घायल अध्‍यक्ष आइशी घोष ने कहा- संघ और विद्यार्थी परिषद से जुड़े गुंडों ने किया था हमला

जेएनयू हिंसा में बुरी तरह जख्‍मी छात्र संघ की अध्‍यक्ष आईशी घोष ने घटना के बाद चुप्‍पी तोड़ी है। उन्‍होंने अपने तल्‍ख तेवर में कहा कि इस हमले के लिए आरएसएस और एबीवीपी को जिम्‍मेदार है। उन्‍होंने कहा कि सोची-समझी साजिश के तहत आरएसएस और एबीवीपी के गुंडों ने यह काम किया है। पिछले 4-5 दिनों से कैंपस में कुछ आरएसएस से जुड़े प्रोफेसरों और एबीवीपी द्वारा हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा था।

फासीवाद का पहला निशाना विश्वविद्यालय ही होते हैं। क्योंकि यही वो जगह होती है, जहां से प्रतिरोध के स्वर सुनाई देते रहे है। दुनिया का पहला फासीवाद या नाजीवाद हिटलर लेकर आया था। हिटलर के खूनी मनसूबों को सबसे पहले विश्व विद्यालय ही समझे थे। लिहाजा, हिटलर के भक्तों का पहला शिकार भी विश्व विद्यालय ही बने। हमला करने वाले कम पढ़े लिखे लोग थे।

ये घटना 1923 की शुरआत की है। जर्मनी ही नहीं, पॉलैंड, इटली और यूक्रेन में भी आतंक छाया हुआ था। हर तरफ खून के फ़व्वारे फूट रहे थे। पॉलैंड, जर्मनी और ईटली में हिटलरवादियों ने खाकी यूनिफार्म पहन ली थी। इन खाकीधारियों में अधिकांश बेरोजगार और कम पढ़े लिखे लोग थे। ये लोग देश के सभी बुद्धीजीवियों को मौत के घाट उतारना चाहते थे। उनका मानना था कि पढ़े लिखे ही ज्यादा आतंकी है। क्योंकि पढ़े लिखे ही वैज्ञानिक बनते हैं और वो ही क़िताबें भी लिखते हैं. इन ही किताबों का असर मजदूरों और किसानों पर होता है और फिर ये वर्ग हिटलरवाद से दूर हो जाते हैं।

न्यूरेमबर्ग मुकदमों की अपनी एक रिपोर्ट में यारोस्लाव हलान आगे बताते हैं, 1923 में वियना विश्वविद्यालय में मेरा फ़ासीवाद से पहला परिचय हुआ। हम पुस्तकालय में बैठे हुये थे. तभी गुंडों का एक गिरोह लाठियां बांधे खाकी कपड़ों में और सिर पर काली टोपी लगाये हुए वाचनालय में घुस आया। लाठियां उनका परिचय दे रही थी. वे हिटलर के प्रथम ऑस्ट्रियाई समर्थक के चिन्ह, प्रतीक, आभूषण और हथियार थे। ये सभी युवा थे।

गिरोह का सरगना, एक लंबा, लाल बालों वाला व्यक्ति एक नुक़ीला हथियार लिये हुये पूरी ताक़त से लगातार बनावटी आवाज में चिल्लाता है- ‘सभी यहूदी बाहर चले जायें’। चंद मिनटों में पुस्तकालय खाली हो गया. अपने विवि के प्रति ऐसे विधर्मी अत्याचार के विरोध के प्रतिरोध में, लगभग सभी उपस्थित जन बाहर चले गये।

इन उन्मादी युवकों ने ऐसी घटना की आशा नहीं की थी. उनमें से एक ने ज़ोर से नारा लगाया ‘पूरा यूरोप नाज़ीवाद’. उसके बाद कई दर्जन लाठियां हवा में सरसरा उठीं, पागल गुंडों ने किसी को नहीं छोड़ा. तक़रीबन 55 छात्र मारे गये. ये पहली ऑस्ट्रियाई मॉब लिंचिंग थी. इसमें 32 यहूदी मरे और बाक़ी नाज़ी. सरकार ने इस मॉब लिचिंग को जायज ठहराया. विभिन्न मंचों पर राष्ट्रवादियों ने इन युवकों को प्रशस्ति पत्र दिये.

साभार- मनमीत

बता दें कि रविवार की रात जेएनयू कैंपस में जबरदस्‍त घंटों तक तोड़फोड़ चली। इस दौरान कैंपस में भय और डर का माहौल बन गया था। शाम को करीब 4 बजे से शुरू हुआ दो पक्षों का मामूली सा विवाद काफी हद तक बढ़ गया। इसके बाद नकाबपोश लोगों ने हथियार लेकर छात्रों से लेकर शिक्षकों के साथ जमकर मारपीट की। इस हिंसा में जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष आईशी घोष के सिर पर गंभीर चोट आईं।

मिली जानकारी के अनुसार हॉकी और रॉड से लैस 12 से अधिक नकाबपोश बदमाशों ने इस काम को अंजाम दिया। उपद्रवियों ने विवि की संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया। इस कायराना हमले में 27 विद्यार्थी व तीन शिक्षक अतुल सूद, सौगता भादुड़ी व सुचरिता घायल हुए हैं। घायल छात्रसंघ अध्यक्ष आईशी घोष को गंभीर चोटें आई हैं और उन्हें एम्स ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया गया है। काफी देर बाद प्रशासन ने पुलिस को बुलाई और पुलिस ने मामला शांत कराया। बाद में पुलिस ने परिसर में फ्लैगमार्च भी किया।