आज ठीक सात बजकर पैंतीस बजे भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली ने ओंकारेश्वर मंदिर की तीन परिक्रमा की और ओंकारेश्वर मंदिर के प्रधान पुजारी शिव शंकर लिंग ने डोली की आरती उतारी और डोली कैलाश के लिए रवाना हुई। भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली ने डंगवाड़ी ब्राह्मणखोली यात्रा पड़ावों पर श्रद्धालुओं को आशीष देते हुए मंगोलचारी पहुंची, जहां भगवान मदमहेश्वर की डोली ने अल्प विश्राम किया और धाम के प्रधान पुजारी बागेश लिंग ने डोली की आरती उतारी। डोली के कैलाश रवाना होने पर श्रद्धालुओं ने लाल-पीले वस्त्र अर्पित कर मनौती मांगी और पुष्पों व जौ से डोली की अगुवाई की। भगवान मद्महेश्वर की डोली सलामी, फापंज होते हुए मनसूना के मनणा माई तीर्थ पहुंची, वहां पर श्रद्धालुओं ने भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली की विशेष पूजा-अर्चना की। भगवान मदमहेश्वर की डोली ने बुरूवा राऊलैंक उनियाणा यात्रा पड़ावों पर श्रद्धालुओं को आशीष देते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिए राकेश्वरी मंदिर रांसी पहुंची। डोली के राकेश्वरी मंदिर आगमन पर रांसी के ग्रामीणों ने अनेक प्रकार के पूज्यार्थ सामाग्रीयों से अघ्र्य लगाकर विश्व कल्याण व क्षेत्र की खुशहाली की कामना की। आज भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अंतिम रात्रि प्रवास के लिए गौंडार गांव पहुंचेगी। इस मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष विजय राणा, टी गंगाधर लिंग, रमेश चन्द्र सेमवाल, राज कुमार नौटियाल, डोली प्रभारी बचन सिंह रावत, कलम सिंह राणा, जगत राम सेमवाल, बीरेन्द्र नौटियाल, देवानन्द गैरोला, मगनान्द भट्ट, शिव सिंह रावत, अखिलेश गोस्वामी, रणजीत रावत, विजेन्द्र नेगी, अर्जुन रावत, आशीष राणा, जय सिंह चैहान, बबलू जंगली, प्रदीप धम्र्वाण, मनोज शर्मा, नवीन शैव, प्रमोद नेगी, नवदीप नेगी, अनसूया भट्ट, खुशहाल सिंह नेगी, कैलाश पुष्वाण, मदन सिंह पंवार, शिव शरण पंवार, पूर्ण सिंह पंवार, प्रेम सिंह पंवार, देवेन्द्र पंवार, उमेद पंवार, विक्रम सिंह पंवार, विनोद पंवार, मदन भट्ट, राकेश नेगी सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं मौजूद थे।
मदमहेश्वर महादेव को दूसरे केदार के रूप में जाना जाता है।
-21 मई को धाम पहुंचेगी डोली, रांसी में किया रात्रि प्रवास
रुद्रप्रयाग, रविवार को शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर के सभा मण्डप में भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव मूर्तियों की पंचांग पूजन के तहत अनेक पूजाएं संपंन कर आरती उतारी और चल विग्रह उत्सव मूर्तियों को डोली में विराजमान कर डोली का विशेष
श्रृंगार किया गया . मध्यमहेश्वर मंदिर 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है | मंदिर पंच केदार तीर्थ यात्रा में चौथा मंदिर है।
मध्यमहेश्वर मंदिर को “मदमाहेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है| मध्यमहेश्वर मंदिर में पूजा करने के बाद ,तुंगनाथ और मंदिरों का यात्रा की जाती हैं और साथ ही साथ इस मंदिर को पांडवो के द्वारा निर्मित माना जाता है एवम् यह भी माना जाता है कि भीम ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया था | मंदिर प्रांगण में “मध्य” या “बैल का पेट” या “नाभि (नाभि)” भगवान शिवजी का दिव्य रूप माना जाता है | इस मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली से निर्मित है एवम् यह मंदिर एक घास से भरे क्षेत्र में स्थित है | वर्तमान मंदिर में, काली पत्थर से बना एक नाभि के आकार का शिव–लिंगम, पवित्र स्थान में स्थित है। दो अन्य छोटे तीर्थ हैं, एक शिव व पार्वती के लिए और अन्य अर्धनारीश्वरा को समर्पित है , जो आधा–शिव आधा–पार्वती का रूप है | मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर एक छोटा मन्दिर है , जिसके गर्भगृह में संगमरमर से बनी देवी सरस्वती ( हिन्दू धर्म में ज्ञान की देवी कहा जाता है) की मूर्ति है । इस मंदिर की रजत मूर्तियों को सर्दीयों में उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है । मंदिर परिसर के पानी को अत्यधिक पवित्र माना जाता है इस मंदिर के पानी की कुछ बूंदों को स्नान के लिए पर्याप्त माना जाता है | इस मंदिर में पुजारी राज्य के कई अन्य मंदिरों के रूप में दक्षिण भारत के होते हैं | यह शास्त्रीक (पवित्र) की एक महत्वपूर्ण पवित्र तीर्थस्थल केंद्रों में से एक है जिसे पंचस्थली (पांच जगहों) सिद्धांत के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।