अपने अलौकिक व्यक्तित्व व दिव्यता से भारतीय संस्कृति के इतिहास में एक क्रांतिकारी युग का निर्माण करने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, सत्य और अहिंसा के अग्रदूत भगवान_महावीर का जन्म आज से लगभग 2621 वर्ष पूर्व बिहार प्रांत के कुंडलग्राम नगर के राजा सिद्धार्थ व महारानी त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के पावन दिवस पर हुआ। जन्म से पूर्व ही माता त्रिशला ने 14 स्वप्न देखे। स्वप्न शास्त्रज्ञों ने बताया था कि माता त्रिशला की कुक्षि से एक ऐसे तेजस्वी पुत्र का जन्म होगा जो अपने पराक्रम से या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या तीर्थंकर बनकर संसार को ज्ञान का प्रकाश देगा।
महारानी त्रिशला के यहां इस पुण्यात्मा के अवतरित होते ही राजा सिद्धार्थ के राज्य, मान-प्रतिष्ठा, धन-धान्य में वृद्धि होने लगी। इसी कारण राजकुमार का नाम ‘वर्धमान’ रखा गया। भगवान महावीर जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर माने जाते हैं। इनका जन्म कुण्डग्राम में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था। भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। इन्होंने 30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई से आज्ञा लेकर राजसी सुखों का त्याग कर तप का आचरण किया। भगवान महावीर ने गृह-त्याग के 13वें महीने में स्वर्णबालुका नदी के तट पर अपने वस्त्र त्यागे। 12 साल की कठोर तपस्या के बाद इन्होंने अपनी इच्छाओं और विकारों पर नियंत्रण पा लिया और इनको कैवल्य की प्राप्ति हुई। इस कठोर तप को करने के कारण वर्धमान महावीर कहलाए।
भगवान महावीर ने अपने जीवनकाल में अहिंसा और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का प्रचार किया। साथ ही मनुष्य को सभी जीवों का सम्मान और आदर करना सिखाया। भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए मनुष्यों के लिए पांच नियम स्थापित किए, जिन्हें हम पंच सिद्धांत के नाम से जानते हैं। ये पांच सिद्धांत- अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सत्य और अपरिग्रह है। आज मानव अपने स्वार्थ के वशीभूत कोई भी अनुचित कार्य करने और अपने फायदे के लिए हिंसा के लिए भी तत्पर दिखाई देता है। ऐसे में ‘अहिंसा परमो धर्म’ का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले भगवान महावीर का अहिंसा दर्शन आज सर्वाधिक प्रासंगिक और जरूरी प्रतीत होता है।
आज के परिवेश में हम जिस प्रकार की समस्याओं और जटिल परिस्थितियों में घिरे हैं उन सभी का समाधान महावीर के सिद्धांतों और दर्शन में समाहित है। भगवान महावीर कहा करते थे कि जिस जन्म में कोई भी जीव जैसा कर्म करेगा, भविष्य में उसे वैसा ही फल मिलेगा। अपने जीवनकाल में उन्होंने ऐसे अनेक उपदेश और अमृत वचन दिए, जिन्हें अपने जीवन तथा आचरण में अमल में लाकर हम अपने मानव जीवन को सार्थक बना सकते हैं। महावीर कहते थे कि क्रोध प्रेम का नाश करता है, मान विषय का, माया मित्रता का नाश करती है और लालच सभी गुणों का। जो व्यक्ति अपना कल्याण चाहता है उसे पाप को बढ़ाने वाले इन चारों दोषों क्रोध, मान, माया और लालच का त्याग कर देना चाहिए। जब हम भगवान महावीर की उत्कृष्ट शिक्षाओं को याद करते हैं। उन्होंने एक शांतिपूर्ण, सामंजस्यपूर्ण और समृद्ध समाज के निर्माण का मार्ग दिखाया। उनसे प्रेरणा लेकर, हम सदैव दूसरों की सेवा करें और गरीब एवं पिछड़े लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाएं।”
महावीर के समय में ही इन कठोर जैन आचारों का पालन कठिन था और आधुनिक भारत में तो ये और भी कठिन है। असल में कठिन मार्ग के कारण ही ये धर्म भारत से बाहर उस तरह से नहीं फ़ैल पाया जैसे कि बौद्ध धर्म। जैन समुदाय आज अपनी व्यवहारिक कुशलता और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है और आज वो देश के सबसे धनी अल्पसंख्यक समुदाय में से एक हैं। ईश्वर का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। बस सही दिशा में अपना पूरा प्रयास करके देवताओं को पा सकते हैं। ‘महावीर’ ने भारत के धार्मिक व सामाजिक सुधार का निश्चय किया। इनका मूलमंत्र था ‘स्वयं जीओ और दूसरों को जीने दो’। नारी जाति के उद्धार के लिए इन्होंने चंदन बाला के हाथों से 3 दिन का बासी भोजन स्वीकार किया। नारी को समाज में समानता का अधिकार दिलाया।
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला ( दून विश्वविद्यालय )