डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

जिस सड़क को सरकारें ऑल वेदर रोड के नाम पर प्रचारित करती रही है, जिस सड़क के बारे में दावा किया जाता रहा कि ये अब हर मौसम में खुली रहेगी, यानी बरसात में भी बंद नहीं होगी, मगर कुछ जगहों पर तीन दिन तक सड़क बंद रही और अब भी लगातार मलबा आ रहा है। लोग जान-जोखिम में डालकर इन सड़कों पर यात्रा कर रहे हैं। ऋषिकेश से बदरीनाथ तक इस सड़क चौड़ी करने के नाम पर जिस तरह से बेतरतीब तरीके से पहाड़ काटे गये हैं, उससे इस पूरी सड़क पर कम से कम 51 नये स्लाइडिंग जोन बन गये हैं और कई पुराने स्लाइडिंग जोन फिर से सक्रिय हो गये हैं। मानसून आने के बाद उत्तराखंड में मुश्किल से तीन दिन कुल 87.1 मिमी बारिश अब तक दर्ज की गई है। यानी बहुत मामूली बारिश। लेकिन इस बारिश से हुए नुकसान पर नजर डालें तो स्थितियां बेहद गंभीर नजर आती हैं। खासकर राज्य के चारधाम यात्रा मार्ग पर सबसे ज्यादा नुकसान दर्ज किया गया है।

आलवेदर रोड कही जाने वाली सड़कें अब तक 20 बार बंद हो चुकी हैं। कुछ जगहों पर तो लगातार तीन दिन तक आलवेदर रोड ने बंद रहने का रिकॉर्ड बनाया है।ऑलवेदर रोड के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि चौड़ी सड़कों से दुर्घटनाएं कम होंगी। लेकिन हाल के वर्षों में यह तर्क भी बेमानी साबित हुआ है। पिछले 5 वर्षों में राज्य में 7 हजार से ज्यादा दुर्घटनाएं हुई हैं। इनमें 5 हजार से ज्यादा लेागों की मौत हुई है और इतने ही घायल हुए हैं। डामटा में पिछले महीने हुई बड़ी दुर्घटना में 26 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई थी। इसके अलावा भी ऑलवेदर रोड पर लगातार सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। जानकारों का कहना है कि चौड़ी सड़कों पर वाहनों की रफ्तार बढ़ गई है और ये दुर्घटनाएं इसीलिए हो रही हैं। 

उत्तराखंड में ऑल वेदर रोड की घोषणा साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून स्थित में एक भव्य कार्यक्रम में की थी। प्रधानमंत्री और परिवहन मंत्री की मौजूदगी में इस योजना का शुभारंभ हुआ। तब लक्ष्य रखा गया कि उत्तराखंड में साल 2022 तक ऑलवेदर रोड का काम पूरा हो जाएगा। हालांकि इस बीच में कोरोना की वजह से काम को भी रोकना भी पड़ा। लिहाजा अब इसका काम को पूरा करने की डेड लाइन बढ़ा दी गई । उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के तहत 889 किलोमीटर लंबी सड़क को डबल लेन किया जा रहा है। इस योजना का खर्च लगभग 12 हजार करोड़ रुपए का बताया जा रहा है। सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय ने 53 हिस्सों में इस काम को बांटा है, अभी तक लगभग 90% काम इस परियोजना में हो चुका है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्तराखंड में ऑलवेदर रोड के बनने की वजह से चार धाम यात्रा और दूसरे धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर यात्रियों को पहुंचने में बेहद कम समय लग रहा है। इसके निर्माण की वजह से सेना बॉर्डर तक पहले के समय से जल्दी पहुंच जाती है। चारधाम यात्रा के मंदिरों में पहुंचने में जो समय उस वक्त 12 से 13 घंटे का लगता था। अब वह घटकर लगभग 7 से 8 घंटे हो गया है। ऑल वेदर रोड का काम ऋषिकेश से बदरीनाथ, ऋषिकेश से गंगोत्री, टिहरी गढ़वाल जैसे जिलों में तेजी से पूरा हुआ। ये परियोजना पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है इसलिए वह इसकी लगातार मॉनिटरिंग करते रहते हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री हों या मौजूदा मुख्यमंत्री वह लगातार प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में अपडेट लेते रहते हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने खुद अपने कार्यालय में बैठकर कई बार ड्रोन के माध्यम से इस सड़क का काम देखा है।

मगर मौजूदा हालात में पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को बनाने वाली कंपनियां और ठेकेदार शायद सड़क की गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं। यही कारण है कि साल 2021 में और 2022 में भी ऑलवेदर रोड के कई हिस्से हल्की सी बरसात में ही बह गये हैं। ये वो तमाम सड़कें हैं, जो न केवल बनकर तैयार हो गई थी। बल्कि एक साल से इन सड़कों पर वाहन भी दौड़ रहे थे। लेकिन ऑलवेदर रोड चार दिन की बरसात में ढह कर नदी में समा गई। चमोली के नंदप्रयाग के पास पुरसाड़ी में सड़क बने हुए लगभग साल भर का समय बीत गया है। जैसे ही 2 से 3 दिनों की बरसात हुई वैसे ही यहां लगभग 50 मीटर का हिस्सा सिर्फ आरसीसी की दीवार के ढहने से सड़क क्षतिग्रस्त हो गई।

अब सवाल यह खड़ा होता है कि सिर्फ़ एक दीवार के भरोसे बन रही इन सड़कों का चार दिन की बारिश में यह हाल है तो आने वाले समय में उत्तराखंड के तमाम दूसरी जगहों पर बन रही ऑलवेदर रोड का क्या हाल होगा ? चमोली में जिस जगह यह सड़क का हिस्सा बहा है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि लंबे समय से दीवार के आसपास से पानी का रिसाव हो रहा था। अचानक हुई बरसात में पूरी की पूरी दीवार ढह गई। दीवार के ढह जाने की वजह से नेशनल हाईवे का हिस्सा पूरी तरह बर्बाद हो गया।

सड़कें बंद होने की वजह से कई गांवों का संपर्क मुख्यालय से कट जाता है,अब स्थानीय लोग ऑलवेदर रोड के निर्माण कार्य की जांच कराने की मांग कर रहे हैं। तो वहीं अधिकारी इसे गुणवत्ता का दोष नहीं, बल्कि मौसम की मार बता रहे हैं। ऑलवेदर रोड का निर्माण कार्य कर रही एजेंसी एनएचआईडीसीएल के डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर का कहना है कि दीवार प्राकृतिक आपदा के कारण ढही है, सड़क निर्माण में घटिया गुणवत्ता जैसी कोई बात नही हैं।

उत्तराखंड के चमोली में 26 ऑलवेदर रोड हैं। यह मार्ग इसलिए भी संवेदनशील हो जाता है क्योंकि चमोली से नीती घाटी को जोड़ने वाला सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एकमात्र यही मार्ग है। हालांकि मौजूदा समय में छोटे वाहन तो इस सड़क से गुजर रहे हैं, लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि ऑलवेदर रोड के नाम से बन रही यह सड़कें जब चार दिनों की हल्की सी बारिश नहीं सह पायी तो आगे जब मूसलाधार बारिश होगी तब इन सड़कों का क्या हाल होगा ! महादेव ही जाने

लेखक के निजी विचार हैं ।

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