रेस का हाथ थामा है। इसके साथ ही मनीष ने कहा कि उनके पिता मेजर जनरल भुवन चंद खंडूड़ी को रक्षा समिति के सभापति पद से हटाए जाने से वो दुखी हुए थे। उन्होंने कहा कि उनके पिता एक ईमानदार और साफ छवि के नेता रहे हैं। मनीष खंडूड़ी ने कहा कि उनके पिता ने देश हित में सवाल पूछे थे मगर  हश्र क्या हुआ ?

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  उन्होंने पत्रकारों से ही पूछा कि रक्षा बजट को देखने के बाद ,सभापति होने  के नाते अगर उनके पिता ने जवानों के लिए आधुनिक बुलेट प्रूफ जैकेट का मामला उठाया या  यह कहा दिया कि फौज के पास पर्याप्त  गोला-बारूद और गोलियां नहीं हैं तो बजाए इन बातों का समाधान करने के उनको ये सोच कर कि पद से हटा दिया जाता है  कि – ना रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी- तो इससे बड़े  अपमान की बात और क्या होगी ।  
   इसके बाद मनीष ने कहा कि वह अच्छी भली फेसबुक में नौकरी कर रहे थे,  मगर इतने साल किसी पार्टी की निष्काम सेवा के बाद उनके पिता द्वारा उठाई गई बेहद जरुरी व ईमानदार मांग पर उन्हें जिस तरह अपमानित कर उन्हें रक्षा समिति के पद से हटाया गया वह उनको व उनके पिता को गहरी चोट पहुँचा  गया।  आज  फिर  भाजपा  देश के असली मुद्दों को  छुपा कर जुमले बाजी की राजनीति कर रही है और  बस यही बात लोगों को समझने की जरुरत है रहे हैं। आखिर में मनीष ने कहा कि उनकी विचारधारा पहाड़ के से जुड़ी हुई। ऐसे में अगर वे अपनी विचारधारा के विपरीत किसी और पार्टी से जुड़ते तो यह भी एक झूठ होता। इसके साथ ही उन्होंने कटाक्ष करते हुए पूछा कि मोदी जी ने अगर वास्तव में  विकास किया होता तो वह आज  विकास पुरुष बन कर चुनाव में खड़े होते ना की चौकीदार का चोला पहन कर देश को गुमराह करते।
    अंत में उन्होने कहा कि  ईमानदारी की जो मिसाल उनके पिता ने अपने जीवन काल में पेश की वह उसी मिसाल को अपनी धरोहर मान कर पहाड़ की सेवा करने आप लोगों के बीच आये हैं आगे आप लोगों की इच्छा क्योकि लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है।