अखिल भारतीय किसान सभा और आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच ने देश में बढ़ते कृषि संकट, ऋणग्रस्तता के कारण बढ़ती किसान आत्महत्याओं, वनाधिकारों पर हमले, प्राकृतिक संसाधनों की लूट, मंदी के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदहाली, बेरोजगारी और लाभकारी समर्थन मूल्य न दिए जाने के खिलाफ *8 जनवरी को ग्रामीण भारत बंद* का आह्वान किया है। इस दिन गांवों के रास्ते और ट्रेनों को रोका जाएगा, दुकानें और व्यवसाय बंद रखे जाएंगे और सरकारी कार्यालयों पर प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे। उल्लेखनीय है कि 8 जनवरी को ही सीटू और इंटक सहित देश के प्रमुख ट्रेड यूनियनों ने भी देशव्यापी मजदूर हड़ताल आयोजित करने का फैसला किया है।
आज यहां जारी एक बयान में *छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता* ने बताया कि देश मे पसरती मंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव किसान समुदाय और आदिवासियों पर पड़ रहा है। लेकिन ग्रामीणों को मनरेगा के जरिये काम देने और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार लाभकारी समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी करने से मोदी सरकार इंकार कर रही है। छत्तीसगढ़ इसका ज्वलंत उदाहरण है कि किस तरह मोदी सरकार किसानों को धान के बोनस से वंचित करने का खेल खेल रही है।
किसान सभा नेताओं ने कहा है कि आदिवासियों को एक ओर तो वनाधिकारों से वंचित किया जा रहा है, दूसरी ओर कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए जल, जंगल, जमीन और खनिज की लूट के लिए उन्हें बड़े पैमाने पर विस्थापित करने की नीतियां बनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि इन आदिवासी-किसान विरोधी नीतियों का नतीजा यह है कि बैंकों तक किसानों की पहुंच घट गई है और महाजनी कर्ज के फंदे में फंसकर किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं।
इन नीतियों के खिलाफ पूरे देश के किसान और आदिवासी 8 जनवरी को अपनी आवाज बुलंद करेंगे और *गांव बंद* का आयोजन करेंगे।