मान्यता के मुताबिक, छठ पूजा सूर्य (सूर्य देव) को समर्पित वैदिक त्योहार है. यह पर्व, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शुरू होता है, सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है.
बिहार, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में काफी धूमधाम से मनाया जाने वाला छठ महापर्व चार दिनों की पूजा है. इसकी शुरुआत 18 नवंबर से हो रही है. छठ पर्व में पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने के लिए सूर्य भगवान को धन्यवाद देने के लिए, महिलाएं उपवास रखती हैं, अपनी प्रार्थना करती हैं और छठ मइया की पूजा करके पूजा का समापन करती हैं.
दिन 1: कद्दू भात या नहाय खाय (Kaddu Bhaat or Nahay Khay — Nov 18)
मान्यता के मुताबिक, छठ पूजा सूर्य (सूर्य देव) को समर्पित वैदिक त्योहार है. यह पर्व, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को शुरू होता है, सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. यह 18 नवंबर को ‘कद्दू भात या नहाय खाय’ से शुरू होगा और ‘उषा अर्घ्य’ के साथ समाप्त होता है. 21 नवंबर को छठ का आखिरी दिन है. इस दिन, भक्त या जो लोग अनुष्ठान कर रहे हैं, वह सात्विक भोजन करते हैं.
छठ महापर्व में चूंकि मुख्य पूजा सूर्य देव के चारों ओर घूमती है, इसलिए सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बेहद खास होता है. यह त्योहार चार दिनों में पूरा होता है. पर्व के मुख्य दिन में षष्ठी पर छठ पूजन और संध्या अर्घ्य शामिल है जो 20 नवंबर, 2020 को है. दिलचस्प बात यह है कि सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बहुत मायने रखता है क्योंकि वे जन्म और मृत्यु के चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सूर्योदय समय: सुबह 6:46
सूर्यास्त समय: शाम 5:26
दिन 2: खरना – 19 नवंबर (Kharna – Nov 19)
इस साल लोहंडा और खरना 19 नवंबर, 2020 को है. दूसरे दिन यानी पंचमी तिथि को, भक्त निर्जला व्रत (सूर्य की एक बूंद भी बिना पानी पीए उपवास) का दर्शन करके खरना मनाते हैं. वे सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अपनी प्रार्थना अर्पित करने के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं. इस दिन महिलाएं प्रसाद के रूप में मिठाई तैयार करती हैं. प्रसाद में मिठाई, खीर, थेकुआ और फल (मुख्य रूप से गन्ना, मीठा चूना और केला) शामिल होते हैं जो छोटे बांस के विनोयस में दिए जाते हैं. भोजन बिना नमक, प्याज या लहसुन के पकाया जाता है. भोजन की शुद्धता बनाए रखने पर जोर दिया जाता है.
सूर्योदय समय: सुबह 6:47
सूर्यास्त का समय: शाम 5:26 बजे
कौन हैं षष्ठी देवी, जानें ब्रह्मवैवर्त पुराण से!
