सनद रहे कि जनसरोकारों और जनपक्षीय खबरों के लिए प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति समारोह इस बार 8 व 9 अप्रैल को चमियाला (टिहरी) में सम्पन्न होगा। ट्रस्ट द्वारा प्रतिवर्ष दिये जाने वाले सम्मान और पुरस्कारों की भी घोषणा कर दी है। इस वर्ष यह सम्मान जनसंघर्षो के जरिये लोक कल्याण के लिए समर्पित जोशीमठ बचाओ अभियान के संयोजक अतुल सती, टनकपुर के हिमांशु जोशी, चम्पावत के कमलेश भट्ट व देहरादून के जयदीप सकलानी को दिया जायेगा।

देहरादून, 30 मार्च : जैसे ही संस्कृति कर्मी और आन्दोलनकारी जयदीप सकलानी को प्रतिष्ठित उमेश डोभाल समृति सम्मान मिलने की सूचना सोशल मिडिया के मार्फ़त बहार निकली प्रदेश भर से शुभकामनाओं और बधाइयों का सिलसिला जारी हो गया।

वैसे तो शहर में जेडी भाई/ दिप्पू भाई के नाम से विख्यात यह व्यक्ति किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है, मगर प्रदेश का हर वह तबका जो कभी न कभी अपनी जायज़ मांगों के लिए सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष कर चुका है या कर रहा है, वह उनको भली-भांति जनता-पहचानता है। वहीँ दूसरी ओर उनकी पहचान जरूरतमंदों के मसीहा के रूप में भी देखने को मिलती है। उससे भी बड़ी बात कि कभी भी मदद करने के बाद उन्होंने आजकल के लपड़-झन्डुओं की तरह उसका ढ़ोल नहीं पीटा। वह ख़ामोशी से अपने काम को अंजाम दे कर निकल जाते हैं। अपने जानने वालों के बीच वह अपने बेबाक़ अंदाज और साफगोई के लिए बेहद मशहूर हैं। इससे पहले भी वह कई प्रतिष्ठित पुरुस्कारों से सम्मानित किये जा चुके है जिसमें उत्तराँचल प्रैस क्लब का अनूप गैरोला सम्मान भी सम्मलित है। बेहद सरल स्वाभाव वाली इस बहुयामी शख्सियत के व्यक्तित्व के बारे में लोगों ने जितना भी जानने की कोशिश कि वह उनकी सोच से भी कहीं आगे दिखाई पड़ते हैं। जनकवि अतुल शर्मा की ने संस्मरणों को याद करते हुए जनसंवाद से कुछ बाते साझा करी है। जिसे आपके सम्मुख रख रहें हैं….

संस्कृति कर्मी और आन्दोलनकारी भाई जयदीप सकलानी को प्रतिष्ठित उमेश डोभाल समृति सम्मान का मिलना संस्कृति-कर्म का सम्मान है… शुभकामनाएं
हर आन्दोलन मे जयदीप सकलानी दीपू भाई की उपस्थिति एक सिपाही की तरह रही है। निश्छल और लक्ष्य के प्रति समर्पित दीपू भाई को मैने व्यवस्था के साथ बहस करते हुए भी देखा है और रामपुर तिराहे जैसे जघन्य कांड ( उत्तराखंड आन्दोलन) मे भी उपस्थित पाया है। वह ड्राइंग रुम मे बैठकर “आखिरी व्यक्ति” की बात करने वालो मे नही है ! वे बीच भंवर मे खड़े होकर सच के समर्थन मे मुट्ठियाँ उठाने वाले क्रांति-धर्मियों में से एक हैं।
उत्तराखंड आन्दोलन में सांस्कृतिक मोर्चा हो या कोई भी दूसरा संगठन, उस संघर्ष, दीपू की पारदर्शी आवाज़ जरूर मौज़ूद रही है। एक बात और कि जब भी और जहाँ भी कोई मोर्चा हो उसमें चाहे कोई परिचित हो या ना हो वह उसमे शामिल हो जाते हैं। उनके लिए सबसे प्रमुख “मुद्दा” ही रहता है।
एक अन्य संस्मरण को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि दिल्ली मे डाक्टरों की हड़ताल चल रही थी तब जयदीप बस यूँ ही उनके बीच पहुँच गये। उनसे संवाद के बाद उन्होंने एक जन-गीत गाया गया। जिसके बाद उन लोगों को विरोध एक सार्थक तरीका मिल गया और उसके बाद उन लोगो ने अपने विरोध प्रदर्शन के नारों के साथ उस जनगीत को भी समावेशित कर लिया और यह क्रम चल निकला। रात को दीपू का मेरे पास फोन‌ आया कि डाक्टर साब आज मैंने आपका लिखा जन गीत “अब तो सड़कों पर आओ”….. गाया उसकी आवाज़ में आत्मीयता और उत्साह झलक रहा था। मेरे लिखे जन-गीत मुझ से कहीं ज्यादा भाई जयदीप सकलानी ने लोगो तक पहुचाये हैं। वह सिर्फ मेरे ही नही बल्कि मौकों के अनुरूप सब के लिखे जनगीत इसी तरह प्रस्तुत करते रहे हैं। उनका उद्देश्य जनगीत के माद्यम से संदेश देना और संघर्ष को गति प्रदान करना होता है। व्यक्तिगत रुप से भी वह सुःख और दुःख मे सामान रूप से भागीदार रहते हैं। यह मेरा और सब का निजी अनुभव भी हो सकता है।

आज चाहे वह नदियों पर संकट हो या जोशीमठ पर, चाहे भूकंप हो चाहे आपदा या कोई भी अत्याचार हो। दीपू हर जगह अपनी बुलंद आवाज़ के साथ खड़े मिलते हैं। 90-91 मे आये उत्तरकाशी/चमोली के भूकंप में मेरा गीत “कंबल तो कम बंटवाये, ज्यादा फोटो खिंचवाये, ऐसा तो देखा पहली बार” इसे सतीश धौलाखंडी के साथ उस समय भी जन-जन तक पहुचा दिया।

केदारनाथ आपदा के समय निरंजन सुयाल का गीत ” “>”साथी जल जंगल जमीन का बचाना बहुत जरुरी है” ऐसे अनेकों जन-गीत हैं जिन्हें दीपू ने शिद्दत के साथ आन्दोलन का हिस्सा बनाया है।
उनके संरक्षण में हुआ जनसंवाद सम्मान समारोह मे जन-गीतकारो का सम्मान समारोह कार्यक्रम कभी न भूलने वाला संस्मरण है। वे सबके अपने है और खरा बोलने वाले क्रांतिकारी हैं।
किसी भी समारोह मे एक अपनेपन की आवाज़ की मुझे आदत हो गयी है….द्ददा ! “अब तो सड़को पर आओ” सुनाओ , इस अधिकार पूर्ण आवाज़ का मै हमेशा दिल से स्वागत और अभिवादन करता रहा हूँ। कई कवि सम्मेलन ऐसे भी हुए हैं जिनका मैने मंच से विरोध किया और जनता के बीच से दीपू ने। जयदीप सकलानी/ मेरे दीपू भाई या कहूँ हमारे सामने आत्मविश्वास से भरी बुलंद आवाज़ ! उन्हे फिर से शुभकामनाएं।

जनकवि डा0 अतुल शर्मा

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