सनातन धर्म में कार्तिक मास का अधिक महत्व है, जिस कारण इस मास में पड़ने वाले तमाम त्यौहारों आदि का महत्व भी कई गुना बढ़ जाता है। हाल ही में भारतवर्ष में दिवाली व अन्य प्रमुख त्यौहारों की धूम देखने को मिली। बता दें धनतेरस, नरक चतुर्दशी दिवाली, गोवर्धन पूजा व भाई दूज सभी सनातन धर्म के प्रुमख पर्व माने जाते हैं जो कार्तिक मास में ही पड़ते है। दिवाली आदि के बाद अब बारी आ चुकी है कार्तिक मास में एक और प्रमुथ त्यौहार की। जो प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को सूर्य उपासना का पर्व कहा जाता है। मुख्य रूप से सूर्य उपासना का ये पर्व बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। अगर बिहार की बात करें तो कहा जाता है कि यहां यह पर्व ने केवल बिहार मे हिन्दुओं द्वारा ही नहीं बल्कि इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी द्वारा भी मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिन छठी मैया की आराधना का भी अधिक महत्व है। मगर छठी मैया हैं कौन, और वो कैसी कृपा करते हैं? इस बारे में आज भी बहुत से लोग जानने के इच्छुक हैं, तो चलिए आपको बताते हैं सनातन धर्म के समस्त ग्रंथों या पुराणों में ब्रह्मवैवर्त पुराण के बारे में जिसमें छठी मैया के बारे में एक श्लोक वर्णित है। ब्रह्मवैवर्त पुराण की मानें तो प्रकृति खंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देव सेना कहा गया है। चूंकि इन्हें प्रकृति का छठा अंश हैं इसलिए इन्हें षष्ठी भी कहा जाता है। सनातन धर्म के पुराणों में षष्ठी देवी को सभी ‘बालकों की रक्षा’ करने वाली तथा लंबी आयु प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। बताया जाता है कि आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित श्लोक-
”षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।|
सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।”-(ब्रह्मवैवर्तपुराण,प्रकृतिखंड 43/4/6)
स्थानीय भाषा में षष्ठी देवी को ही छठी मैया कहा जाता है। इसके अलावा षष्ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा जाता है।देवी दुर्गा का यह रूप ही हैं छठी मैया
सनातन धर्म के पुराणों में देवी दुर्गा का रूप कात्यायनी देवी ही छठी माया है। इनकी पूजा मुख्य रूप से नवरात्रि में षष्ठी तिथि को करने का विधान है। शास्त्रों में बताया गया है कि मां कात्यायनी शेर पर सवार होती हैं, इनकी चार भुजाएं हैं, बाएं हाथों में कमल का फूल व तलवार धारण करती हैं। दाएं हाथ अभय और वरद मुद्रा में रहते हैं। मां कात्यायनी योद्धाओं की देवी हैं।राक्षसों के अंत के लिए माता पार्वती ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। छठी मैया भगवान सूर्य की बहन हैं। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है।इनकी पूजा से मिलते हैं ये बड़े लाभ-
नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। तो वहीं जिनकी संतान पर किसी तरह का कोई संकट आ रहा हो छठी देवी संतान की रक्षा करती हैं तथा उनके जीवन को खुशहाल करती हैं।इनकी आराधना से कई पवित्र यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है, परिवार में सुख, समृद्धि, धन संपदा और परस्पर प्रेम में वृद्धि होती है।इनकी पूजा से विवाह और करियर संबंधी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, घर से निर्धनता दूर होती है। साथ ही साथ धन संपदा का आशीष मिलता है।नियमपूर्वक व्रत न करने से हो सकता है नुकसान-
कहा जाता है कि इस व्रत को नियम पूर्वक करना बहुत आवश्यक होता है। जो व्यक्ति इनके नियमों का उल्लंघ न करता है, उसे कुफल प्राप्त होता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में राजा सागर ने सर्य षष्ठी व्रत सही तरह से नहीं किया था, जिसके परिणाम स्वीरूप उसके 60 हज़ार पुत्र मर गए थे।
दिन 3: शाम का अर्घ्य – 20 नवंबर (Chhath puja – Nov 20)
छठ पूजा का मुख्य दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को होता है. इस दिन ही छठ पूजा की जाती है. त्योहार का तीसरा दिन मुख्य पूजा दिवस है, और इसे छठ पूजा कहा जाता है. यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं संध्या अर्घ्य अर्पित करती हैं. महिलाएं एक दिन का उपवास रखती हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही इसे तोड़ती हैं.
सूर्योदय समय: प्रातः 6:48
सूर्यास्त का समय: शाम 5:26 बजे
दिन 4: सुबह का अर्घ्य – 21 नवंबर (Usha Arghya – Nov 20)
छठ पूजा का आखिरी दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के सातवें दिन मनाया जाता है. महिलाएं, जो छठ पूजा व्रत का पालन करती हैं, इस दिन अपना व्रत तोड़ती हैं. वे सूर्य देव को अपनी प्रार्थना और जल अर्पित करते हैं.
सूर्योदय समय: सुबह 6:49 बजे
सूर्यास्त का समय: शाम 5:25 बजे.
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